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मेरी कक्षा पर निबंध (My Classroom Essay in Hindi)

यह तो आपने सुना ही होगा कि बच्चे का पहला पाठशाला उसका घर होता है और हमारी कक्षा हमारा दूसरा घर होता है। हम सभी अपना अधिकांश समय अपनी कक्षा में बिताते हैं। यहाँ पर कई ऐसी चीजें हैं जो इसे सभ्य बनाती हैं और हमें यहां रहना पसंद है। मैंने अपनी कक्षा को प्यार करने के विभिन्न कोणों से यहाँ पर चर्चा की है और उम्मीद करता हूँ कि यह आपकी मदद भी करेगा।

मैंने आपको इस विषय पर कुछ निबंध उपलब्ध कराए हैं ताकि आपको अपने स्कूल की किसी परियोजनाओं के लिए खुद को तैयार करने के लिए कुछ दिलचस्प और आसान तरीके मिल सकें।

मेरी कक्षा पर लघु और लंबे निबंध (Short and Long Essays on My Classroom in Hindi, Meri Kaksha par Nibandh Hindi mein)

निबंध 1 (250 शब्द) – मेरी कक्षा.

हर बच्चा अपनी कक्षा से प्यार करता है क्योंकि प्रत्येक कक्षा से उसकी कई यादें जुड़ी होती हैं। कुछ यादगार दिनों के अलावा, कुछ अच्छी चीजें भी मेरी कक्षा को सर्वश्रेष्ठ बनाती हैं। हर साल हम अपनी कक्षा बदलते हैं फिर भी हर कक्षा मुझे सबसे अच्छी लगती है इससे पता चलता है कि मेरा स्कूल भी सबसे अच्छा है।

मेरा अच्छा क्लासरूम

मैं कक्षा 3ए की रिद्धि हूं, मेरी कक्षा बास्केटबॉल कोर्ट के पास है। एक तरफ से हम बास्केटबॉल के लाइव मैच का आनंद लेते हैं जबकि उसी समय में हम एक आम के पेड़ की छाया का भी आनंद ले सकते हैं।

मेरी कक्षा की सर्वश्रेष्ठ जगह इसे एकदम उचित बनाती है और मुझे अपनी कक्षा में रुके रहने के लिए प्रेरित करती है।

हम हमेशा ही छात्रों को बास्केटबॉल कोर्ट पर अभ्यास करते हुए देखते हैं और वाकई में यह हमें प्रोत्साहित करता है, क्योंकि वे कई कई घंटों तक कठिन अभ्यास करते हैं। मैंने कई छात्रों को देखा है जो एक गोल करने में असमर्थ थे लेकिन उनके अभ्यास ने उन्हें राज्य स्तर का खिलाड़ी बना दिया।

बास्केटबॉल कोर्ट के अलावा हम आम के पेड़ की पत्तियों से खेलना भी काफी पसंद करते हैं। आमतौर पर, हमें पेड़ के शीर्ष तक पहुंचने के लिए उसपर चढ़ना पड़ता है, लेकिन पेड़ के सबसे ऊपरी हिस्से को हमारी कक्षा की खिड़की से आसानी से छुआ जा सकता है। पढ़ाई और दोस्तों के अलावा, ये चीजें मेरी कक्षा को उचित बनाती हैं और मुझे यहाँ रहना पसंद है।

किसी चीज़ से प्यार करने के अलग-अलग कारण होते हैं और ऊपर बताये गए वे कारण हैं जो मुझे अपनी कक्षा से प्यार करने में मदद करते हैं। कक्षा एक ऐसी जगह है जहाँ हम सीखते हैं और जब हम यहाँ पर होना पसंद करने लगते हैं तो पढ़ाई भी मजेदार लगती है। मैं अपनी कक्षा, अपने शिक्षकों और अपने दोस्तों से प्यार करता हूं।

निबंध 2 (400 शब्द) – मेरी कक्षा अलग क्यों है

एक कमरा जहाँ मैं 30 अन्य छात्रों के साथ हूँ, जहाँ मेरे शिक्षक मुझे पढ़ाने आते हैं, और एक ऐसा स्थान जहाँ मैं सभी प्रकार के बदमाशी वाले काम करता हूँ। मैं इसे अपनी कक्षा कहता हूं, एक ऐसी जगह जहां मैं अपने शिक्षकों के बीच मुस्कुराने और हंसने के बीच का अंतर सीखता हूँ। मेरी कक्षा मेरे पूरे विद्यालय में कई वजहों से सर्वश्रेष्ठ कक्षाओं में से एक है।

कौन सी चीज मेरी कक्षा को अलग बनाती है ?

यहाँ पर कई चीजें हैं जो हमें एक दूसरों से अलग बनाती हैं इसीतरह से बहुत सी ऐसी चीजें हैं जो हमारी कक्षा को अलग बनाती हैं। इससे सम्बंधित मैंने यहाँ पर नीचे कुछ बिंदुओं पर चर्चा की है;

मेरी कक्षा में छात्रों के प्रकार

  • हर कक्षा में एक टॉपर और एक फेलियर होता है लेकिन मेरी क्लास का टॉपर पूरे स्कूल का टॉपर है और इस वजह से हमारी क्लास पूरे स्कूल में हमेशा लोकप्रिय रहती है। इसके अलावा, कोई भी ऐसा छात्र नहीं है जो मेरी कक्षा में फेल होता है या उसे पदोन्नत करने की आवश्यकता पड़ती है।
  • मेरी कक्षा में, दो गायक भी हैं और वे दोनों मेरे विद्यालय में आयोजित किसी भी गायन प्रतियोगिता में हमेशा पहले और दुसरे रैंक पर रहते हैं। वे वास्तव में बहुत अच्छे गायक हैं और हम उन्हें सुनना काफी ज्यादा पसंद करते हैं।
  • यहाँ पर छह लड़कियों का एक समूह भी है जो नृत्य के लिए बेहद प्रसिद्ध हैं, और वे हमेशा विशेष अवसरों पर अपना शानदार प्रदर्शन भी करती हैं। वाकई में 6बी सभी प्रकार की गतिविधियों के लिए एक मशहूर कक्षा है। वे स्कूल के म्यूजिक और गायन प्रतियोगिता में भी भाग लेते हैं और अलग-अलग प्रतियोगिताओं में हमारे स्कूल का प्रतिनिधित्व भी करते हैं।
  • हमारी कक्षा में अंडर 16 समूह से एक राष्ट्रीय स्तर का बैडमिंटन खिलाड़ी भी है, वह हमेशा हमें गर्व महसूस कराता है। वह न सिर्फ प्राथमिक छात्रों के लिए एक प्रेरणास्रोत है बल्कि माध्यमिक वर्ग के छात्रों के लिए भी एक प्रेरणा है।
  • इस तरह के छात्रों का एक संयोजन हमें वाकई में श्रेष्ठ होने का एहसास दिलाता है और हम विशेष महसूस करते हैं। हर कोई हमें जानता है कि हम उस अनोखी कक्षा से हैं जिसके छात्र विशेष है।
  • मुझे मेरी कक्षा से प्यार करने का एक और कारण है और वो हैं मेरी क्लास टीचर; वे बेहद ही विनम्र है और हमेशा हमें कई तरह की गतिविधियों में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करती रहती है। वह हमारी क्लास टीचर भी है इसलिए जब भी हमें प्रैक्टिस के लिए जाना होता है, वह हमें इजाज़त देती है और हमारे खाली वक़्त में एक्स्ट्रा क्लास लेती है और इस तरह से, हमें अपनी पढ़ाई पर ध्यान केन्द्रित करना भी आसान हो जाता है।

इस बात की हमेशा सिफारिश की जाती है कि अच्छे दोस्त रखने चाहिये लेकिन जब आपके पास एक कलात्मक कक्षा होती है तो आप उनसे सीखने से कैसे पीछे रह सकते हैं। हमारे प्रिंसिपल और अन्य शिक्षक भी उनकी प्रशंसा करते हैं और हमारी कक्षा वास्तव में हमारे स्कूल में सर्वश्रेष्ठ में से एक है।

Essay on My Classroom

निबंध 3 (600 शब्द) – मेरी सबसे अच्छी जगह मेरा क्लासरूम

हम हमेशा एक निश्चित स्थान से प्यार करते हैं फिर चाहे यह हमारा घर हो या फिर हमारा स्कूल, जहाँ हम जाना या समय बिताना पसंद करते हैं। और मेरे लिए, यह मेरी कक्षा है जहाँ मैं रहना पसंद करता हूँ। जब हम अपनी सीखने की जगह से प्यार करते हैं तो यह हमारे दिल में एक विशेष स्थान बना लेता है।

मुझे मेरी कक्षा कई वजहों से पसंद है और मैंने उनमें से कुछ का उल्लेख यहाँ पर नीचे किया भी है:

सीखने का मंच

सीखना हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है और हम इसका हिस्सा बनना पसंद करते हैं। यह हमें एक बेहतर जीवन जीने और हमारे जीवन में सफल होने में मदद करता है। आप चाहे जो भी विषय पसंद करते हों मगर आपको सीखना होता है। मान लीजिए कि एक बच्चे को गणित विषय पसंद है और उसने केवल गणित पढ़ने का फैसला किया है लेकिन क्या यह वास्तव में संभव है? जो लिखा है उसे समझने के लिए आपको अंग्रेजी भी पढ़ना होगा। इससे यह पता चलता है कि सभी विषयों को सीखना आवश्यक है और एक बार जब आप बुनियादी ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं तो आप उच्च कक्षाओं में अपनी रुचि के अनुसार विषय चुन सकते हैं।

हम रचनात्मकता के लिए आमंत्रित हैं

मेरी कक्षा का सबसे अच्छा हिस्सा हमारे शिक्षक हैं जो हमें सोचने और अपने विचारों को विकसित करने के लिए प्रेरित करते हैं। मेरी कक्षा में एक रचनात्मक दीवार है और कोई भी छात्र इसपर कुछ भी रचनात्मक करने के लिए स्वतंत्र है। हाँ यह ध्यान रहे कि यहाँ पर कुछ भी नक़ल कर के नहीं किया जाना चाहिए। यह हमें अपनी पढ़ाई का उपयोग करने और कुछ रचनात्मक विचारों को लाने के लिए प्रेरित करता है। बड़े-बड़े अक्षरों में अपने नाम के साथ दीवार पर पेंटिंग या कोई रचनात्मक विचार रखना बहुत अच्छा लगता है। मुझे वाकई में इससे प्यार है।

शानदार दिखता है

मेरे स्कूल में, प्रत्येक कक्षा को एक थीम मिलता है, और छात्रों को अपनी कक्षा को उसी के अनुसार सजाना होता है। और, हमारा थीम ‘अंतरिक्ष’ है। इसलिए, पूरी कक्षा इतनी अच्छी लगती है कि मैं शब्दों में इसे व्यक्त नहीं कर सकता। हमने बेंचों को अंतरिक्ष के जहाजों की तरह सजाया हुआ है और वास्तव में हमारी कक्षा अंतरिक्ष केंद्र की तरह दिखती है। क्लास के बोर्ड को इस तरह से सजाया गया है कि यह एक अंतरिक्ष जहाज की खिड़की जैसा दिखता है।

उपलब्धि दीवार

हमारी कक्षा में एक उपलब्धि दीवार भी है जहाँ छात्रों की तस्वीरें लगायी जाती हैं। हर हफ्ते हमारे हाउस मीटिंग्स में तरह-तरह की प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है और उनमें जो जीतता है; उनकी तस्वीरें इस दीवार पर चिपका दी जाती हैं। यह अन्य छात्रों को बेहतर प्रदर्शन करने और इस दीवार पर जगह पाने के लिए प्रेरित करता है। जब भी हमारे स्कूल में किसी भी तरह का कोई निरीक्षण होता है, विभिन्न शिक्षक और प्रधानाध्यापक महोदय हमारी कक्षा में आते हैं और वे उन छात्रों के साथ-साथ इस उपलब्धि दीवार के विचार की भी काफी प्रशंसा करते हैं।

सप्ताहांत गतिविधियाँ

हम सभी अपने सप्ताहांत को अलग-अलग तरीकों से मनाते हैं, कभी हम किसी स्थान पर जाते हैं, और कभी हम घर पर ही रहते हैं। तो, जो लोग अपना सप्ताहांत एक नई जगह पर बिताते हैं या कुछ नया करते हैं, वे कक्षा के बीच वाले खाली समय में अपने विचार व्यक्त करने के लिए आमंत्रित होते है। यह हमें अगली बार यात्रा करने के लिए उन नई जगहों को जानने में मदद करता है और वाकई में एक बेहद ही नई अवधारणा है जिसका पालन सिर्फ हमारी कक्षा में किया जाता है।

सोशल मीडिया टच-अप

मेरे कक्षा की गतिविधियाँ हमारे कक्षा शिक्षकों द्वारा सोशल मीडिया पर अपडेट की जाती हैं और यह हमें अच्छा प्रदर्शन करने के लिए हमेशा प्रेरित करता हैं। इस तरह, हम कई अन्य लोगों के साथ भी जुड़े हैं और यह अवधारणा मुझे वाकई में बेहद पसंद है।

सीखना मजेदार होना चाहिए और मेरी कक्षा इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। हम साथ जश्न मनाते हैं, साथ में सीखते हैं और साथ में ही खुद का आनंद भी लेते हैं। दूसरों को भी हमारी कक्षा से सीखना चाहिए और इसका सारा श्रेय मेरी कक्षा के शिक्षक को जाता है। वह इतनी अच्छी है कि हमारी कक्षा हमारी पसंदीदा जगह बन गई है। कक्षा में हर एक चीज हमें प्रेरित करती है और मैं गर्व से कहता हूं कि; वह मेरी कक्षा है। मेरी कक्षा ने इस वर्ष सर्वश्रेष्ठ कक्षा का पुरस्कार भी जीता है और हर दिन हम इसे सर्वश्रेष्ठ सीखने की जगह बनाने के लिए नए विचार विकसित करते हैं। बहुत से छात्र कक्षा को छोड़कर बाहर ही वक़्त बिताना चाहते हैं लेकिन ये बदलाव उन्हें कक्षा में रहने और नई चीजें सीखने के लिए प्रेरित करते हैं।

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मेरे जीवन का लक्ष्य पर निबंध

नमस्कार दोस्तों, कहा जाता है ना कि जिंदगी में हर किसी का कोई ना कोई सपना जरूर होता है। वह डॉक्टर, शिक्षक, पायलट, आर्मी ऑफिसर, कुछ ना कुछ जरूर बनना चाहता है। तो आइए हम आपकी सहायता करते हैं कि आपको अपने जीवन के लक्ष्य के बारे किस तरह से सोचना चाहिए कि आप को अपने जीवन में क्या करना है।

Essay on Mere Jeevan ka Lakshya in Hindi

हम यहाँ पर मेरे जीवन का लक्ष्य पर निबंध शेयर कर रहे हैं। यह निबन्ध अलग-अलग शब्द सीमा में शेयर किया है, जिससे विद्यार्थियों को आसानी रहे। यह निबन्ध सभी कक्षाओं के लिए मददगार है।

यह भी पढ़े:   हिंदी के महत्वपूर्ण निबंध

मेरे जीवन का लक्ष्य पर निबंध (100, 150, 200, 250, 300 और 1000 शब्दों में)

मेरे जीवन का लक्ष्य पर निबंध 100 शब्द.

हर मनुष्य अपने जीवन में लक्ष्य बनाता है। मनुष्य का अपने जीवन के लिए लक्ष्य बनाना एक स्वाभाविक गुण माना जाता है। हर व्यक्ति कोई न कोई लक्ष्य या कोई न कोई प्राप्ति हासिल करना चाहता है। हर व्यक्ति के मन में सपने होते हैं और उसी सपनों को पूरा करने के लिए व्यक्ति काम करता है।

बिना लक्ष्य के व्यक्ति अपने जीवन में लड़खड़ा ना शुरू कर देता है। व्यक्ति के जीवन में लक्ष्य का होना बहुत ही ज्यादा जरूरी है। मनुष्य को अनुशासन पर चलाने में भी लक्ष्य का निर्धारण बहुत ही ज्यादा जरूरी है, जो व्यक्ति के सामने कोई न कोई टारगेट होता है, तो व्यक्ति अनुशासन के तहत मेहनत करता है। मैंने अपने जीवन में डॉक्टर बनने का सपना पूरा करने की बात छोटी उम्र में दिमाग में बिठा ली थी।

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मेरे जीवन का लक्ष्य पर निबंध 150 शब्द

विद्यार्थी भी अपने जीवन में शुरुआत से ही कोई लक्ष्य को चयनित कर लेते हैं। लक्ष्य हासिल करने के लिए विद्यार्थी हमेशा तत्पर रहता है। हर इंसान के द्वारा लक्ष्य का निर्धारण किया जाता है और उसी निर्धारण के आधार पर लक्ष्य प्राप्ति के पीछे मुकाम हासिल करने की चाहत रखते हैं।

मनुष्य के द्वारा निर्धारित किए गए लक्ष्य मनुष्य को विपरीत दिशाओं से मुकाबला करते हुए अपने मंजिल तक पहुंचने की चाहत पैदा करते हैं। लक्ष्य के आधार पर ही व्यक्ति सही राह पर चल सकता है। अन्यथा उस व्यक्ति के सामने हजार रास्ते मौजूद हो जाते हैं। जहां व्यक्ति कौन से रास्ते का चयन करें इसके बारे में सही से सोच नहीं पाता है। हर मनुष्य को अपने जीवन में एक लक्ष्य का निर्धारण करना चाहिए।

लक्ष्य का निर्धारण करना मनुष्य के लिए बहुत ही ज्यादा जरूरी है। मैंने अपने लक्ष्य के लिए अपने माता-पिता ओं को प्रथम गुरु मानते हुए उनका मुख्य सहयोग लिया है। इसके अलावा मैंने अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए सहपाठियों और गुरुजनों का सहयोग प्राप्त किया।

लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मैंने सही तरीके से कार्य की और लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक सही रास्ते का चयन किया। उसके पश्चात मैंने पूरे विश्वास के साथ लक्ष्य प्राप्ति के लिए कड़ी मेहनत करने में कोई भी कसर नहीं छोड़ी। तब जाकर मुझे अपना लक्ष्य हासिल हुआ।

मेरे जीवन का लक्ष्य पर निबंध 200 शब्द

लक्ष्य का निर्धारण करना और उसे हासिल करना मनुष्य के लिए एक नए जीवन की शुरुआत के समान होता है। जब मनुष्य वृद्धावस्था में भी अपने लक्ष्य को हासिल करता है तो उस समय मनुष्य के मन में खुशी के कोई ठिकाने नहीं होते हैं। बूढ़े को भी लक्ष्य की प्राप्ति जवान बना देती है।

लक्ष्य की प्राप्ति करने में जो कठिनाइयां सामने आती है। उन कठिनाइयों से भलीभांति परिचित होकर ही आपको विश्वास और लगन के साथ परिश्रम करना चाहिए। व्यक्ति अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए माता-पिता और गुरुजनों का सहयोग ले सकता है।

गीता में एक बात कही गई है कि “कर्मियेवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचनः” इसका तात्पर्य देखा जाए तो इसका मतलब मुझे पूर्ण विश्वास है, कि मैं अपने लक्ष्य तक अवश्य पहुंच जाऊंगा। यदि व्यक्ति के मन में यह आत्मविश्वास रहता है तो व्यक्ति अक्सर अपने लक्ष्य को आसानी से हासिल कर लेता है।

विद्यार्थी भी अपने जीवन में एक लक्ष्य का निर्धारण करते हैं। विद्यार्थियों के मन में भी बड़े होकर ऊंचे पद पर नौकरी हासिल करना, बड़े होकर डॉक्टर और इंजीनियर बनने का सपना होता है, जो विद्यार्थियों के लिए एक लक्ष्य और चुनौती की तरह होता है। यह लक्ष्य और चुनौती को हासिल करने के लिए विद्यार्थी पुरजोर से मेहनत करता हैं।

mere jeevan ka lakshya essay in hindi

मेरे जीवन का लक्ष्य पर निबंध 250 शब्द

हर व्यक्ति को अपने जीवन में कोई ना कोई उद्देश्य जरूर रखना चाहिए। एक लक्ष्य ही होता है, जो हमें हमारे सपनों तक पहुंचा सकता है और हमें एक अलग पहचान दे सकता है। जिस व्यक्ति का कोई सपना नहीं होता, कोई लक्ष्य नहीं होता, वह जिंदगी में कुछ नहीं कर सकता।

ऐसे लोगों को ही अक्सर कहते सुना है कि हमारी किस्मत ही हमारे साथ नहीं है। अगर हम मेहनत ही नहीं करेंगे तो हमें फल कहां से मिलेगा। इसीलिए भगवान ने भी गीता में कहा है कि कर्म करते रहो फल की इच्छा मत करो।

देखा जाए तो आपको हर व्यक्ति से सुनने को मिलेगा कि हमारा लक्ष्य यह है, हम यह बनना चाहते हैं। कुछ लोग डॉक्टर बनना चाहते हैं, तो कुछ लोग इंजीनियर बनना चाहते हैं, कुछ लोगों को बच्चों को पढ़ाने में दिलचस्पी होती है, इसलिए वे शिक्षक बनना चाहते हैं, कुछ लोग अभिनेता बनना चाहते हैं, जबकि वहीं कुछ लोग नेता बनना चाहते हैं। हमारा तात्पर्य यह है कि इंसान वही बनना चाहता है, जिसमें उसकी रूचि होती है, जिसमें वह आत्मसमर्पण से मेहनत कर सकता है।

कुछ लोग अपने लक्ष्य को अपनी हैसियत के हिसाब से चुनते हैं, तो कुछ लोग अपने लक्ष्य अपनी सोच के हिसाब से, जिसकी जैसी सोच होती है, वैसा ही वह लक्ष्य चुनता है। कुछ लक्ष्य तो सुनने में और करने में अच्छे होते हैं, परंतु कुछ लक्ष्य ऐसे होते हैं जो हमें अपने लक्ष्य से भ्रमित कर सकते हैं।

देखा जाए तो जीवन में हर व्यक्ति को चुनौतियां और समस्याओं का सामना करना पड़ता है। परंतु जीवन में किसी भी व्यक्ति को हार नहीं माननी चाहिए। हमें तब तक प्रयास करना चाहिए, जब तक हमारा शरीर हमारे साथ है।

कई लोग कहते हैं कि आपने ऐसा लक्ष्य चुना है, यह तो आपसे नहीं हो पाएगा। ऐसा हम मान सकते हैं कि हमारा लक्ष्य कठिन हो सकता है, लेकिन असंभव नहीं। हमें निरंतर प्रयास करते ही रहना चाहिए। कभी ना कभी सफलता हमारे कदम चूमेगी।

मेरे जीवन का लक्ष्य पर निबंध 300 शब्द

मैंने अपने जीवन में एक लक्ष्य का निर्धारण किया है। जब मैं पांचवी कक्षा पास कर चुका था तब मैंने डॉक्टर बनने का एक लक्ष्य निर्धारित किया था और डॉक्टर बनकर देश की सेवा करने का सौभाग्य प्राप्त करने के लिए मैंने अपने लक्ष्य का पीछा करना शुरू किया।

लक्ष्य का पीछा करते-करते ही मैंने अपनी पढ़ाई पर बहुत जोर दिया। दिन रात मुझे अपने लक्ष्य को हासिल करने की चाहत रहती हैं। मैं अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए कठिन परिश्रम शुरू कर चुका हूं। डॉक्टर बनने के लिए मैंने परिश्रम में अपनी तरफ से कोई भी कसर नहीं छोड़ी।

डॉक्टर बनने के लिए जो पढ़ाई करनी होती है, उस पढ़ाई के लिए मैंने अपनी पूरी मेहनत जौक दी। पढ़ाई करने मैं मेहनत करने के साथ-साथ डॉक्टर बनने के लिए और क्या जरूरी होता है। उसके बारे में भी मैंने दसवीं कक्षा से ही शुरुआत कर ली।

दसवीं कक्षा के बाद मैंने विज्ञान वर्ग का चयन करके डॉक्टर बनने के लिए पहली सीढी पर कदम रखा था। 11वीं और 12वीं कक्षा में ने बायोलॉजी विषय से पूरी की और उसके पश्चात एंट्रेंस एग्जाम में भाग लिया।

जब मैंने एंट्रेंस एग्जाम को पास कर लिया तो मुझे डॉक्टर के लिए जरूरी डिग्री एमबीबीएस के लिए कॉलेज मिल गया था। अब मैंने कॉलेज में कड़ी मेहनत के साथ पढ़ाई करना शुरू किया। धीरे-धीरे मेरी कॉलेज की डिग्री पूरी होती गई और मेरा डॉक्टर बनने का सपना भी पूरा होने वाला था।

उसके पश्चात मैंने मास्टर डिग्री हासिल की और ट्रेनिंग की अवधि पूरी कर के अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लिया। मुझे अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का बहुत ज्यादा गर्व महसूस होता है। जब मैंने लक्ष्य हासिल किया था, तब मेरे मन में खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा था।

मेरे जीवन का लक्ष्य पर निबंध 1000 शब्द

यह बिल्कुल सच वाक्य है कि बिना उद्देश्य वाला व्यक्ति जीवन में कभी कुछ नहीं कर सकता, उसका जीवन जानवर के समान होता है। ऐसा कहा जाता है कि इंसान और जानवर में यही फर्क होता है।

जानवर अपने लिए सब कुछ नहीं कर सकता, परंतु इंसान चाहे तो अपने लिए सब कुछ कर सकता है। इसीलिए जीवन में हर व्यक्ति का कोई ना कोई लक्ष्य जरूर होना चाहिए। अगर हमारा जिंदगी में कोई भी लक्ष्य नहीं होगा तो समाज भी हमें नहीं स्वीकारता।

लक्ष्य/उद्देश्य क्या होता है?

उद्देश्य यह बहुत ही छोटा सा शब्द है, लेकिन इसका हमारे जीवन में बहुत ही बड़ा महत्व है। जीवन में जो सपना हम सच करना चाहते हैं, उसे ही उद्देश्य कहा जाता है। लक्ष्य का मतलब होता है, पक्का इरादा करना, निरंतर प्रयास करना, किसी चीज से आकांक्षा रखना, अपनी इच्छा को पूरा करना। बचपन में हर कोई अपने जीवन को लेकर कोई ना कोई सपना जरूर देखता है।

कोई व्यक्ति चाहता है कि मैं कलाकार बनूंगा तो कोई व्यक्ति चाहता है मैं डॉक्टर बनूंगा, यही उद्देश्य का मतलब होता है। अगर हमें अपना उद्देश्य पूरा करना है तो इसके लिए हमें हर चुनौती और समस्या का सामना डट कर करना होगा। उसको पार करके ही हम अपने सपने को पूरा कर सकते हैं।

लक्ष्य/उद्देश्य का क्या महत्व होता है?

साधारण शब्दों में कहा जाए तो जिस व्यक्ति का कोई उद्देश्य नहीं होता, उस व्यक्ति को समाज नकार देता है। उसे अपने समाज में जगह नहीं देता है। अगर हमें अपना सपना पूरा करना है तो हमें सफलता के लिए हर पड़ाव को पूरा करना होगा। चाहे कितनी भी बार हमारे कदम क्यों ना लड़खड़ाए हमें वहां डटकर खड़े रहना होगा।

हमारे जीवन में लक्ष्य का बहुत अधिक महत्व है, क्योंकि लक्ष्य के बिना जीवन जीने का कोई मतलब नहीं होता है। अगर आपका आपके जीवन में कोई ना कोई लक्ष्य होता है तो आपका जीवन बहुत ही आनंदमय के साथ बीतता है और यह हमारे जीवन जीने का सबसे सर्वोत्तम तरीका है।

हमारे जीवन में प्राथमिक उद्देश्य क्या होना चाहिए?

सभी व्यक्तियों के जीवन में अलग-अलग प्राथमिक उद्देश्य होते हैं। किसी के लिए सबसे पहले उनका परिवार आता है, तो किसी के लिए सबसे पहले उनका सपना होता है। अगर आपको अपने सपने को पूरा करना है तो इसके लिए आपको खुद को फिट रखना होगा, जीवन को पूरी स्वतंत्रता के साथ जीना होगा और सफलता के लिए हर प्रयास करना होगा। यही हमारे प्राथमिक उद्देश्य होने चाहिए।

उद्देश्य कितने प्रकार के होते हैं?

हर व्यक्ति के जीवन में उनके लिए उद्देश्य कई प्रकार के होते हैं। जिस तरह से सभी व्यक्ति अलग होते हैं, उसी तरह से उनके उद्देश्य भी अलग होते हैं। क्योंकि कुछ व्यक्ति शिक्षक बनना चाहते हैं तो कुछ पायलट बनना चाहते हैं, इसी तरह से कुछ लोग इंजीनियरिंग करना चाहते हैं, जबकि कुछ लोग चित्रकला में दिलचस्पी रखते हैं। इसी तरह से उदेश्य कई प्रकार के हो सकते हैं।

हमें जीवन का सही उद्देश्य कैसे चुनना चाहिए?

ऐसा कहा जाता है कि जीवन में सबसे पहली गुरु हमारी मां होती है। अगर आपको अपने उद्देश्य को चुनने में मुश्किल हो रही है, तो सबसे पहले आप अपनी मां के पास जाइए, क्योंकि आपकी मां से बेहतर आपको कोई नहीं जान सकता। इसीलिए आपको आपके प्रश्नों के उत्तर आपकी मां के पास बेहतर तरह से मिल सकेंगे।

आजकल की युवा पीढ़ी को इन समस्याओं का अधिक सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि उनके सामने इतने अत्यधिक विकल्प हैं कि वह असमंजस में पड़ जाते हैं कि उनके लिए कौन सा बेहतर विकल्प है। इसके लिए वह अपने प्रिय जनों से या अपने गुरु से वार्तालाप करके इस समस्या का हल पा सकते हैं।

हमें अपने लक्ष्य को कैसे प्राप्त करना चाहिए?

अगर हमें अपने लक्ष्य को वाकई में प्राप्त करना है तो इसके लिए हमें बहुत ही मेहनत करनी होगी। इसके लिए आपको कुछ बातें याद भी रखनी होगी जो निम्नलिखित हैं:

  • हमें हमेशा अपने लक्ष्य के प्रति सक्रिय रहना चाहिए और लगातार काम करते रहना चाहिए।
  • जितना हो सके हमें नकारात्मक बातों को दिमाग में नहीं लाना चाहिए।
  • सभी काम हमें धैर्य पूर्वक करने चाहिए और काम में संतुलन बनाए रखना चाहिए।
  • सभी काम हमें ध्यान पूर्वक करना चाहिए।
  • असफलता और मुसीबतों से नहीं घबराना चाहिए बल्कि, गलतियों को सुधार कर और बेहतर बनाना चाहिए।
  • हमें किसी सफल व्यक्ति से सहायता लेनी चाहिए और अपना मार्गदर्शन करना चाहिए।
  • अंतिम परिणाम की कल्पना करनी चाहिए यह सोचना चाहिए कि वाकई में हम यह काम कर सकते हैं।
  • सबसे जरूरी बात हमें अपने लक्ष्य पर अडिग रहना चाहिए।

इसी तरह से हमें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ध्यान केंद्रित रखना होगा। अगर आप मेहनत से अपने लक्ष्य को प्राप्त करना चाहेंगे तो आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता। आपको सफलता जरूर मिलेगी।

इसी प्रकार हमें अपनी इच्छा अनुसार अपने लक्ष्य को हर हाल में पूरा करना ही चाहिए। अगर हमें इसके लिए किसी की सहायता लेनी पड़ती है तो हमें सहायता बेझिझक मांगनी चाहिए। सहायता मांगने में शर्म नहीं करनी चाहिए। हमें अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए हमेशा दृढ़ रहना चाहिए। तभी हम अपने सपने को पूरा कर पाएंगे और जीवन में सफल हो सकेंगे।

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Rahul Singh Tanwar

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Comments (4).

Very-very good anucched . It was so helpful for my Hindi homework

Ati labhdayak kal mera language paper h

Osamm labhdayak hai ☺️☺️☺️

Aapka lakshya ka niband bahut hi achha hai

Sir apne lakshya ko drid banay rakhne ke liye kya karna chahiye

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essay for class ka

Essay on Diwali

essay on diwali

Here we have shared the Essay on Diwali or Deepawali in detail so you can use it in your exam or assignment of 150, 300, 500, or 1000 words.

You can use this Essay on Diwali in any assignment or project whether you are in school child (class 10th or 12th), a college student, or preparing for answer writing in competitive exams. 

Topics covered in this article.

Essay on Diwali in 150 words

  • Essay on Diwali in 250-300 words
  • Essay on Diwali in 500-1000 words

Diwali, the festival of lights, is a widely celebrated Hindu festival in India. It symbolizes the victory of light over darkness and good over evil. During Diwali, homes are adorned with lights, rangolis, and decorations. Families come together, exchange gifts, and enjoy delicious sweets and snacks. Fireworks illuminate the night sky, adding to the festive atmosphere.

Diwali holds deep spiritual significance, commemorating Lord Rama’s return to Ayodhya after defeating the demon king Ravana. It also marks the beginning of a new year for many communities. Beyond its cultural and religious importance, Diwali promotes unity, joy, and compassion. It encourages people to spread happiness and love, transcending differences.

In conclusion, Diwali is a festival that brings people together, celebrates the triumph of good over evil, and spreads light and joy. It is a time to appreciate the blessings in our lives and to share happiness with others.

Essay on Diwali in 250-350 words

Diwali, also known as Deepavali, is one of the most significant festivals celebrated in India. It holds immense cultural, religious, and social importance for people of the Hindu faith. The festival spans over five days and signifies the victory of light over darkness and good over evil.

Diwali is a time of immense joy and enthusiasm. The preparations begin weeks in advance as people clean and decorate their homes. Colorful rangolis, Diyas (earthen lamps), and decorative lights adorn every corner, creating a mesmerizing ambiance. The air is filled with excitement and anticipation as families come together to celebrate.

The festival is deeply rooted in mythology. It commemorates Lord Rama’s return to Ayodhya after 14 years of exile and his victory over the demon king Ravana. The lighting of lamps and the bursting of fireworks symbolize the triumph of light and righteousness. Goddess Lakshmi, the goddess of wealth and prosperity, is also worshipped during Diwali. People offer prayers and seek her blessings for a prosperous year ahead.

Diwali is not only a religious festival but also a time for social bonding and celebration. Families and friends exchange gifts, sweets, and heartfelt wishes. The festival brings people from diverse backgrounds together, fostering unity and harmony. It is a time to forgive past grievances, mend broken relationships, and spread love and joy.

However, in recent years, there has been a growing awareness about the environmental impact of Diwali celebrations. The excessive use of firecrackers contributes to air and noise pollution, harming both humans and the environment. Many people are now opting for eco-friendly celebrations by using less harmful alternatives like decorative lights and celebrating with eco-friendly fireworks.

In conclusion, Diwali is a vibrant and joyful festival that celebrates the triumph of good over evil. It brings families and communities together, spreading happiness, love, and prosperity. While celebrating, it is essential to be mindful of the environmental impact and embrace eco-friendly practices. Diwali is not just a festival of lights; it is a celebration of life, positivity, and the enduring spirit of goodness.

Essay on Diwali in 500 words

Title: Diwali – The Festival of Lights and Spiritual Significance

Introduction

Diwali, also known as Deepavali, is one of the most prominent and widely celebrated festivals in India. It holds immense cultural, religious, and social significance for people of the Hindu faith. The festival spans over five days and signifies the victory of light over darkness and good over evil. This essay explores the various aspects of Diwali, including its historical, religious, and social significance.

Historical and Religious Significance

Diwali finds its roots in ancient Indian mythology and legends. The most well-known story associated with Diwali is the return of Lord Rama, along with his wife Sita and brother Lakshmana, to the kingdom of Ayodhya after 14 years of exile. Their return symbolizes the triumph of righteousness over evil. Lord Rama’s victory over the demon king Ravana is celebrated with great fervor during Diwali.

The lighting of lamps and bursting of fireworks during Diwali signify the removal of darkness and the spreading of light and positivity. The tradition of lighting Diyas (earthen lamps) and illuminating homes and streets represents the victory of good over evil and the triumph of knowledge over ignorance. It is believed that these lights guide Goddess Lakshmi, the deity of wealth and prosperity, into people’s homes.

Social Significance

Diwali is not only a religious festival but also a time for social bonding, family gatherings, and community celebrations. Families come together to clean and decorate their homes, exchange gifts, and share festive meals. The festival brings people from diverse backgrounds together, fostering unity, love, and harmony.

During Diwali, people visit their relatives and friends, exchanging sweets, dry fruits, and gifts as a token of love and affection. It is also a time to forgive past grievances and mend broken relationships, as the festival promotes the spirit of forgiveness, reconciliation, and compassion.

Cultural Celebrations

Diwali celebrations go beyond religious rituals. The festival is marked by colorful rangoli designs, vibrant decorations, and intricate patterns created with colored powders, flowers, and Diyas. Fireworks light up the night sky, filling the air with joy and excitement.

The festival also showcases the rich cultural heritage of India. Traditional dances, music, and performances are organized to entertain and engage the community. Diwali melas (fairs) are held, featuring various cultural activities, folk dances, and food stalls. These events provide an opportunity for people to come together, celebrate, and appreciate the diverse cultural tapestry of India.

Environmental Concerns

While Diwali is a time of celebration and joy, it is essential to address the environmental concerns associated with the festival. The excessive use of firecrackers contributes to air and noise pollution, which poses health hazards and disturbs the ecosystem. It is crucial for individuals and communities to adopt eco-friendly practices, such as minimizing the use of fireworks and opting for environmentally friendly alternatives like decorative lights and lamps.

Diwali, the festival of lights, holds immense cultural, religious, and social significance in India. It is a time of joy, togetherness, and the triumph of good over evil. Diwali celebrations embody the values of unity, love, forgiveness, and the spirit of giving. However, it is equally important to celebrate the festival in an environmentally responsible manner. By embracing eco-friendly practices, we can ensure that the essence of Diwali, as a festival of light and hope, is preserved for future generations to enjoy.

Essay on Diwali in 1000 words

Title: Diwali – A Celebration of Light, Joy, and Cultural Significance

Introduction:

Diwali, also known as Deepavali, is one of the most widely celebrated festivals in India and holds immense cultural, religious, and social significance. The festival stretches over five days, and each day has its own significance and rituals. Diwali is a time of vibrant celebrations, where people come together to illuminate their homes with lamps, exchange gifts, indulge in delicious sweets, and participate in various cultural activities. This essay explores the historical origins, religious significance, cultural traditions, social impact, and environmental considerations associated with Diwali.

I. Historical Origins of Diwali

The roots of Diwali can be traced back to ancient Indian mythology and various historical events. One of the most popular legends associated with Diwali is the story of Lord Rama’s return to Ayodhya after defeating the demon king Ravana. The people of Ayodhya celebrated Rama’s homecoming after 14 years of exile by lighting lamps, signifying the triumph of good over evil. Diwali also commemorates the victory of Lord Krishna over the demon Narakasura, symbolizing the triumph of righteousness and the eradication of darkness.

II. Religious Significance of Diwali

Diwali holds deep religious significance for Hindus, Jains, and Sikhs. For Hindus, it is a time to worship Goddess Lakshmi, the deity of wealth and prosperity. Devotees clean their homes and create intricate rangoli designs to invite the goddess into their households. Diwali is also associated with the worship of Lord Ganesha, the remover of obstacles, and the offering of prayers to seek divine blessings.

In Jainism, Diwali marks the spiritual enlightenment and liberation of Lord Mahavira, the 24th and last Tirthankara. Jains celebrate Diwali by offering prayers, visiting temples, and engaging in acts of charity and compassion.

For Sikhs, Diwali holds historical significance as it commemorates the release of Guru Hargobind Sahib Ji, the sixth Sikh Guru, and 52 other kings from imprisonment in the Gwalior Fort. This event represents the victory of truth and freedom.

III. Cultural Traditions and Celebrations

Diwali is not only a religious festival but also a time for cultural celebrations and festivities. The preparations for Diwali begin weeks in advance, as people clean their homes and decorate them with colorful rangoli designs, bright lights, and flowers. The lighting of diyas (earthen lamps) and candles is a significant aspect of Diwali, symbolizing the triumph of light over darkness.

During Diwali, families come together to perform puja (worship) rituals, exchange gifts, and share special meals. Traditional sweets and snacks, such as ladoos and gujiyas, are prepared and distributed among relatives, friends, and neighbors. The exchange of gifts signifies love, respect, and the strengthening of relationships.

Cultural performances, such as traditional dances like Garba and Bharatanatyam, music concerts, and plays, are organized during Diwali. These cultural activities showcase the rich heritage of Indian art and provide a platform for artists to display their talent.

IV. Social Impact and Community Bonding

Diwali serves as a unifying force, bringing people from different communities, religions, and backgrounds together. It is a time when families and friends come together to celebrate and bond. Diwali encourages individuals to visit their loved ones, exchange greetings, and share the joy of the festival.

The spirit of giving and sharing is strongly emphasized during Diwali. Many people extend acts of kindness by donating to charities, distributing food to the underprivileged, and supporting those in need. This collective effort to help others promotes empathy, compassion, and social cohesion.

Diwali also fosters a sense of unity and harmony among communities. People of different religions and cultures join in the celebrations, participating in events and exchanging cultural experiences. The festival acts as a platform for cultural exchange, fostering understanding and appreciation for diversity.

V. Environmental Considerations

In recent years, there has been growing concern about the environmental impact of Diwali celebrations. The excessive use of firecrackers during Diwali contributes to air and noise pollution, causing harm to human health and the environment. Additionally, the disposal of firework waste poses a significant challenge.

To address these concerns, there has been a shift towards eco-friendly Diwali celebrations. Many individuals and communities now opt for alternative ways to celebrate, such as using decorative lights, eco-friendly fireworks, and organic materials for rangoli designs. Awareness campaigns promote the use of environmentally friendly practices, encouraging people to celebrate Diwali in a responsible manner.

Conclusion:

Diwali is a festival that encapsulates the essence of Indian culture, spirituality, and social values. It is a time when people come together to celebrate light, joy, and prosperity. Diwali’s historical origins, religious significance, cultural traditions, and social impact make it an integral part of Indian society.

As we celebrate Diwali, it is crucial to remain mindful of the environmental impact and embrace sustainable practices. By promoting eco-friendly celebrations and minimizing pollution, we can ensure that the essence of Diwali, as a festival of light and togetherness, is preserved for future generations to enjoy. Diwali serves as a reminder of the triumph of good over evil, the importance of unity, and the power of love and compassion in our lives.

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essay for class ka

मेरी कक्षा पर निबंध- My Classroom Essay in Hindi Language

In this article, we are providing information about My Classroom in Hindi- Short My Classroom Essay in Hindi Language. मेरी कक्षा पर निबंध, Meri Kaksha Essay in Hindi for class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, 11, 12 students.

मेरी कक्षा पर निबंध- My Classroom Essay in Hindi

10 lines on My Classroom in Hindi Essay for Kids ( 100 words )

मेरी कक्षा पर निबंध

1. मेरी कक्षा मेरी कक्षा तीसरी-डी है।

2. इसे पाठशाला की सबसे अच्छी कक्षा माना जाता है।

3. पढाई और खेल सभी में निपुण मेरी कक्षा के छात्र सबके प्रिय हैं।

4. मेरी कक्षा पहली मंजिल के आखिर में है।

5. यहाँ तीनों कोनों से हवा का अच्छा आदान-प्रदान होता है।

6. मेरी कक्षा में 30 बच्चे हैं और हम चार पंक्तियों में बँटे हुए हैं।

7. बारी-बारी हर सप्ताह कक्षा को सजाने का कार्यभार एक-एक करके हर पंक्ति को मिलता है।

8. हम अपनी कक्षा और अपने कुरसी-मेज़ सभी बहुत साफ़ रखते हैं। सभी कूड़ा कोने में रखे कूड़ेदान में ही डालते हैं।

9. हमारी अध्यापिका जी अपनी सुंदर लिखाई से ब्लैकबोर्ड पर प्रतिदिन दिन और तारीख लिखती हैं।

10. मेरी कक्षा मुझे सबसे अच्छी लगती है।

जरूर पढ़े-

Mere Vidyalaya par 10 Line

Meri Pathshala Nibandh

Meri Kaksha Par Nibandh | Hindi Essay My Classroom ( 150 words )

मैं एक पब्लिक स्कूल में चौथी कक्षा में पढ़ता हूँ। यह एक बड़ा और अच्छा स्कूल है। उसमें बहुत सारे क्लास-रूम हैं। मेरी कक्षा में तीन सेक्शन हैं। मैं सेक्शन ‘ए’ में हूँ।

मरा क्लास-रूम बड़ा तथा हवादार है। इसमें पर्याप्त प्रकाश है। इसकी खिडकि बड़ा-बड़ी हैं। दरवाजे भी बड़े-बड़े हैं। कक्षा में बिजली के पंखे लगे हैं। जब बोर्ड बड़े तथा अच्छी तरह पुते हुए हैं।

कमरे का फर्नीचर बहुत अच्छा है। यह नया और चमकदार है। मेजें पंक्तियों में लगाई गई है। दो पंक्तियों के बीचमें रास्ता रखा गया है। ब्लैक बोर्ड के पास ऊँचा चबूतरा है। इस पर एक मेज़ और कुर्सी रखी गई है। ये अध्यापक के लिए है।

हम क्लास रूम को साफ़ और स्वच्छ रखते है। इसकी दीवारे अच्छी तरह सजाई गई है। में वास्तव में अपने स्कूल को बहुत प्यार करता हूँ।

My Classroom Essay in Hindi | मेरी कक्षा पर निबंध

मेरा नाम राहुल है और मैं नेशनल पब्लिक स्कूल में पाँचवी कक्षा का छात्र हूँ। मुझे मेरी कक्षा बहुत ही प्रिय है। यह एक बहुत बड़ा कमरा ही जिसके दो दरवाजे हैं। मेरी कक्षा स्कूल की इमारत की पहली मंजिल पर सीढ़ियों के साथ ही है और इसके एक तरफ खिड़किया है जहाँ से स्कूल का मैदान दिखाई देता है। मेरी कक्षा में 40 बैंच और अध्यापक के लिए एक लैक्चर स्टैंड और कुर्सी भी है। 40 बेंचो को चार पंक्तियों में लगाया गया है और एक बेंच पर दो बच्चे बैठते हैं। मेरी कक्षा में आगे की तरफ एक ग्रीनबोर्ड और पीछे की तरफ एक नोटिस बोर्ड है। नोटिस बोर्ड पर बच्चों के द्वारा बनाई गई कलाकृतियों और सुविचारों को चिपकाया जाता है।

मेरी कक्षा में 80 विद्यार्थी है और सब एक दुसरे की सहायता करते हैं। मेरी कक्षा में पढ़ाने के लिए प्रोजेक्टर की भी व्यवस्था है। मेरी कक्षा में दो बड़े रोशनदान भी है। इसमें दो ट्यूबलाईट और चार पंखे लगे हुए हैं। कक्षा के एक कोने में छोटी अलमारी भी रखी हुई है जिसमें हमारी फाईलों को रखा जाता है।

कक्षा में दीवारों महान स्वतंत्रता सैनानियों की तस्वीर लगी हुई है और भारत का नक्शा भी टँगा हुआ है। मेरी कक्षा में रोज ग्रीन बॉर्ड पर सुविचार लिखा जाता है। कक्षा के एक कोने में कूड़ेदान रखा है और सभी बच्चे कूड़ा उसी में डालते है। मेरी कक्षा में हवा आने का प्रबंध हर तरफ से हैं। कक्षा में फर्श पर सफेद टाईले लगीं हुई है जिनकी नियमित रूप स् सफाई होती है और ग्रीनबोर्ड और नोटिस बोर्ड को सजाने की जिम्मेवारी प्रत्येक सप्ताह अलग अलग पंक्ति की होती है और प्रत्येक पंक्ति इसे सजाने की बेहतरीन कोशिश करती है। मेरी कक्षा हमेशा बहुत ही साफ सूथरी रहती है और मुझे इससे बहुत प्यार है।

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इस लेख के माध्यम से हमने  Meri Kaksha Nibandh | Essay | My Classroom Essay in Hindi  का वर्णन किया है और आप यह निबंध नीचे दिए गए विषयों पर भी इस्तेमाल कर सकते है।

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2 thoughts on “मेरी कक्षा पर निबंध- My Classroom Essay in Hindi Language”

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nice essay sir

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Thank you Nice essay

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Hindi Essay on “Mere Jeevan ka Lakshya”, “मेरे जीवन का लक्ष्य”, Hindi Essay for Class 5, 6, 7, 8, 9 and Class 10 Students, Board Examinations.

मेरे जीवन का लक्ष्य

Mere Jeevan ka Lakshya

5 Hindi Essay on ” Mere Jeevan Ka Lakshya”

निबंध नंबर : 01

मानव जीवन में हम बड़े-बड़े काम कर सकते हैं। हम सभी अपने जीवन में कोई-न-कोई लक्ष्य बनाते हैं। उस लक्ष्य को पूरा करने के लिए कठिन परिश्रम भी करते हैं। अपने बड़ों से हमें बहुत प्रेरणा मिलती है और हम भी उनके जैसा बनना चाहते हैं।

पाँचवी कक्षा में कुछ तय करने के लिए मैं बहुत छोटा हूँ परंतु स्वयं को एक फौजी अफसर के रूप में देखना चाहता हूँ। मुझे अपने देश के लिए कुछ कर गुजरने की इच्छा होती है। जब मैं समाचारों में बाहरी ताकतों की हरकतों। के बारे में पढ़ता हूँ तब मेरा खून खौलने लगता है।

वरदी पहने जवानों को देख मैं बहुत उत्साहित होता हूँ। मेरे दादा जी भी फौज में एक ऊँचे पद पर थे। सभी उनका बहुत सम्मान करते थे। उनके साहस की बातें सुनकर मेरे मन में भी फौजी बनने की इच्छा प्रबल हो उठती  है।

मेरे माता-पिता मुझे अपने लक्ष्य की ओर सदा प्रोत्साहित करते हैं। मैं भी स्वयं को फौजी वरदी में देखने के स्वप्न देखता रहता हूँ।

(150 Words)

निबंध नंबर: 02

मेरे जीवन का लक्ष्य अथवा उद्देश्य

भूमिका- मनुष्य अनेक कल्पनाएं करता है। वह अपने को ऊपर उठाने के लिए अनेक योजनाएं बनाता है। कल्पना सबके पास होती है लेकिन उस कल्पना को साकार करने की शान्ति किसी-किसी के पास होती है। मनुष्य जीवन एक यात्रा के समान है। यात्री को पता होता है कि मैंने यहाँ जाना है तो वह वहीं की टिकट लेकर अपनी यात्रा आरम्भ कर देता है और अपने लक्ष्य तक पहुँच जाता है। अगर उसे यह पता नहीं कि मैंने कहाँ जाना है तो यात्रा का कोई अर्थ नहीं रह जाता। सभी अपने सामने कोई न कोई लक्ष्य रखकर चलते हैं।

विभिन्न लक्ष्य- विभिन्न व्यक्तियों के लक्ष्य भी विभिन्न होते हैं तो कोई अध्यापक बनना चाहता है, कोई डाक्टर बनना चाहता है। कोई इंजीनियर बनकर देश की सेवा करना चाहता है। कभी वह सैनिक बनकर देश की सीमा की रक्षा करना चाहता है। कोई कर्मचारी बनकर दफतर में बैठना पसन्द करताहै। कोई व्यापारी बनना चाहता है तो कोई नेता और अभिनेता बनना चाहता है। मेरे मन की एक कल्पना है मैं डॉ० बनकर ग्रामीण लोगों की सेवा करना चाहता हूँ।

मेरे लक्ष्य का महत्त्व – मैंने तो आरम्भ से ही अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित कर लिया है। मेरे जीवन का लक्ष्य है डॉ० बनना और अपनी समाज की सेवा करना। डॉ० का लक्ष्य केवल पैसा कमाना नहीं होना चाहिए। देश और समाज की सेवा करना उनका लक्ष्य होना चाहिए। मेरा लक्ष्य तो समाज की सेवा करना है- धन कमाना नहीं।

हमारे प्राचीन ग्रन्थों में ऐसा लिखा है कि समाज में दो व्यक्तियों का बड़ा उपकार है। पहला है शिक्षक जो लोगों की अज्ञानता को दूर करके ज्ञान रूपी दीपक दिखाकर उनका जीवन सफल बनाता है। दूसरा है डॉक्टर जो बीमार लोगों का उपचार करके उनको जीवन दान देता है। दोनों के कर्म बड़े पावन है लेकिन मैंने डॉक्टर बनकर सेवा करना पसन्द किया है। हमारे देश में जो डॉक्टर बनते हैं या तो विदेशों में भागकर ज्यादा धन कमाना चाहते हैं या फिर अस्पताल बनाकर लोगों का धन लूटते हैं। मुझे ऐसा पसन्द नहीं।

मैं चाहता हूँ कि दूर किसी गाँव में जाकर अपना अस्पताल बनाऊं ताकि गाँव के लोगों को रोगों से मुक्त जीवन मिले। उनको छोटी-मोटी बिमारी के कारण शहर की और न भागना पड़े और अपना धन लुटाना पड़ा। मेरी यह चाहत है कि मैं गरीबों से उतनी ही फीस लूं जिससे अस्पताल का काम सुचारू रूप से चल सके। मेरी यह चेष्टा रहेगा। कि गरीबो का मुफ्त इलाज करूं।

देश की वर्तमान दशा- भारत एक विकासशील देश है। परन्तु यहाँ के अधिकांश निवासी शिक्षा, गरीबी, बीमारी तथा बेरोजगारी का शिकार हैं। बीमारी की हालत में वे अपना इलाज ठीक प्रकार से नहीं करवा पाते। आज देश में ऐसे डॉक्टरों की आवश्यकता है जो सच्चे मन से बीमार लोगों का उपचार करें। मैंने डॉक्टर बनकर समाज की सेवा करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।

उपसंहार- मेरी तुच्छ वृद्धि के अनुसार एक सफल डॉक्टर और अच्छा डॉक्टर बनना आसान नहीं है। यह कार्य कठिन है। फिर भी मैंने अपने लक्ष्य को पूर्ण करने के लिए अभी से प्रयल प्रारम्भ कर दिए है। मेरे पिता जी भी ऐसा ही चाहते हैं कि मैं एक डॉक्टर बूं और अपने समाज की सेवा करूं।

(500 Words)

निबंध नंबर : 03

मेरा जीवन-लक्ष्य

Mera Jeevan Lakshya 

बचपन में मेरे पिताजी कहा करते थे-“मेरा श्याम तो इंजीनियर बनेगा”, क्योंकि मैं बचपन में हथौड़ी से कुछ न कुछ कूटाकाटी किया करता था। जैसे-जैसे मैं बड़ा होता गया, मेरा रुझान भी इंजीनियर की ओर बढ़ता चला गया। मैं सोचता था-कितने सुनहरे होंगे वो जब मैं सचमुच का इंजीनियर बन जाऊँगा।

“जहाँ चाह, वहाँ राह।” दसवीं कक्षा में विज्ञान में मेरे 95 प्रतिशत अंक और गणित में 98 प्रतिशत अंक आए, तो मेरे अध्यापक ने मय कहा कि अगर मैं बारहवीं की परीक्षा में भी अच्छे नंबर लाऊँगा, तो अब इंजीनियर बन जाऊँगा। साथ ही यह भी संभव है कि इंजीनियरिंग के लिए मुझे सरकार की ओर से छात्रवृत्ति भी मिल जाए, क्योंकि सरकार मेधावी बच्चों को पढ़ने के लिए और कोर्स करने के लिए हर संभव सहायता करती है।

मुझे ज्ञात है कि समाज में इंजीनियर का एक ऊँचा स्थान है। लोग उसे आदर की दृष्टि से देखते हैं और उससे परिचित होने में गर्व का अनुभव करते हैं। आर्थिक दृष्टि से भी वह प्रथम श्रेणी का व्यवसाय है। इंजीनियर के लिए नौकरी और स्वतंत्र धंधा-दोनों ही रास्ते खुले हैं। अच्छे काम की सभी कद्र करते हैं। अनुभव और योग्यता के आधार पर पदोन्नति की संभावना भी रहती है। विदेशों में ऊँचे प्रशिक्षण के भी अवसर आते रहते हैं। निजी उद्योगों की नौकरी में उन्नति के इससे भी अधिक अवसर हैं, किन्तु यदि इंजीनियर चाहे तो अपना स्वतंत्र धंधा भी चला सकता है।

मेरी इच्छा है कि मैं इंजीनियर बनकर देश के औद्योगिक विकास में योगदान करूँ। हमारा देश औद्योगिक क्षेत्र में पिछडा हआ है, दुनिया की दौड़ में उसे आगे ले जाने का काम न तो क्लर्क कर सकते हैं, आर न दुकानदार। यह काम तो इंजीनियर ही कर सकता है। यदि मैं इंजीनियर बन जाऊँ तो जहाँ अपने जीवन के लिए अच्छी-खासी आजीविका जुटाऊँगा, वहीं देश की औद्योगिक प्रगति में भी सक्रिय योगदान दूगा। यह भी संभव है कि मैं कोई नया सुधार या आविष्कार कर सकू।।

मैं स्वयं इंजीनियर बनकर भारत के अन्य गरीब बच्चों को भी आर्थिक सहायता देकर इंजीनियर बनने में सहायता दूंगा। इसके अतिरिक्त समाज हितकर कार्यों के लिए शारीरिक एवं आर्थिक योगदान देकर अपने जीवन को सफल बनाऊँगा।

मुझे पूर्ण आत्मविश्वास है कि मैं अपने जीवन-लक्ष्य को अवश्य प्राप्त कर सकूँगा।

(350 Words)

निबंध नंबर : 04

My Aim in Life

विद्यार्थियों को अपना एक लक्ष्य अवश्य निर्धारित कर लेना चाहिए । फिर इस लक्ष्य के प्रति समर्पित हो जाना चाहिए । इसलिए मैंने भी अपने जीवन का एक लक्ष्य बनाया है। मैं एक डॉक्टर बनना चाहता हूँ । डॉक्टर की आमदनी जीने लायक पर्याप्त होती है । उसे समाज में भी उचित सम्मान मिलता है । सबसे बढ़कर उसे समाज-सेवा का पर्याप्त अवसर प्राप्त होता है । डॉक्टर उस समय लोगों की मदद करता है जब कोई और उसकी मदद नहीं कर सकता । वह बीमार व्यक्तियों को नया जीवन देता है । उसका काम बहुत उत्तम कोटि का है । इसलिए मैंने डॉक्टर बनने का पक्का निश्चय किया है । इसके लिए मैं अभी से कठिन श्रम कर रहा हूँ । मैं एक अच्छा डॉक्टर बनना चाहता हूँ । मैंने माता-पिता को अपना जीवन-लक्ष्य बता दिया है । वे मेरे निर्णय से बहुत खुश हैं । वे मुझे पर्याप्त प्रोत्साहन भी दे।

निबंध नंबर : 05

Mere Jeevan Ka Lakshya 

लक्ष्यपूर्वक जीने से जीवन का रस बढ़ जाता है। तब हमारे जीवन की गति को एक निश्चित दिशा मिल जाती है। मैंने निश्चय किया है कि मैं इंजीनियर बनकर इस संसार को नए-नए साधनों से संपन्न करूंगा। देश में जल-बिजली, सड़क या संचार-जिस भी साधन की आवश्यकता होगी, उसे पूरा करने में अपना जीवन लगा दूंगा। मैं बड़ा होकर भवन निर्माण की ऐसी सस्ती, सुलभ योजनाओं में रुचि लूँगा जिससे मकानहीनों को मकान मिल सकें। मैंने सुना है कि कई इंजीनियर पैसे के लालच में सरकारी भवनों, सड़कों, बाँधों में घटिया सामग्री लगा देते हैं। यह सुनकर मेरा हृदय रो पड़ता है। अतः मैं कदापि यह पाप-कर्म नहीं करूँगा, न अपने होते यह काम किसी को करने दूंगा। मैंने अपने लक्ष्य को पूरा करने की दिशा में प्रयास करने आरंभ कर दिए हैं। गणित और विज्ञान में गहरा अध्ययन कर रहा हूँ। मैं तब तक आराम नहीं करूंगा, जब तक कि लक्ष्य को पा न लें।

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17 Comments

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Make more essays for secondary classes also… PLEASE…

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Please write one for Cardiologist.. Please…?

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Very good essay keep it up ??

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Please write an short essay for law professional

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Thanks for the essay 😊😊😊

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Very useful 👌 👍 👏 😀

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Nice! Can you provide a अनुच्छेद on मेरा लक्ष्य: गायक/गायिका बनना ?

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That’s great but please make an essay on lawyer

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Thanks this is very helpful for me

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Thank you 😌

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Thank you for this . This essay is to good thank you 💜💜💜

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Nibandh

शिक्षा का महत्व पर निबंध

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रूपरेखा : प्रस्तावना - शिक्षा क्या है - शिक्षा की मुख्य भूमिका - ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का महत्व - गरीबों और माध्यम वर्ग के लिए शिक्षा का महत्व - उज्ज्वल भविष्य के लिए शिक्षा का महत्व - उपसंहार।

उचित शिक्षा सभी के लिए आगे बढ़ने और सफलता प्राप्त करने का एक मात्र मूल्यवान संपत्ति है जो मनुष्य प्राप्त कर सकता है। यह हममें आत्मविश्वास विकसित करने के साथ ही हमारे व्यक्तित्व निर्माण में भी सहायता करती है। स्कूली शिक्षा सभी के जीवन में वह पड़ाव है जिससे हर व्यक्ति को पार करना चाहिए क्योंकि यह सभी के जीवन में महान भूमिका निभाती है। हम सभी अपने बच्चों को और देश के युवाओं को सफलता की ओर जाते हुए देखना चाहते हैं, जो केवल अच्छी और उचित शिक्षा के माध्यम से ही संभव है।

शिक्षा को हम एक शब्द में बयान नहीं कर सकते है। शिक्षा हमारा जीवन है जो हमें जीना सिखाती है। शिक्षा सभी के जीवन में सकारात्मक विचार लाकर नकारात्मक विचारों को हटाती है। शिक्षा विकास का वह क्रम है, जिससे व्यक्ति अपने को धीरे-धीरे विभिन्न प्रकार से अपने भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक वातावरण में खुद को अनुकूल बना लेता है। जीवन ही वास्तव में शिक्षा है।

समाज में शिक्षा का महत्व उतना ही है जितना जीवन जीने के लिए पानी का होना। शिक्षा के उपयोग तो अनेक हैं परंतु उसे सही और नई दिशा देने की आवश्यकता है। शिक्षा हम सभी के उज्ज्वल भविष्य के लिए एक अहम भूमिका निभाती है। हम अपने जीवन में शिक्षा के इस साधन का उपयोग करके आप सफलता के मार्ग में आगे बढ़ सकते है। शिक्षा का उच्च स्तर लोगों की सामाजिक और पारिवारिक सम्मान तथा एक अलग पहचान बनाने में मदद करता है।

देश के ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का महत्व अधिक देखा गया है। हम अपने अभिभावकों और शिक्षक के प्रयासों के द्वारा अपने जीवन में अच्छे शिक्षित व्यक्ति बनते हैं। वे वास्तव में हमारे शुभ चिंतक हैं, जिन्होंने हमारे जीवन को सफलता की ओर ले जाने में मदद की। आजकल, शिक्षा प्रणाली को ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ावा देने के लिए बहुत सी सरकारी योजनाएं चलायी जा रही हैं ताकि, सभी की उपयुक्त शिक्षा तक पहुँच संभव हो। ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को शिक्षा के महत्व और लाभों को दिखाने के लिए टीवी और अखबारों में बहुत से विज्ञापनों को दिखाया जाता है क्योंकि पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों में लोग गरीबी और शिक्षा की ओर अधूरी जानकारी के कारण पढ़ाई करना नहीं चाहते हैं और जो लोग करना चाहते है उनके पास सुविधा उपलब्ध नहीं रहती की वे अच्छे से अपनी शिक्षा पूर्ण कर पाए।

शिक्षा प्रणाली महंगा होने के कारण गरीबों और माध्यम वर्ग के लोग 10वीं और 12वीं कक्षा के बाद उच्च शिक्षा प्राप्त करने में सफल नहीं हो पाते है। इसी कारण समाज में लोगों के बीच बहुत अंतर और असमानता देखने को मिलती है। गरीबों और माध्यम वर्ग के लोगों को अधिक महँगाई होने के कारण स्कूल या कालेज में शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति नहीं मिलती है। इस विषय में भारत सरकार के द्वारा सभी के लिए शिक्षा प्रणाली को सुगम और कम महंगी करने के लिए बहुत से नियम, कानून और योजना लागू किये गये हैं। आज देश में सबसे अधिक महत्वपूर्ण कार्य है, उच्च शिक्षा को सस्ता और सुगम बनाना ताकि देश का हर नागरिक को उचित शिक्षा मिलने का मौका मिले। इससे पिछड़े क्षेत्रों, गरीबों और मध्यम वर्ग के लोगों के लिए भविष्य में समान शिक्षा और सफलता प्राप्त करने के अवसर मिलेगा। आज के युग में देश के हर नागरिक को सही शिक्षा से अवगत कराना अनिवार्य है चाहे वह पुरुष हो या नारी, गरीब और माध्यम वर्ग का परिवार हो या अमीर वर्ग का परिवार। शिक्षा सबके लिए एक समान है और उसपे सबका अधिकार है।

उज्ज्वल भविष्य के लिए शिक्षा का महत्व कितना अधिक है उसे हम शब्दों में बयान नहीं कर सकते क्योंकि शिक्षा ही एक मात्र साधन है जो सभी के उज्ज्वल भविष्य के लिए आवश्यक उपकरण है। जीवन में शिक्षा के इस उपकरण का प्रयोग करके देश और समाज का नाम गर्व से ऊँचा कर सकते है। शिक्षा का समय सभी के लिए सामाजिक और व्यक्तिगत रुप से बहुत महत्वपूर्ण समय होता है। शिक्षा किसी भी बड़ी पारिवारिक, सामाजिक और यहाँ तक कि राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं को भी हल करने की क्षमता प्रदान करती है।

जीवन को सर्वगुण-सम्पन्न और सफल समृद्ध करने तथा सत, चित और आनंद प्राप्ति करने में शिक्षा का महत्व है। शिक्षा के सभी स्तर अपना एक विशेष महत्व और स्थान रखते हैं। शिक्षा लोगों के मस्तिष्क को बड़े स्तर पर विकसित करने का कार्य करती है तथा इसके साथ ही यह समाज में लोगों के बीच के सभी भेदभावों को हटाने में भी सहायता करती है। यह सभी मानव अधिकारों, सामाजिक अधिकारों, देश के प्रति कर्तव्यों और दायित्वों को समझने में हमारी सहायता करती है।

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गाय पर निबंध – Essay on Cow in Hindi

Essay on Cow in Hindi : दोस्तों आज हम ने गाय पर निबंध लिखा है जिस में हमने गाय की विशेषता उसके उपयोग गाय की नस्लें आदि के बारे में चर्चा की है.

अक्सर स्कूल के विद्यार्थियों को परीक्षाओं में Gay Per Nibandh  लिखने के लिए दिया जाता है यह निबंध उन सभी विद्यार्थियों को गाय के ऊपर निबंध लिखने में सहायता करेगा.

गाय पर लिखे गए निबंध की सहायता से कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, 11 और 12 के विद्यार्थियों को निबंध लिखने में सहायता होगी यह निबंध हमने विद्यार्थियों को ध्यान में रखते हुए अलग अलग समय सीमा में लिखा है.

Essay on Cow in Hindi

Get Some Essay on cow in hindi for student under 100, 150, 300 and 700 words.

10 line Essay on Cow in Hindi

1. गाय एक पालतू जानवर है.

2. गाय के एक मुहं और दो कान होते है.

3. गाय के दो बड़ी आंखें होती है.

4. गाय का नाक बड़ा होता है.

5. गाय के एक लंबी पूछ होती है.

6. गाय के चार पैर होते है.

7. गाय के चार थन होते है.

8. गाय का शरीर बड़ा और पीछे से चौड़ा होता है.

9. गाय सुबह शाम स्वादिष्ट दूध देती है.

10. गाय सफेद, काले, भूरे, रंग की होती है.

Best Essay on Cow in Hindi 150 words

गाय हमारी पृथ्वी पर हजारों वर्षों से विद्यमान है. गाय को हिंदू धर्म में मां के समान माना गया है क्योंकि जिस प्रकार हमारी मां हमारा पूरा ख्याल रखती है उसी प्रकार गाय भी हमें स्वादिष्ट दूध देकर हमें हष्ट पुष्ट बनाती है.

गाय एक शाकाहारी जानवर है जिसको आमतौर पर घरों में पालतू पशु के रूप में पाला जाता है. यह बहुत ही शांत किस्म की होती है और हर प्रकार के वातावरण में यह आसानी से ढल जाती है. गाय को खाने में हरी घास, फूल, पत्ते और खल बहुत पसंद है.

गाय के दो सिंग होते है जिनकी सहायता से वह अपनी रक्षा करती है. गाय 1 दिन में 30 से 40 लीटर पानी पी जाती है. गाय के दो बड़े कान होते है. इसका एक बड़ा और चौड़ा मुख होता है.

इसके दो आंखें होती है. गाय के चार पैर और चार थन होते है. इसके एक लंबी पूछ होती है. गाय का शरीर बड़ा और हष्ट पुष्ट होता है.

Gay Per Nibandh / lekh 300 words

गाय पूरे विश्व भर में पाई जाती हैं और इसे पूरे विश्व में एक पालतू जानवर के रूप में ही पाला जाता है. हमारे भारत देश में गाय कोई हिंदू धर्म में पूजनीय माना गया है यहां पर गाय की हत्या करना एक बहुत बड़ा अपराध होता है.

हमारे देश के गांव के लगभग हर घर में गाय को पालतू पशु के रूप में पाला जाता है और इसका दूध निकाल कर बेचा जाता है. गाय बहुत ही सुंदर होती है यह सफेद, काले, भूरे इत्यादि रंगों में पाई जाती है. इसकी कद काठी प्रत्येक देश में अलग प्रकार की देखने को मिलती है.

यह हमेशा शांत रहती है लेकिन जब भी इसको खतरा महसूस होता है तो यह अपने सींगो की सहायता से अपनी रक्षा करती है. इसकी कद काठी बहुत ही सुदृढ़ होती है. गाय एक शाकाहारी पशु है जो कि खाने में हरा चारा खाती है.

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इसके शरीर पर अन्य जानवरों की अपेक्षा छोटे बाल होते है. गाय की दो बड़ी आंखें होती है. इसकी याददाश्त बहुत अच्छी होती है यह अपने मालिक को एक क्षण में पहचान लेती है. इसके दो बड़े-बड़े कान होते है. इसके चार पैर और एक पूछ होती है.

गाय के एक नाक एक मुंह होता है इसका सर चौड़ा होता है. यह अपने आप को हर प्रकार के वातावरण के अनुसार ढाल सकती है. इसके चार थन होते है जिनसे पोष्टिक दूध निकलता है. गाय के मुंह में ऊपर वाले जबड़े में दांत नहीं होते और इसके नीचे वाले जबड़े में 32 दांत होते है.

गाय भी इंसानों की तरह ही 9 महीने का गर्भ धारण करती है. एक व्यस्क गाय 1 दिन में 30 से 50 लीटर पानी पी जाती है. गाय एक बार चारा खाने के बाद पूरे दिन उसे चबाती रहती है यह 1 मिनट में लगभग 50 बार चबाती (जुगाली) करती है.

Essay on Cow in Hindi 700 words

प्रस्तावना –

गाय एक पालतू पशु है जो कि आमतौर पर सभी जगह पर पाई जाती है. राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की 2012 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में करीब 190 मिलियन गायों की जनसंख्या है. पूरे विश्व भर से ज्यादा गाय हमारे भारत में ही पाई जाती है.

भारत में गाय को सम्मान की नज़रों से देखा जाता है क्योंकि हिंदू धर्म में कहा जाता है कि गाय के अंदर सभी 322 करोड़ देवताओं का वास होता है साथ ही भारत में रहने वाले लोगों ने गाय को मां की संज्ञा दी है. भारत में गाय का बहुत ख्याल रखा जाता है और गाय की पूजा भी की जाती है.

गाय का संबंध भगवान श्री कृष्ण से भी जुड़ा हुआ है क्योंकि उन्हें गाय बहुत पसंद थी और वे उन्हें खूब प्यार दुलार देते थे.

गाय की रचना –

गाय की रचना वैसे तो सभी देशों में समान ही पाई जाती है लेकिन गाय की कद काठी और नस्ल में फर्क होता है. कुछ गाय अधिक दूध देती हैं तो कुछ कम देते है. गाय का शरीर बहुत बड़ा होता है इसका वजन 720 किलो से भी अधिक होता है.

गाय का शरीर आगे से पतला और पीछे से चौड़ा होता है. गाय के दो बड़े कान होते हैं जिनकी सहायता से वे धीमी धीमी और अधिक तेज आवाज भी सुन सकती है. गाय के दो बड़ी आंखें होती हैं जिनकी सहायता से भी लगभग 360 डिग्री तक देख लेती है.

गाय एक चौपाया पशु है और चारों पैरों में खुर्र होते है जिसकी सहायता से भी किसी वे किसी भी कठोर स्थल पर चल सकती है. गाय का मुंह है ऊपर से चौड़ा और नीचे से पतला होता है. इसके पूरे शरीर पर छोटे-छोटे बाल होते है. गाय के एक लंबी पूछ होती है जिसकी सहायता से वे अपने शरीर पर लगी हुई मिट्टी को हटाती रहती है.

गाय के 4 थन होते हैं और इसकी गर्दन लंबी होती है. गाय के मुंह के सिर्फ निचले जबड़े में 32 दांत पाए जाते है इसीलिए गाय लंबे वक्त तक जुगाली कर के खाने को चबाती है. गाय के एक बड़ी नाक होती है. गाय के दो बड़े सिंग होते है.

गाय का उपयोग –

गाय एक पालतू पशु है इसलिए इसे घरों में पाला जाता है और सुबह शाम इसका दूध निकाला जाता है एक गाय एक समय में 5 से लेकर 10 लीटर दूध देती है कुछ अलग नस्ल की गाय अधिक दूध भी देती है.

पुराने जमाने में गायों को खेतों में हल जोतने के काम में भी लिया जाता था. गाय के दूध से दही छाछ पनीर और अन्य दूध से बनने वाली मिठाइयां बना सकते है.

गाय के गोबर को सुखाकर इंधन के काम में लिया जाता है साथ ही गाय की गोबर का उपयोग खेतों में खाद के रूप में भी प्रयोग किया जाता है.

वर्तमान में लोग गायों का मांस भी खाने लगे है जिसे “बीफ” कहा जाता है. गाय अपने पूरे जीवन भर में कुछ ना कुछ देती ही रहती है. गाय के मरणोपरांत इसकी हड्डियों से कई शिल्प कलाकृतियां बनाई जाती है और इसकी खालको सुखा कर चमड़े के रूप में उपयोग में लिया जाता है.

गाय के गोमूत्र को बहुत पवित्र माना गया है और इसके गोमूत्र को आयुर्वेदिक औषधियों के रूप में उपयोग में लिया जाता है जो कि कई बड़ी बीमारियों को जड़ से खत्म करने में कारगर है.

गाय की नस्लें –

भारत में कई प्रकार की नस्ल की गाय पाई जाती है. जिनमें कुछ अच्छे दूध देने वाली होती है तो कुछ मजबूत शरीर वाली होती हैं जिससे उनके बछड़े भी मजबूत शरीर वाले पैदा होते हैं और उनसे खेतों में हल जोतने के रूप में काम में लिया जाता है.

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भारत में पाई जाने वाली गाय की प्रमुख नस्लें – साहीवाल जाति, नागौरी, पवाँर, भगनाड़ी, राठी, मालवी, काँकरेज, सिंधी, दज्जल, थारपारकर, अंगोल या नीलोर इत्यादि है.

उपसंहार –

गाय शांतिप्रिय और पालतू पशु है हमारे भारत में गाय को मां का दर्जा इसीलिए दिया गया है क्योंकि यह में जीवन भर कुछ ना कुछ देती ही रहती है इसलिए हमें इसके जीवन से कुछ सीख लेनी चाहिए और हमेशा अपने जीवन को शांतिपूर्ण तरीके से जीना चाहिए और दूसरे लोगों से अच्छा व्यवहार करना चाहिए.

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हम आशा करते है कि हमारे द्वारा  Essay on Cow in Hindi  पर लिखा गया निबंध आपको पसंद आया होगा। अगर यह लेख आपको पसंद आया है तो अपने दोस्तों और परिवार वालों के साथ शेयर करना ना भूले। इसके बारे में अगर आपका कोई सवाल या सुझाव हो तो हमें कमेंट करके जरूर बताएं।

13 thoughts on “गाय पर निबंध – Essay on Cow in Hindi”

It’s my pleasure to connect with you 👍

Aapka easy padh kar bahut khushi hui!

Thank you Usha Thakur

कुछ लोग गोयो को पलते नही बल्की गयौ का करोबार करते है इसके बारे मे भी लिखिए विशेषता तो सबको पता है।

Hum jald hi likhnge

Dhanyawad ye gay ke nibhand ke liy

Dhanyawad Àmåñ Sharma

धन्यवाद निबंध के लिए।

सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद अजोय

gay par egi nibhand

Hame khushi hui aap ko nibandh accha laga, aise hi hindi yatra par aate rahe dhanyawad.

Cow par sab nibandh janta h isko Google pr dalna kya tha!

jaruri nahi hai sabhi ko nibandh likhna aata ho.

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Urdu Notes

Essay on Waldain ka Ehtram in Urdu

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والدین کا احترام پر ایک مضمون

والدین اللہ کا دیا ہوا نایاب تحفہ ہیں۔ اولاد سے والدین کا رشتہ ایسا ہے کہ وہ بنا کسی فتنہ کے، بنا کسی شرط کے اپنی اولاد کی پرورش کرتے ہیں، ان کی ہر خواہشات کو پورا کرتے ہیں، ان کی صحت سے لے کر ان کی ہر ضرورت اور ہر خوشی کو پورا کرتے ہیں۔ والدین کے احسانات کا بدلہ انسان اپنی پوری زندگی میں نہیں چکا سکتا۔ والدین ہماری خوشی کے لیے اپنی زندگی تک بھول جاتے ہیں۔

اللہ تبارک تعالی کا فرمان ہے کہ اپنے ماں باپ کا احسان مانو، ان کا احترام کرو۔ اگر اللہ کے بعد کوئی اہمیت رکھتا ہے تو وہ والدین ہیں جو ہمیں دنیا میں رہنے کے قابل بناتے ہیں، ہمیں چلنا سکھاتے ہیں، کھانا پینا٬ اٹھنا بیٹھنا سکھاتے ہیں۔ اس لئے اللہ تعالی ہر انسان کو حکم دیتا ہے کہ اپنے والدین کے ساتھ حسن سلوک کرو۔ ان کے احسانات کو مانو۔ کہیں پر بھی ایسا نہ ہو کہ تم انہیں بھول جاؤ۔

اللہ تبارک و تعالی نے قرآن مجید میں فرمایا کہ جب تمہارے والدین بوڑھے ہوجائیں اور جب ان کا دماغ بچوں کی طرح ہو جائے اور وہ بچوں کی طرح جھنجھلانے لگے اور ضد کرنے لگیں تو اس وقت اگر تو نے ‘اف’ بھی کیا تو میں تجھے معاف نہیں کروں گا۔

اللہ تبارک و تعالی نے ماں باپ سے اف بھی کرنا حرام قرار دیا ہے اور آج کل کی اولاد ماں باپ کے ساتھ بے حد برا سلوک کرتی ہیں۔ ان کو جھڑکتی ہیں اور بدزبانی کرتی ہیں۔ اللہ ایسی اولادوں پر عذاب نازل کرتا ہے۔

اللہ تبارک و تعالی کہتا ہے کہ اپنے والدین سے نرم لہجے میں بات کرو، شریفانہ انداز میں بات کرو۔ انہیں لگنا چاہیے کہ ہاں یہ ہماری اولاد ہے جس کی ہم نے پرورش کی ہے، واقعی یہ ہمارا نیک بچہ ہے۔ اللہ کہتا ہے اپنے والدین کے آگے ہمیشہ جھکے رہو۔ ان کے سامنے اپنے بازوؤں کو جھکا کر کھڑے ہو۔

ماں باپ کا اس قدر احترام ہے کہ خدا چھوٹی چھوٹی بات کے لئے بھی کہہ رہا ہے ان کے احترام کی کتنی زیادہ انتہا ہے۔ اپنے آپ کو جھکانا٬ نرم لہجے میں بات کرنا اور اف تک نہ کرنا اتنی زیادہ انتہا ہے۔

اور اتنی انتہا کے بعد بھی ان کے لیے سجدے میں گر کر اللہ کے سامنے رو کر گڑگڑا کر انکے گناہوں کے لئے ان کی مغفرت کی دعا کرو۔ ان کے زندہ رہنے پر بھی اور مرنے کے بعد بھی۔

اللہ تبارک وتعالی فرماتا ہے کہ اپنے ماں باپ کے اس رحم کو یاد کرو جو انہوں نے تم پر بچپن میں کئے ہیں۔ اگر آج ہم اپنی زندگی جی رہے ہیں تو اس زندگی کو بہتر بنانے والے ہمارے والدین ہیں۔ جس وقت ہم پیدا ہوئے تو ہماری کوئی اہمیت نہیں تھی۔ ہم صرف ایک گوشت کا ٹکڑا تھے۔ ہم سب کو پالنے والے٬ ہمیں قابل بنانے والے ہمارے والدین ہیں۔

اگر ہمارے ماں باپ ہمارے اوپر رحم نہیں کرتے تو ہم بڑے ہو کر قابل نہیں بنتے۔ لیکن قابل ہونے کا یہ مطلب نہیں ہے کہ ہم ان کے سامنے بدزبانی کریں، ان سے برے لہجے میں بات کریں۔ ماں باپ ایک انمول نعمت ہیں جنہیں خدا نے ہمارے لئے تحفہ بناکر بھیج دیا ہے۔ ہمیں ان کی قدر کرنی چاہیے، ان کے سامنے سر جھکا کر بات کرنی چاہیے اور ان کے ساتھ ادب سے پیش آنا چاہیے۔ ان کا احترام کرنا چاہیے۔ اور ان کے لیے دعا کرنی چاہیے کہ اے اللہ ہمارے ماں باپ پر اسی طرح رحم کر جس طرح انہوں نے بچپن میں ہمارے اوپر کیا تھا۔ اے رب تو ان کے گناہوں کو معاف کر دے۔ انکی غلطیوں کو معاف کردے۔

قرآن مقدس کی سورہ احکاف آیت نمبر 15 میں اللہ تعالی فرماتا ہے کہ یہ میرا حکم ہے کہ اپنے ماں باپ کے ساتھ حسن سلوک کرو، ان کا احترام کرو۔ جو شخص اپنے ماں باپ کے ساتھ حسن سلوک نہیں کرے گا اور ان کا احترام نہیں کرے گا ان کے ساتھ ادب سے پیش نہیں آئے گا تو وہ والدین کی نافرمانی کا گناہ گار بن جائے گا۔ اور اللہ تبارک و تعالی والدین کی نافرمانی کرنے والے کو کبھی معاف نہیں کرے گا۔ اللہ پاک ہم سب کو والدین کا احترام کرنے کی توفیق دے۔ آمین۔

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CBSE Class 10 Hindi A निबंध लेखन

September 26, 2019 by Bhagya

CBSE Class 10 Hindi A लेखन कौशल निबंध लेखन

निबंध-लेखन – निबंध गद्य की वह विधा है जिसमें निबंधकार किसी भी विषय को अपने व्यक्तित्व का अंग बनाकर स्वतंत्र रीति से अपनी लेखनी चलाता है। निबंध दो शब्दों नि + बंध से मिलकर बना है जिसका अर्थ है भली प्रकार कसा या बँधा हुआ। इस प्रकार निबंध साहित्य की वह रचना है जिसमें लेखक अपने विचारों को पूर्णतः मौलिक रूप से इस प्रकार श्रृंखलाबद्ध करता है कि उनमें सर्वत्र तारतम्यता दिखाई दे। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कहा है कि “यदि गद्य कवियों की कसौटी है तो निबंध गद्य की कसौटी है।”

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निबंध की विशेषताएँ

  • निबंध में विषय के अनुरूप भाषा होनी चाहिए।
  • निबंध लिखते समय वर्तनी की शुद्धता तथा विराम चिह्नों का यथास्थान ध्यान रखना चाहिए।
  • निबंध में वर्णित विचार एक-दूसरे से संबद्ध होने चाहिए।
  • निबंध में विषय संबंधी सभी पत्रों पर चर्चा करनी चाहिए।
  • सारांश में उन सभी बातों को शामिल किया जाना चाहिए जिनका वर्णन पहले हो चुका है।
  • यदि निबंध लेखन में शब्द-सीमा दी गई है तो उसका अवश्य ध्यान रखें।

निबंध के तत्व : निबंध के निम्नलिखित प्रमुख तत्व माने जाते हैं –

  • विषय प्रतिपादन-निबंध में विषय के चुनाव की छूट रहती है, परंतु विषय का प्रतिपादन आवश्यक है।
  • भाव-तत्व-भाव-तत्व होने पर ही कोई रचना निबंध की श्रेणी में आती है अन्यथा वह मात्र लेख बनकर रह जाती है।
  • भाषा-शैली-निबंध की शैली के अनुरूप ही उसमें भाषा का प्रयोग होता है। निबंध एक शैली में भी लिखा जा सकता है तथा उसमें अनेक शैलियों का सम्मिश्रण भी हो सकता है।
  • स्वच्छंदता-निबंध में लेखक की स्वच्छंद वृत्ति दिखाई देनी चाहिए, परंतु भौतिकता भी बनी रहनी चाहिए।
  • व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति-निबंध में लेखक के व्यक्तित्व की झलक अवश्य होनी चाहिए।
  • संक्षिप्तता-निबंध में सक्षिप्तता उसका अनिवार्य गुण है।

निबंध के अंग : निबंध के मुख्य रूप से तीन अंग माने जाते हैं –

  • भूमिका/परिचयं-यह निबंध का आरंभ होता है। इसलिए भूमिका आकर्षक होनी चाहिए जिससे पाठक पूरे निबंध को पढ़ने हेतु प्रेरित हो सके।
  • विस्तार- भूमिका के पश्चात निबंध का विस्तार शुरू होता है। इस भाग में निबंध के विषय से संबंधित प्रत्येक पक्ष का अलग अलग अनुच्छेदों में वर्णन किया जाता है। प्रत्येक अनुच्छेद की अपने पहले तथा अगले अनुच्छेद से संबद्धता अनिवार्य है। इसके लिए विचार क्रमबद्ध होने चाहिए।
  • उपसंहार-इस अंग के अंतर्गत निबंध में व्यक्त किए गए सभी विचारों का सारांश प्रस्तुत किया जाता है।

निबंध के प्रकार : मुख्य रूप से निबंध के चार प्रकार माने जाते हैं –

1. वर्णनात्मक-वर्णनात्मक निबंध में स्थान, वस्तु, दृश्य आदि का क्रमबद्ध वर्णन किया जाता है। त्योहारों-दीवाली, रक्षाबंधन, होली तथा वर्षा ऋतु आदि पर लिखे निबंध इसी कोटि में आते हैं।

2. विवरणात्मक-विवरणात्मक निबंधों में विषय से संबंधित घटनाओं, व्यक्तियों, यात्राओं, उत्सवों आदि का विवरण प्रस्तुत किया जाता है। पं० जवाहरलाल नेहरू, रेल-यात्रा, विद्यालय का वार्षिक उत्सव आदि प्रकार के निबंध इस श्रेणी में आते हैं।

3. विचारात्मक-जिन निबंधों में किसी समस्या, विचार, मनोभाव आदि को विश्लेषणात्मक व व्याख्यात्मक शैली में प्रस्तुत किया जाता है, वे विचारात्मक निबंध कहलाते हैं; जैसे-नशाखोरी, विज्ञान से लाभ-हानि आदि।

4. भावात्मक-जिन निबंधों में भाव-तत्व प्रधान होता है वे भावात्मक निबंध कहलाते हैं। परोपकार, साहस, पर उपदेश कुशल बहुतेरे आदि निबंध इसी श्रेणी में आते हैं।

निबंध लेखन करते समय ध्यान रखने योग्य कुछ आवश्यक बातें :

  • प्रश्न-पत्र में दिए गए शब्दों की सीमा का ध्यान रखें।
  • भाषा की शुद्धता का ध्यान रखें तथा विराम चिह्नों का यथास्थान प्रयोग करें।
  • निबंध लेखन में मौलिकता अवश्य होनी चाहिए।
  • विषय के अनावश्यक विस्तार से बचें।
  • निबंध के प्रारंभ या अंत में किसी सूक्ति, उदाहरण, सुभाषित या काव्य पंक्ति के प्रयोग से निबंध आकर्षक बन जाता है।
  • विचारों की क्रमबद्धता का ध्यान रखें।
  • आवश्यकतानुसार मुहावरों एवं लोकोक्तियों का प्रयोग करें।

(1) लड़का-लड़की एक समान

संकेत बिंदु –

  • प्राचीन काल में नारी की स्थिति
  • आधुनिक काल में नारी की स्थिति
  • नारी में अधिक मानवीयगुण
  • मध्यकाल में नारी की स्थिति
  • नारी की स्थिति और पुरुष की सोच

प्रस्तावना – स्त्री और पुरुष जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिए हैं। जीवन की गाड़ी सुचारु रूप से चलती रहे इसके लिए दोनों पहियों अर्थात स्त्री-पुरुष दोनों का बराबर का सहयोग और सामंजस्य ज़रूरी है। यदि इनमें एक भी छोटा या बड़ा हुआ तो गाड़ी सुचारु रूप से नहीं चल सकेगी। इसी तरह समाज और देश की उन्नति के लिए पुरुषों की नहीं नारियों के योगदान की भी उतनी आवश्यकता है। नारी अपना योगदान उचित रूप में दे सके इसके लिए उसे बराबरी का स्थान मिलना चाहिए तथा यह ज़रूरी है कि समाज लड़के और लड़की में कोई भेद न करे।

नारी में अधिक मानवीय गुण – स्त्री और पुरुष एक-दूसरे के पूरक हैं। एक के बिना दूसरे का कोई अस्तित्व नहीं रह जाता है। यद्यपि दोनों की शारीरिक रचना में काफ़ी अंतर है फिर भी जहाँ तक मानवीय गुणों की जहाँ तक बात है। वहाँ नारी में ही अधिक मानवीय गुण मिलते हैं। पुरुष जो स्वभाव से पुरुष होता है, उसमें त्याग, दया, ममता सहनशीलता जैसे मानवीय गुण नारी की अपेक्षा बहुत की कम होते हैं। नर जहाँ क्रोध का अवतार माना जाता है वहीं नारी वात्सल्य और प्रेम की जीती-जागती मूर्ति होती है। इस संबंध में मैथिली शरण गुप्त ने ठीक ही कहा है –

एक नहीं दो-दो मात्राएँ नर से भारी नारी।

प्राचीनकाल में नारी की स्थिति-प्राचीनकाल में नर और नारी को समान अधिकार प्राप्त थे। वैदिककाल में स्त्रियों द्वारा वेद मंत्रों, ऋचाओं, श्लोकों की रचना का उल्लेख मिलता है। भारती, विज्जा, अपाला, गार्गी ऐसी ही विदुषी स्त्रियाँ थीं जिन्होंने पुरुषों के साथ शास्त्रार्थ कर उनके छक्के छुड़ाए थे। उस काल में नारी को सहधर्मिणी, गृहलक्ष्मी और अर्धांगिनी जैसे शब्दों से विभूषित किया जाता था। समाज में नारी को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था।

मध्यकाल में नारी की स्थिति – मध्यकाल तक आते-आते नारी की स्थिति में गिरावट आने लगी। मुसलमानों के आक्रमण के कारण नारी को चार दीवारी में कैद होना पड़ा। मुगलकाल में नारियों का सम्मान और भी छिन गया। वह पर्दे में रहने को विवश कर दी गई। इस काल में उसे पुरुषों की दासी बनने को विवश किया गया। उसकी शिक्षा-दीक्षा पर रोक लगाकर उसे चूल्हे-चौके तक सीमित कर दिया गया। पुरुषों की दासता और बच्चों का पालन-पोषण यही नारी के हिस्से में रह गया। नारी को अवगुणों का भंडार समझ लिया गया। तुलसी जैसे महाकवि ने भी न जाने क्या देखकर लिखा –

ढोल गँवार शूद्र पशु नारी। ये सब ताड़न के अधिकारी॥

आधुनिक काल में नारी की स्थिति- अंग्रेजों के शासन के समय तक नारी की स्थिति में सुधार की बात उठने लगे। सावित्री बाई फले जैसी महिलाएँ आगे आईं और नारी शिक्षा की दिशा में कदम बढ़ाया। इसी समय राजा राम मोहन राय, स्वामी दयानंद, महात्मा गांधी आदि ने सती प्रथा बंद करवाने, संपत्ति में अधिकार दिलाने, सामाजिक सम्मान दिलाने, विधवा विवाह, स्त्री शिक्षा आदि की दिशा में ठोस कदम उठाए, क्योंकि इन लोगों ने नारी की पीड़ा को समझा। जयशंकार प्रसाद ने नारियों की स्थिति देखकर लिखा –

नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पग तल में पीयूष स्रोत-सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में॥

एक अन्य स्थान पर लिखा गया है –

अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी। आँचल में है दूध और आँखों में पानी॥

स्वतंत्रता के बाद नारी शिक्षा की दिशा में ठोस कदम उठाए गए। उनके अधिकारों के लिए कानून बनाए गए। शिक्षा के कारण पुरुषों के दृष्टिकोण में भी बदलाव आया। इससे नारी की स्थिति दिनोंदिन सुधरती गई। वर्तमान में नारी की स्थिति पुरुषों के समान मज़बूत है। वह हर कदम पर पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है। शिक्षा, चिकित्सा, उड्डयन, राजनीति जैसे क्षेत्र अब उसकी पहुँच में है।

नारी की स्थिति और पुरुष की सोच – समाज में जैसे-जैसे पुरुषों की सोच में बदलाव आया, नारी की स्थिति में बदलाव आता गया। कुछ समय पूर्व तक कन्याओं को माता-पिता और समाज बोझ समझता था। वह भ्रूण (कन्या) हत्या के द्वारा अजन्मी कन्याओं के बोझ से छुटकारा पा लेता था। यह स्थिति सामाजिक समानता और लिंगानुपात के लिए खतरनाक होती जा रही थी, पर सरकारी प्रयास और पुरुषों की सोच में बदलाव के कारण अब स्थिति बदल गई है। लोग अब लड़कियों को बोझ नहीं समझते हैं। पहले जहाँ लड़कों के जन्म पर खुशी मनाई जाती थी वहीं अब लड़की का जन्मदिन भी धूमधाम से मनाया जाने लगा है। हमारे संविधान में भी स्त्री-पुरुष को समानता का दर्जा दिया गया है, पर अभी भी समाज को अपनी सोच में उदारता लाने की ज़रूरत है।

उपसंहार – घर-परिवार, समाज और राष्ट्र की प्रगति की कल्पना नारी के योगदान के बिना सोचना हवा-हवाई बातें रह जाएँगी। अब समाज को पुरुष प्रधान सोच में बदलाव लाते हुए महिलाओं को बराबरी का सम्मान देना चाहिए। इसके लिए ‘लड़का-लड़की एक समान’ की सोच पैदा कर व्यवहार में लाने की शुरुआत कर देना चाहिए।

(2) विपति कसौटी जे कसे तेई साँचे मीत

  • आदर्श मित्रता के उदाहरण
  • सच्चे मित्र के गुण
  • मित्र की आवश्यकता
  • छात्रावस्था में मित्रता
  • मित्रता का निर्वहन

प्रस्तावना – मनुष्य सामाजिक प्राणी है। उसके जीवन में सुख-दुख का आना-जाना लगा रहता है। उसके अलावा दिन-प्रतिदिन की समस्याएँ उसे तनावग्रस्त करती हैं। इससे मुक्ति पाने के लिए वह अपने मन की बातें किसी से कहना-सुनना चाहता है। ऐसे में उसे अत्यंत निकटस्थ व्यक्ति की ज़रूरत महसूस होती है। इस ज़रूरत को मित्र ही पूरी कर सकता है। मनुष्य को मित्र की आवश्यकता सदा से रही है और आजीवन रहेगी।

मित्र की आवश्यकता – जीवन में मित्र की आवश्यकता प्रत्येक व्यक्ति को पड़ती है। एक सच्चा मित्र औषधि के समान होता है जो व्यक्ति की बुराइयों को दूर कर उसे अच्छाइयों की ओर ले जाता है। मित्र ही सुख-दुख के वक्त साथ देता है। वास्तव में मित्र के बिना सुख की कल्पना नहीं की जा सकती है, क्योंकि

अलसस्य कुतो विद्या, अविद्यस्य कुतो धनम्। अधनस्य कुतो मित्रम्, अमित्रस्य कुतो सुखम् ॥

आदर्श मित्रता के उदाहरण – इतिहास में अनेक उदाहरण भरे हैं जिनसे मित्रता करने और उसे निभाने की सीख मिलती है। वास्तव में मित्र बनाना तो सरल है पर उसे निभाना अत्यंत कठिन है। देखा गया है कि आर्थिक समानता न होने पर भी दो मित्रों की मित्रता आदर्श बन गई, जिसकी सराहना इतिहास भी करता है। राणाप्रताप और भामाशाह की मित्रता, कृष्ण और अर्जुन की मित्रता, राम और सुग्रीव की मित्रता, दुर्योधन और कर्ण की मित्रता कुछ ऐसे ही उदाहरण हैं। इनकी मित्रता से हमें प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिए, क्योंकि इन मित्रों के बीच स्वार्थ आड़े नहीं आया।

छात्रावस्था में मित्रता – ऐसा देखा जाता है कि छात्रावस्था या युवावस्था में मित्र बनाने की धुन सवार रहती है। बस एक दो-बार किसी से बातें किया, साथ-साथ नाश्ता किया, फ़िल्म देखी, हँसमुख चेहरा देखा, अपनी बात में हाँ में हाँ मिलाते देखा और मित्र बना लिया पर ऐसे मित्र जितनी जल्दी बनते हैं, संकट देख उतनी ही जल्दी साथ छोड़कर दूर भी हो जाते हैं। ऐसे ही मित्रों की तुलना जल से करते हुए रहीम ने कहा है –

जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह। रहिमन मछरी नीर को, तऊ न छाँड़ति छोह ॥

सच्चे मित्र के गुण-जीवन में सच्चे मित्र का बहुत महत्त्व है। एक सच्चे मित्र का साथ व्यक्ति को उन्नति के पथ पर ले जाता है और बुरे व्यक्ति का साथ पतन की ओर अग्रसर करता है। सच्चा मित्र जहाँ व्यक्ति को अवगुणों से बचाकर सदगुणों की ओर ले जाता है वहीं कपटी मित्र हमारे पैरों में बँधी चक्की के समान होता है जो हमें पीछे खींचता रहता है। यदि हमारा कोई मित्र जुआरी या शराबी निकला तो उसका प्रभाव एक न एक दिन हम पर अवश्य पड़ना है। इसके विपरीत सच्चा मित्र सुमार्ग पर ले जाता है। वह मित्र के सुख-दुख को अपना सुख-दुख समझकर सच्ची सहानुभूति रखता है और दुख से उबारने का हर संभव प्रयास करता है। ऐसे मित्रों के बारे कवि तुलसीदास ने लिखा है –

जे न मित्र दुख होय दुखारी। तिनहिं विलोकत पातक भारी॥ निज दुख गिरि सम रज कर जाना। मित्रक दुख रज मेरु समाना।

सच्चा मित्र अपने मित्र को कुसंगति से बचाकर सन्मार्ग पर ले जाता है और उसके गुणों को प्रकटकर सबके सामने लाता है। मित्रता का निर्वहन-मित्रता के लिए यह माना जाता है कि उनमें आर्थिक समानता होनी चाहिए पर यदि सच्ची मित्रता है तो दो मित्रों के बीच धन, स्वभाव और आचरण की समानता न होने पर भी मित्रता का निर्वाह हुआ है। सच्चे मित्र अपने बीच अमीरी गरीबी को आड़े नहीं आने देते हैं। कृष्ण-सुदामा की मित्रता का उदाहरण सामने है। उनकी हैसियत में ज़मीन-आसमान का अंतर था पर उनकी मित्रता का उदाहरण दिया जाता है।

इसी प्रकार अकबर-बीरबल, कृष्णदेवराय और तेनालीरामन की मित्रता का उदाहरण हमारे सामने है। उपसंहार-मित्रता अनमोल वस्तु है जो जीवन में कदम-कदम पर काम आती है। एक सच्चा मित्र मिल जाना गर्व एवं सौभाग्य की बात है। जिसे सच्चा मित्र मिल जाए, उसे सुख का खज़ाना मिल जाता है। हमें मित्र बनाने में सावधानी बरतना चाहिए। एक सच्चा मित्र मिल जाने पर मित्रता का निर्वहन करना चाहिए। सच्चे मित्र के रूठने पर उसे तुरंत मना लेना चाहिए। हमें भी मित्र के गुण बनाए रखना चाहिए, क्योंकि –

विपति कसौटी जे कसे तेई साँचे मीत।

(3) डॉ० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम

  • शिक्षा-दीक्षा
  • राष्ट्रपति डॉ कलाम
  • सादा जीवन उच्च विचार निबंध-लेखन
  • मिसाइल मैन डॉ० कलाम
  • सम्मान एवं अलंकरण

प्रस्तावना – भारत भूमि ऋषियों-मुनियों और अनेक कर्मवीरों की जन्मदात्री है। यहाँ अनेक महापुरुष पैदा हुए हैं तो देश का नाम शिखर तक ले जाने वाले वैज्ञानिक भी हुए हैं। इन्हीं में एक जाना-पहचाना नाम है- डॉ० ए०पा. ने० अब्दुल कलाम का जिन्होंने दो रूपों में राष्ट्र की सेवा की। एक तो वैज्ञानिक के रूप में और दूसरे राष्ट्रपति के रूप में। देश उन्हें मिसाइल मैन के नाम से जानता-पहचानता है।

जीवन-परिचय – डॉ० कलाम का जन्म 15 अक्टूबर, 1931 को तमिलनाडु राज्य के रामेश्वरम् नामक कस्बे में हुआ था। इनके पिता का नाम जैनुलाबदीन और माता का नाम अशियम्मा था। इनके पिता पढ़े-लिखे मध्यमवर्गीय व्यक्ति थे जो बहुत धनी न थे। इनकी माता आदर्श महिला थीं। इनके पिता और रामेश्वरम मंदिर के पुजारी में गहरी मित्रता थी, जिसका असर कलाम के जीवन पर भी पड़ा। इनके पिता रामेश्वरम् से धनुषकोडि तक आने-जाने के लिए तीर्थयात्रियों के लिए नौकाएँ बनवाने का कार्य किया करते थे।

शिक्षा-दीक्षा – डॉ० कलाम की प्रारंभिक शिक्षा तमिलनाडु में हुई। इसके बाद वे रामनाथपुरम् के श्वार्ज़ हाई स्कूल में भर्ती हुए। हायर सेकंडी की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पूरी करने के बाद इंटर की पढ़ाई के लिए सेंट जोसेफ कॉलेज में प्रवेश लिया। यहाँ चार साल तक पढ़ाई करने और बी०एस०सी० प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने ‘हिंदू पत्रिका’ में विज्ञान से संबंधित लेख-लिखने लगे। उन्होंने एअरोनॉटिक्स इंजीनियरिंग में डिप्लोमा भी किया।

मिसाइल मैन डॉ० कलाम – डॉ० कलाम को अपने कैरियर की चिंता हुई। वे भारतीय वायुसेना में पायलट पद के लिए चुने गए पर साक्षात्कार में असफल रहे। इसके बाद वे वर्ष 1958 में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन से जुड़ गए। उनकी पहली नियुक्ति हैदराबाद में हुई। वहाँ वे पाँच वर्षों तक अनुसंधान सहायक के रूप में कार्य करते रहे। उन्होंने यहाँ वर्ष 1980 तक कार्य किया और अंतरिक्ष विज्ञान को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश भाग अनुसंधान को समर्पित कर दिया। परमाणु क्षेत्र में उनका योगदान भुलाया नहीं जा सकता है। उनके नेतृत्व में 1 मई, 1998 का प्रसिद्ध पोखरण परीक्षण किया गया। मिसाइल कार्यक्रम को नई ऊँचाई तक ले जाने के कारण उन्हें मिसाइल मैन कहा जाता है।

राष्ट्रपति डॉ० कलाम – भारत के गणराज्य में 25 जुलाई, 2002 को वह सुनहरा दिन आया, जब मिसाइल मैन के नाम से मशहूर डॉ० कलाम ने राष्ट्रपति का पद सुशोभित किया और इसी दिन पद एवं गोपनीयता की शपथ ली। यद्यपि उनका संबंध राजनीति की दुनिया से कोसों दूर था फिर भी संयोग और भाग्य के मेल से उन्होंने भारत के बारहवें राष्ट्रपति के रूप में इस पद को सुशोभित किया। उन्होंने राष्ट्रपति पद पर रहते हुए निष्पक्षता और पूरी निष्ठा से कार्य किया।

सम्मान एवं अलंकरण – डॉ० कलाम ने जिस परिश्रम से परमाणु एवं अंतरिक्ष कार्यक्रम को नई ऊँचाई तक पहुँचाया उसके लिए उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित एवं अलंकृत किया गया। उन्हें वर्ष 1981 में पद्म विभूषण एवं वर्ष 1990 में ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया गया। ‘भारत रत्न’ से सम्मानित होने वाले वे देश के तीसरे वैज्ञानिक हैं।

सादा जीवन उच्च विचार – डॉ० कलाम पर गांधी जी के विचारों का प्रभाव था। वे सादगीपूर्वक रहते थे। उनके विचार अत्यंत उच्च कोटि के थे। वे बच्चों से लगाव रखते थे। वे विभिन्न स्कूलों में जाकर बच्चों का उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करते थे। वे आज का काम आज निपटाने में विश्वास रखते थे। बच्चों को प्यार करने वाले डॉ० कलाम की मृत्यु भी बच्चों के बीच सन् 2015 में उस समय हुई जब वे उनके बीच अपने अनुभव बाँट रहे थे।

उपसंहार – डॉ० कलाम अत्यंत निराभिमानी व्यक्ति थे। वे परिश्रमी और कर्तव्यनिष्ठ थे। एक वैज्ञानिक होने के साथ ही उन्होंने मिसाइल कार्यक्रम को नई ऊँचाई पर पहुँचाया तो राष्ट्रपति रहते हुए उन्होंने देश की प्रगति में भरपूर योगदान दिया। उनका जीवन हम भारतीयों के लिए प्रेरणा स्रोत है।

(4) क्रिकेट का नया प्रारूप-ट्वेंटी-ट्वेंटी

  • टेस्ट क्रिकेट –
  • टी-ट्वेंटी प्रारूप
  • क्रिकेट के विभिन्न प्रारूप
  • एक दिवसीय क्रिकेट
  • टी-ट्वेंटी का रोमांच एवं सफलता

प्रस्तावना-यूँ तो मनुष्य का खेलों से बहुत ही पुराना नाता है, पर मनुष्य ने शायद ही कभी यह सोचा हो कि ये खेल एक दिन उसे यश, धन और प्रतिष्ठा दिलाने का साधन सिद्ध होंगे। जिन खेलों को वह मात्र मनोरंजन के लिए खेला करता था, वही खेल अब खराब नहीं नवाब बना रहे हैं। खेलों में आज लोकप्रियता के शिखर पर क्रिकेट का स्थान है। इसकी लोकप्रियता के कारण आज हर बच्चा क्रिकेट का खिलाड़ी बनना चाहता है। वर्तमान में क्रिकेट का ट्वेंटी-ट्वेंटी रूप बहुत ही लोकप्रिय है।

क्रिकेट के विभिन्न प्रारूप – भारत में क्रिकेट की शुरुआत अंग्रेज़ों के समय हुई। अंग्रेज़ों का यह राष्ट्रीय खेल था, जिसे वे अपने साथ यहाँ लाए। कालांतर में यह विभिन्न देशों में फैला। उस समय क्रिकेट को मुख्यतया टेस्ट क्रिकेट के रूप में खेलते थे। समय की व्यस्तता और रुचि में आए बदलाव के साथ ही क्रिकेट का प्रारूप बदलता गया। एक दिवसीय क्रिकेट और टी-ट्वेंटी इसका लोकप्रिय रूप है।

टेस्ट क्रिकेट – टेस्ट क्रिकेट पाँच दिनों तक खेला जाने वाला रूप है। इसमें पाँचों दिन 90-90 ओवर की प्रतिदिन गेंदबाजी की जाती है। दोनों टीमें दो-दो बार बल्लेबाज़ी करती हैं। विपक्षी टीम को दोबार आल आउट करना होता है। ऐसा ही दूसरी टीम करती है, परंतु प्राय; पाँच दिन तक मैच चलने के बाद भी खेल का परिणाम नहीं निकलता है और मैच ड्रा कर दिया जाता है। यह प्रारूप धीरे-धीरे अपनी लोकप्रियता खोता जा रहा है।

एक दिवसीय क्रिकेट – यह क्रिकेट का दूसरा प्रारूप है, जिसे एक दिन में एक सौ ओवर अर्थात छह सौ आधिकारिक गेंदें खेलकर पूरा किया जाता है। प्रत्येक टीम 50-50 ओवर खेलती है। पहले बल्लेबाज़ी करने वाली टीम जितने रन बनाती है उससे एक रन अधिक बनाकर दूसरी टीम को मैच जीतना होता है। जो टीम ऐसा कर पाती है, वही विजयी होती है। यह क्रिकेट का बेहद रोमांचक प्रारूप है, जिसे दर्शक खूब पसंद करते हैं। एक ही दिन में प्रायः मैच का परिणाम निकलने और पूरा हो जाने के कारण क्रिकेट स्टेडियमों में दर्शकों की भीड़ देखने लायक होती है।

टी-ट्वेंटी प्रारूप- यह क्रिकेट का सर्वाधिक लोकप्रिय प्रारूप है जिसे चालीस ओवरों में पूरा कर लिया जाता है। प्रत्येक टीम बीस- . बीस ओवर खेलती है। इधर सात-आठ साल पहले ही शुरू हुए उस प्रारूप को फटाफट क्रिकेट कहा जाता है जिसकी लोकप्रियता ने अन्य प्रारूपों को पीछे छोड़ दिया है। यह प्रारूप अधिक रोमांचक एवं मनोरंजक है।

इसे देखकर दर्शकों का पूरा पैसा वसूल हो जाता है। यह क्रिकेट सामान्यतया सायं चार बजे के बाद ही शुरू होता है और आठ-साढ़े आठ बजे तक खत्म हो जाता है। इसमें परिणाम और मनोरंजन के लिए दर्शकों को पूरे दिन स्टेडियम में नहीं बैठना पड़ता है। भारत में शुरू हुई आई०पी०एल० लीग में इसी प्रारूप से खेला जाता है जो भविष्य के खिलाड़ियों के लिए एक नया प्लेटफॉर्म तथा नवोदित खिलाड़ियों के लिए कमाई का साधन बन गया है। अब तो आलम यह है कि इस प्रारूप में चार सौ से अधिक रन तक बन जाते हैं।

टी-ट्वेंटी का रोमांच एवं सफलता-क्रिकेट का यह नया प्रारूप अत्यंत रोमांचक है। 20 ओवरों के मैच में 200 से अधिक रन बन जाते हैं। ट्वेंटी-ट्वेंटी प्रारूप का रोमांच तब देखने को मिला जब युवराज ने अंग्रेज़ गेंदबाज़ किस ब्राड के एक ही ओवर में छह छक्कों को दर्शकों के बीच पहुँचा दिया। ताबड़तोड़ बल्लेबाज़ी ही इस प्रारूप की सफलता का रहस्य है। उपसंहार- हमारे देश में क्रिकेट अत्यंत लोकप्रिय है। खेल के इस नए प्रारूप ने इसे और भी लोकप्रिय बना दिया है। आस्ट्रेलियाई गेंदबाज़ शेनवान और सचिन तेंदुलकर की रिटायर्ड खिलाड़ियों की टीमों ने अमेरिका में तीन मैचों की सीरीज खेलकर दर्शकों की खूब वाह-वाही लूटी। क्रिकेट का यह नया प्रारूप टी-ट्वेंटी दिनोंदिन लोकप्रिय होता जा रहा है।

(5) अनुशासन की समस्या

  • छात्र और अनुशासन
  • अनुशासनहीनता के कारण
  • अनुशासन की आवश्यकता
  • प्रकृति में अनुशासन
  • समाधान हेतु सुझाव

उपसंहार प्रस्तावना-‘शासन’ शब्द में ‘अनु’ उपसर्ग लगाने से अनुशासन शब्द बना है, जिसका अर्थ है- शासन के पीछे अनुगमन करना, शासन के पीछे चलना अर्थात समाज और राष्ट्र द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करते हुए मर्यादित आचरण करना अनुशासन कहलाता है। अनुशासन का पालन करने वाले लोग ही समाज और राष्ट्र को उन्नति के पथ पर ले जाते हैं। इसी तरह अनुशासनहीन नागरिक ही किसी राष्ट्र के पतन का कारण बनते हैं।

अनुशासन की आवश्यकता- अनुशासन की आवश्यकता सभी उम्र के लोगों को जीवन में कदम-कदम पर होती है। छात्र जीवन, मानवजीवन की रीढ़ होता है। इस काल में सीखा हुआ ज्ञान और अपनाई हुई आदतें जीवन भर काम आती हैं। इस कारण छात्र जीवन में अनुशासन की आवश्यकता और भी बढ़ जाती है। अनुशासन के अभाव में छात्र प्रकृति प्रदत्त शक्तियों का न तो प्रयोग कर सकता है और न ही विद्यार्जन के अपने दायित्व का भली प्रकार निर्वाह कर सकता है। छात्र ही किसी देश का भविष्य होते हैं, अतः छात्रों का अनुशासनबद्ध रहना समाज और राष्ट्र के हित में होता है।

छात्र और अनुशासन – कुछ तो सरकारी नीतियाँ छात्रों को अनुशासनविमुख बना रही हैं और कुछ दिन-प्रतिदिन मानवीय मूल्यों में आती गिरावट छात्रों को अनुशासनहीन बना रही है। आठवीं कक्षा तक अनिवार्य रूप से उत्तीर्ण कर अगली कक्षा में भेजने की नीति के कारण छात्र पढ़ाई के अलावा अनुशासन से भी दूरी बना रहे हैं। इसके अलावा अनुशासन के मायने बदलने से भी छात्रों में अब पहले जैसा अनुशासन नहीं दिखता है। इस कारण प्रायः स्कूलों और कॉलेजों में हड़ताल, तोड़-फोड़, बात-बात पर रेल की पटरियों और सड़कों को बाधित कर यातायात रोकने का प्रयास करना आमबात होती जा रही है। छात्रों में मानवीय मूल्यों की कमी कल के समाज के लिए चिंता का विषय बनती जा रही है।

प्रकृति में अनुशासन-हम जिधर भी आँख उठाकर देखें, प्रकृति में उधर ही अनुशासन नज़र आता है। सूरज का प्रातःकाल उगना और सायंकाल छिपना न हीं भूलता। चंद्रमा अनुशासनबद्ध तरीके से पंद्रह दिनों में अपना पूर्ण आकार बिखेरता है और नियमानुसार अपनी चाँदनी लुटाना नहीं भूलता। तारे रात होते ही आकाश में दीप जलाना नहीं भूलते हैं। बादल समय पर वर्षा लाना नहीं भूलते तथा पेड़-पौधे समय आने पर फल-फूल देना नहीं भूलते हैं। इसी प्रकार प्रातः होने का अनुमान लगते ही मुर्गा हमें जगाना नहीं भूलता है। वर्षा, शरद, शिशिर, हेमंत, वसंत, ग्रीष्म ऋतुएँ बारी-बारी से आकर अपना सौंदर्य बिखराना नहीं भूलती हैं। इसी प्रकार धरती भी फ़सलों के रूप में हमें उपहार देना नहीं भूलती। प्रकृति के सारे क्रियाकलाप हमें अनुशासनबद्ध जीवन जीने के लिए प्रेरित करते हैं।

अनुशासनहीनता के कारण- छात्रों में अनुशासनहीनता का मुख्य कारण दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली है। यह प्रणाली रटने पर बल देती है। दस, बारह और पंद्रह साल तक शिक्षार्जन से प्राप्त डिग्रियाँ लेकर भी किसी कार्य में निपुण नहीं होता है। यह शिक्षा क्लर्क पैदा करती है। नैतिक शिक्षा और मानवीय मूल्यों के लिए शिक्षा में कोई स्थान नहीं है। छात्र भी ‘येनकेन प्रकारेण’ परीक्षा पास करना अपना कर्तव्य समझने लगे हैं।

अनुशासनहीनता का दूसरा महत्त्वपूर्ण कारण है- शिक्षकों द्वारा अपने दायित्व का सही ढंग से निर्वाह न करना। अब वे शिक्षक नहीं रहे जिनके बारे में यह कहा जाए –

गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागौ पाँय। बलिहारी गुरु आपनो, जिन गोविंद दियो बताय॥

समाधान हेतु सुझाव-छात्रों में अनुशासनहीनता दूर करने के लिए सर्वप्रथम शिक्षा की प्रणाली और गुणवत्ता में सुधार किया जाना चाहिए। शिक्षा को रोजगारोन्मुख बनाया जाना चाहिए। शिक्षण की नई-नई तकनीक और विधियों को कक्षा कक्ष तक पहुँचाया जाना चाहिए। छात्रों के लिए खेलकूद और अन्य सुविधाएँ उपलब्ध कराई जानी चाहिए। इसके अलावा परीक्षा प्रणाली में सुधार करना चाहिए। छात्रों को नैतिक मूल्यपरक शिक्षा दी जानी चाहिए तथा अध्यापकों को अपने पढ़ाने का तरीका रोचक बनाना चाहिए।

उपसंहार- अनुशासनहीनता मनुष्य को विनाश के पथ पर अग्रसर करती है। छात्रों पर ही देश का भविष्य टिका है, अत: उन्हें अनुशासनप्रिय बनाया जाना चाहिए। हमें अनुशासन का पालन करने के लिए प्रकृति से सीख लेनी चाहिए।

(6) भ्रष्टाचार 

  • भ्रष्टाचार के कारण
  • भ्रष्टाचार के विविध क्षेत्र एवं रूप
  • भ्रष्टाचार दूर करने के उपाय

प्रस्तावना – भ्रष्टाचार दो शब्दों ‘भ्रष्ट’ और ‘आचार’ के मेल से बना है। ‘भ्रष्ट’ का अर्थ है- विचलित या अपने स्थान से गिरा हुआ तथा ‘आचार’ का अर्थ है-आचरण या व्यवहार अर्थात किसी व्यक्ति द्वारा अपनी गरिमा से गिरकर कर्तव्यों के विपरीत किया गया आचरण भ्रष्टाचार है। यह भ्रष्टाचार हमें विभिन्न स्थानों पर दिखाई देता है जिससे जन साधारण को दो-चार होना पड़ता है। आज लोक सेवक की परिधि में आने वाले विभिन्न कर्मचारी जैसे कि बाबू, अधिकारी आदि इसे बढ़ाने में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उत्तरदायी हैं।

भ्रष्टाचार के विविधि क्षेत्र एवं रूप – भ्रष्टाचार का क्षेत्र बहुत ही व्यापक है। इसकी परिधि में विभिन्न सरकारी और अर्धसरकारी कार्यालय, राशन की सरकारी दुकानें, थाने और तरह-तरह की सरकारी अर्धसरकारी संस्थाएँ आती हैं। यहाँ नियुक्त बाबू व अधिकारी, प्रशासनिक अधिकारी, एजेंट, चपरासी, नेता आदि जनसाधारण का विभिन्न रूपों में शोषण करते हैं। इन कार्यालयों में कुछ लिए दिए बिना काम करवाना टेढ़ी खीर साबित होता है। लोगों के काम में तरह-तरह के अड़गे लगाए जाते हैं और सुविधा शुल्क लिए बिना काम नहीं होता है। भ्रष्टाचार के बाज़ार में यदि व्यक्ति के पास पैसा हो तो वह किसी को भी खरीद सकता है। यहाँ हर एक बिकने को तैयार है। बस कीमत अलग-अलग है। यह कीमत काम के अनुसार तय होती है। जैसा काम वैसा दाम। काम की जल्दबाज़ी और व्यक्ति की विवशता दाम बढ़ा देती है।

भ्रष्टाचार के विविध रूप हैं। इसका सबसे प्रचलित और जाना-पहचाना नाम और रूप है-रिश्वत। यह रिश्वत नकद, उपहार, सुविधा आदि रूपों में ली जाती है। आम बोलचाल में इसे घूस या सुविधा शुल्क के नाम से भी जाना जाता है। लोग चप्पलें घिसने से बचाने, समय नष्ट न करने तथा मानसिक परेशानी से बचने के लिए स्वेच्छा या मज़बूरी में रिश्वत देने के लिए तैयार हो जाते हैं।

भ्रष्टाचार का दूसरा रूप भाई-भतीजावाद के रूप में देखा जाता है। सक्षम अधिकारी अपने पद का दुरुपयोग करते हुए अपने चहेतों, रिश्तेदारों और सगे-संबंधियों को कोई सुविधा, लाभ या नौकरी देने के अलावा अन्य लाभ पहुँचाना भाई-भतीजावाद कहलाता है। ऐसा करने और कराने में आज के नेताओं को सबसे आगे रखा जा सकता है। इससे योग्य व्यक्तियों की अनदेखी होती है और वे लाभ पाने से वंचित रह जाते हैं।

कमीशनखोरी भी भ्रष्टाचार का अन्य रूप है। सरकारी परियोजनाओं, भवनों तथा अन्य सेवाओं का काम तो कमीशन दिए बिना मिल ही नहीं सकता है। जो जितना अधिक कमीशन देता है, काम का ठेका उसे मिलने की संभावना उतनी ही प्रबल हो जाती है। इन ठेकों और बड़े ठेकों में करोड़ों के वारे-न्यारे होते हैं। बोफोर्स घोटाला, बिहार का चारा घोटाला, टू जी स्पेक्ट्रम घोटाला, कॉमन वेल्थ घोटाला, मुंबई का आदर्श सोसायटी घोटाला तो मात्र कुछ नमूने हैं।

भ्रष्टाचार के कारण – समाज में दिन-प्रतिदिन भ्रष्टाचार का बोलबाला बढ़ता ही जा रहा है। इसके अनेक कारण हैं। भ्रष्टाचार के कारणों में महँगी होती शिक्षा और अनुचित तरीके से उत्तीर्ण होना है। जो छात्र महँगी शिक्षा प्राप्त कर नौकरियों में आते हैं, वे रिश्वत लेकर पिछले खर्च को पूरा कर लेना चाहते हैं। एक बार यह आदत पड़ जाने पर फिर आजीवन नहीं छूटती है। इसका अगला कारण हमारी लचर न्याय व्यवस्था है जिसमें पकड़े जाने पर कड़ी कार्यवाही न होने से दोषी व्यक्ति बच निकलता है और मुकदमे आदि में हुए खर्च को वसूलने के लिए रिश्वत की दर बढ़ा देता है। उसके अलावा लोगों में विलासितापूर्ण जीवनशैली दिखावे की प्रवृत्ति, जीवन मूल्यों का ह्रास और लोगों का चारित्रिक पतन भी भ्रष्टाचार बढ़ाने के लिए उत्तरदायी हैं।

भ्रष्टाचार दूर करने के उपाय – आज भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि इसे समूल नष्ट करना संभव नहीं है, फिर भी कठोर कदम उठाकर इस पर किसी सीमा तक अंकुश लगाया जा सकता है। भ्रष्टाचार रोकने का सबसे ठोस कदम है-जनांदोलन द्वारा जन जागरूकता फैलाना। समाज सेवी अन्ना हजारे और दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल द्वारा उठाए गए ठोस कदमों से इस दिशा में काफ़ी सफलता मिली है। इसके अलावा इसे रोकने के लिए कठोर कानून बनाने की आवश्यकता है ताकि एक बार पकड़े जाने पर रिश्वतखोर किसी भी दशा में लचर कानून का फायदा उठाकर छूट न जाए।

उपसंहार- भ्रष्टाचार हमारे समाज में लगा धुन है जो देश की प्रगति के लिए बाधक है। इसे समूल उखाड़ फेंकने के लिए युवाओं को आगे आना चाहिए तथा रिश्वत न लेने-देने के लिए प्रतिज्ञा करनी चाहिए। इसके अलावा लोगों को चारित्रिक बल एवं जीवनमूल्यों का ह्रास रोकते हुए रिश्वत नहीं लेना चाहिए। आइए हम सभी रिश्वत न लेने-देने की प्रतिज्ञा करते हैं।

(7) मनोरंजन के विभिन्न साधन

  • मनोरंजन की आवश्यकता और उसका महत्त्व
  • प्राचीन काल के मनोरंजन के साधन
  • आधुनिक काल के मनोरंजन के साधन
  • भारत में मनोरंजन के साधनों की स्थिति

प्रस्तावना – मनुष्य को अपनी अनेक तरह की आवश्यकताओं के लिए श्रम करना पड़ता है। श्रम के उपरांत थकान होना स्वाभाविक है। इसके अलावा जीवन संघर्ष और चिंताओं से परेशान होने पर वह इन्हें भूलना चाहता है और इनसे मुक्ति पाने का उपाय खोजता है और वह मनोरंजन का सहारा लेता है। मनोरंज से थके हुए मन-मस्तिष्क को सहारा मिलता है, एक नई स्फूर्ति मिलती है और कुछ पल के लिए व्यक्ति थकान एवं चिंता को भूल जाता है।

मनोरंजन की आवश्यकता और उसका महत्त्व – आदिम काल से ही मनुष्य को मनोरंजन की आवश्यकता रही है। जीवन संघर्ष से थका मानव ऐसा साधन ढूँढ़ना चाहता है जिससे उसका तन-मन दोनों ही प्रफुल्लित हो जाए और वह नव स्फूर्ति से भरकर कार्य में लग सके। वास्तव में मनोरंजन के बिना जीवन नीरस हो जाता है। ऐसी स्थिति में काम में उसका मन नहीं लगता है और न व्यक्ति को कार्य में वांछित सफलता मिलती है। ऐसे में मनोरंजन की आवश्यकता असंदिग्ध हो जाती है।

प्राचीन काल में मनोरंजन के साधन – प्राचीनकाल में न मनुष्य का इतना विकास हुआ था और न मनोरंजन के साधनों का। वह प्रकृति और जानवरों के अधिक निकट रहता था। ऐसे में उसके मनोरंजन के साधन भी प्रकृति और इन्हीं पालतू जानवरों के इर्द-गिर्द हुआ करते थे। वह तोता, मैना, तीतर, कुत्ता, भेड़, बैल, बिल्ली, कबूतर आदि पशु-पक्षी पालता था और तीतर, मुर्गे, भेड़ (नर) भैंसे, साँड़ आदि को लड़ाकर अपना मनोरंजन किया करता था। वह शिकार करके भी मनोरंजन किया करता था। इसके अलावा कुश्ती लड़कर, नाटक, नौटंकी, सर्कस आदि के माध्यम से मनोरंजन करता था। इसके अलावा पर्व-त्योहार तथा अन्य आयोजनों के मौके पर वह गाने-बजाने तथा नाचने के द्वारा आनंदित होता था।

आधुनिक काल के मनोरंजन के साधन-सभ्यता के विकास एवं विज्ञान की अद्भुत खोजों के कारण मनोरंजन का क्षेत्र भी अछूता न रह सका। प्राचीन काल की नौटंकी, नाच-गान की अन्य विधाओं का उत्कृष्ट रूप हमारे सामने आया। इससे नाटक के मंचन की व्यवस्था एवं प्रस्तुति में बदलाव के कारण नाटकों का आकर्षण बढ़ गया। पार्श्वगायन के कारण अब नाटक भी अपना मौलिक रूप कायम नहीं रख सके पर दर्शकों को आकर्षित करने में नाटक सफल हैं। लोग थियेटरों में इनसे भरपूर मनोरंजन करते हैं। सिनेमा आधुनिक काल का सर्वाधिक सशक्त और लोकप्रिय मनोरंजन का साधन है। यह हर आयु-वर्ग के लोगों की पहली पसंद है। यह सस्ता और सर्वसुलभ होने के अलावा ऐसा साधन है जो काल्पनिक घटनाओं को वास्तविक रूप में चमत्कारिक ढंग से प्रस्तुत करता है जिसका जादू-सा असर हमारे मन-मस्तिष्क पर छा जाता है और हम एक अलग दुनिया में खो जाते हैं। इस पर दिखाई जाने वाली फ़िल्में हमें कल्पनालोक में ले जाती हैं।

रेडियो और टेलीविज़न भी वर्तमान युग के मनोरंजन के लोकप्रिय साधन है। रेडियो पर गीत-संगीत, कहानी, चुटकुले, वार्ता आदि सनकर लोग अपना मनोरंजन करते हैं तो टेलीविज़न पर दुनिया को किसी कोने की घटनाएँ एवं ताज़े समाचार मनोरंजन के अलावा ज्ञानवर्धन भी करते हैं। तरह-तरह के धारावाहिक, फ़िल्में, कार्टून, खेल आदि देखकर लोग अपने दिनभर की थकान भूल जाते हैं। मोबाइल फ़ोन भी मनोरंजन का लोकप्रिय साधन सिद्ध हुआ है। इस पर एफ०एम० के विभिन्न चैनलों से तथा मेमोरी कार्ड में संचित गाने इच्छानुसार सुने जा सकते हैं। अकेला होते ही लोग इस पर गेम खेलना शुरू कर देते हैं। कैमरे के प्रयोग से मोबाइल की दुनिया में क्रांति आ गई। अब तो इससे रिकार्डिंग एवं फ़ोटोग्राफी करके मनोरंजन किया जाने लगा है।

इन साधनों के अलावा म्यूजिक प्लेयर्स, टेबलेट, कंप्यूटर भी मनोरंजन के साधन के रूप में प्रयोग किए जा रहे हैं।

भारत में मनोरंजन के साधनों की स्थिति- मनुष्य की बढ़ती आवश्यकता और सीमित होते संसाधनों के कारण मनोरंजन के साधनों की आवश्यकता और भी बढ़ गई है, परंतु बढ़ती जनसंख्या के कारण ये साधन महँगे हो रहे हैं तथा इनकी उपलब्धता सीमित हो रही है। आज न पार्क बच रहे हैं और खेल के मैदान। इनके अभाव में व्यक्ति का स्वभाव चिड़चिड़ा, रूखा और क्रोधी होता जा रहा है। इसके लिए मनोरंजन के साधनों को सर्वसुलभ और सबकी पहुँच में बनाया जाना चाहिए।

उपसंहार- मनोरंजन मानव जीवन के लिए अत्यावश्यक हैं, परंतु ‘अति सर्वत्र वय॑ते’ वाली उक्ति इन पर भी लागू होती है। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि मनोरंजन के चक्कर में हम इतने खो जाएँ कि हमारे काम इससे प्रभावित होने लगे और हम आलसी और कामचोर बन जाएँ। हमें ऐसी स्थिति से सदा बचना चाहिए।

(8) दूरदर्शन का मानव जीवन पर प्रभाव

  • दूरदर्शन का प्रभाव
  • दूरदर्शन से हानियाँ
  • दूरदर्शन का बढता उपयोग
  • दूरदर्शन के लाभ

प्रस्तावना – विज्ञानं ने मनुष्य को एक से बढ़कर एक अद्भुत उपकरण प्रदान किए हैं। इन्हीं अद्भुत उपकरणों में एक है दूरदर्शन। दूरदर्शन ऐसा अद्भुत उपकरण है जिसे कुछ समय पहले कल्पना की वस्तु समझा जाता था। यह आधुनिक युग में मनोरंजन के साथसाथ सूचनाओं की प्राप्ति का महत्त्वपूर्ण साधन भी है। पहले इसका प्रयोग महानगरों के संपन्न घरों तक सीमित था, परंतु वर्तमान में इसकी पहुँच शहर और गाँव के घर-घर तक हो गई है।

दरदर्शन का बढ़ता उपयोग – दूरदर्शन मनोरंजन एवं ज्ञानवर्धन का उत्तम साधन है। आज यह हर घर की आवश्यकता बन गया है। उपग्रह संबंधी प्रसारण की सुविधा के कारण इस पर कार्यक्रमों की भरमार हो गई है। कभी मात्र दो चैनल तक सीमित रहने वाले दूरदर्शन पर आज अनेकानेक चैनल हो गए हैं। बस रिमोट कंट्रोल उठाकर अपना मनपसंद चैनल लगाने और रुचि के अनुसार कार्यक्रम देखने की देर रहती है। आज दूरदर्शन पर फ़िल्म, धारावाहिक, समाचार, गीत-संगीत, लोकगीत, लोकनृत्य, वार्ता, खेलों के प्रसारण, बाजार भाव, मौसम का हाल, विभिन्न शैक्षिक कार्यक्रम तथा हिंदी-अंग्रेजी के अलावा क्षेत्रीय भाषाओं में प्रसारण की सुविधा के कारण यह महिलाओं, युवाओं और हर आयुवर्ग के लोगों में लोकप्रिय है।

दरदर्शन का प्रभाव – अपनी उपयोगिता के कारण दूरदर्शन आज विलसिता की वस्तु न होकर एक आवश्यकता बन गया है। बच्चेबूढ़े, युवा-प्रौढ़ और महिलाएँ इसे समान रूप से पसंद करती हैं। इस पर प्रसारित ‘रामायण’ और महाभारत जैसे कार्यक्रमों ने इसे जनमानस तक पहुँचा दिया। उस समय लोग इन कार्यक्रमों के प्रसारण के पूर्व ही अपना काम समाप्त या बंद कर इसके सामने आ बैठते थे। गाँवों और छोटे शहरों में सड़कें सुनसान हो जाती थीं। आज भी विभिन्न देशों का जब भारत के साथ क्रिकेट मैच होता है तो इसका असर जनमानस पर देखा जा सकता है। लोग सब कुछ भूलकर ही दूरदर्शन से चिपक जाते हैं और बच्चे पढ़ना भूल जाते हैं। आज भी महिलाएँ चाय बनाने जैसे छोटे-छोटे काम तभी निबटाती हैं जब धारावाहिक के बीच विज्ञापन आता है।

दरदर्शन के लाभ – दूरदर्शन विविध क्षेत्रों में विविध रूपों में लाभदायक है। यह वर्तमान में सबसे सस्ता और सुलभ मनोरंजन का साधन है। इस पर मात्र बिजली और कुछ रुपये के मासिक खर्च पर मनचाहे कार्यक्रमों का आनंद उठाया जा सकता है। दूरदर्शन पर प्रसारित फ़िल्मों ने अब सिनेमा के टिकट की लाइन में लगने से मुक्ति दिला दी है। अब फ़िल्म हो या कोई प्रिय धारावाहिक, घर बैठे इनका सपरिवार आनंद लिया जा सकता है।

दूरदर्शन पर प्रसारित समाचार ताज़ी और विश्व के किसी कोने में घट रही घटनाओं के चित्रों के साथ प्रसारित की जाती है जिससे इनकी विश्वसनीयता और भी बढ़ जाती है। इनसे हम दुनिया का हाल जान पाते हैं तो दूसरी ओर कल्पनातीत स्थानों, प्राणियों, घाटियों, वादियों, पहाड़ की चोटियों जैसे दुर्गम स्थानों का दर्शन हमें रोमांचित कर जाता है। इस तरह जिन स्थानों को हम पर्यटन के माध्यम से साक्षात नहीं देख पाते हैं या जिन्हें देखने के लिए न हमारी जेब अनुमति देती है और न हमारे पास समय है, को साक्षात हमारी आँखों के सामने प्रस्तुत कर देते हैं।

दूरदर्शन के माध्यम से हमें विभिन्न प्रकार का शैक्षिक एवं व्यावसायिक ज्ञान होता है। इन पर एन०सी०ई०आर०टी० के विभिन्न कार्यक्रम रोचक ढंग से प्रस्तुत किए जाते हैं। इसके अलावा रोज़गार, व्यवसाय, खेती-बारी संबंधी विविध जानकारियाँ भी मिलती हैं।

दरदर्शन से हानियाँ दूरदर्शन लोगों के बीच इतना लोकप्रिय है कि लोग इसके कार्यक्रमों में खो जाते हैं। उन्हें समय का ध्यान नहीं रहता। कुछ समय बाद लोगों को आज का काम कल पर टालने की आदत पड़ जाती है। इससे लोग आलसी और निकम्मे हो जाते हैं। दूरदर्शन के कारण बच्चों की पढ़ाई बाधित हो रही है। इससे एक ओर बच्चों की दृष्टि प्रभावित हो रही है तो दूसरी और उनमें असमय मोटापा बढ़ रहा है जो अनेक रोगों का कारण बनता है।

दूरदर्शन पर प्रसारित कार्यक्रमों में हिंसा, मारकाट, लूट, घरेलू झगडे, अर्धनंगापन आदि के दृश्य किशोर और युवा मन को गुमराह करते हैं जिससे समाज में अवांछित गतिविधियाँ और अपराध बढ़ रहे हैं। इसके अलावा भारतीय संस्कृति और मानवीय मूल्यों की अवहेलना दर्शन के कार्यक्रमों का ही असर है।

उपसंहार- दूरदर्शन अत्यंत उपयोगी उपकरण है जो आज हर घर तक अपनी पैठ बना चुका है। इसका दूसरा पक्ष भले ही उतना उज्ज वल न हो पर इससे दूरदर्शन की उपयोगिता कम नहीं हो जाती। दूरदर्शन के कार्यक्रम कितनी देर देखना है, कब देखना है, कौन से कार्यक्रम देखने हैं यह हमारे बुद्धि विवेक पर निर्भर करता है। इसके लिए दूरदर्शन दोषी नहीं है। दूरदर्शन का प्रयोग सोच-समझकर करना चाहिए।

(9) यदि मैं अपने विद्यालय का प्रधानाचार्य होता

  • पढ़ाई की उत्तम व्यवस्था
  • गरीब छात्रों के लिए विशेष प्रयास
  • मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था
  • परीक्षा प्रणाली में सुधार .
  • पाठ्य सहगामी क्रियाओं को बढ़ावा .

प्रस्तावना – मानव मन में नाना प्रकार की कल्पनाएँ जन्म लेती हैं। कल्पना के इसी उड़ान के समय वह खुद को भिन्न-भिन्न रूपों में देखता है। वह सोचता है कि यदि मैं यह होता तो ऐसा करता, यदि मैं वह होता तो वैसा करता है। मानव के इसी स्वभाव के अनुरूप मैं भी कल्पना की दुनिया में खोकर प्रायः सोचता हूँ कि यदि मैं अपने विद्यालय का प्रधानाचार्य होता तो कितना अच्छा होता। इस नई भूमिका को निभाने के लिए क्या-क्या करता, उसकी योजना बनाने लगता हूँ।

मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था – सरकारी विद्यालयों में मूलभूत सुविधाओं की क्या स्थिति होती है, यह बताने की आवश्यकता नहीं होती। यह बात तो सभी को पता ही है। मैं सर्वप्रथम विद्यालय में पीने के लिए स्वच्छ पानी की व्यवस्था करवाता। इसके बाद मेरा दूसरा कदम सफ़ाई की व्यवस्था की ओर होता। इस स्तर पर मैं दयनीय हालत में पहुँच चुके शौचालयों की सफ़ाई और मरम्मत करवाता। इसके बाद बच्चों के बैठने के लिए बेंचों की समुचित व्यवस्था कराता। अब कक्षा-कक्ष में श्यामपट और टूटी-फूटी और श्लोक लिखी दीवारों की मरम्मत कराकर रंग-पेंट करवाता। इसके बाद विद्यालय प्रांगण और खेल के मैदान की साफ़-सफ़ाई करवाता तथा विद्यालय परिसर में असामाजिक तत्वों और आवारा पशुओं के घुस आने से रोकने की पूरी व्यवस्था करता। मैं विद्यालय में इतनी टाट-पट्टियों की व्यवस्था करवाता कि सभी छात्र उस पर बैठकर मध्यांतर का खाना खा सकें।

पढ़ाई की उत्तम व्यवस्था – विद्यालय में मूलभूत सुविधाएँ होने के बाद मैं अध्यापकों की कमी पूरी करने के लिए विभाग को लिखता और जितने भी अध्यापक हैं उन्हें नियमित रूप से कक्षाओं में जाकर पढ़ाने को कहता। प्रत्येक विषय के शिक्षण के बाद बचे समय में छात्रों की खेल-कूद की व्यवस्था करता ताकि छात्र पढ़ाई के साथ-साथ खेलों में भी अच्छा प्रदर्शन करें। समय की माँग को देखते हुए मैं छात्रों को नैतिक शिक्षा अनिवार्य रूप से प्रतिदिन प्रार्थना सभा में देने की व्यवस्था सुनिश्चित करता।

परीक्षा प्रणाली में सुधार – वर्तमान में सरकार की फेल न करने की नीति से शिक्षा स्तर में गिरावट आ गई है। मैं छात्रों की परीक्षा प्रतिमाह करवाकर साल में दो मुख्य परीक्षाएँ आयोजित करवाता और परीक्षा में नकल रोकने पर पूरा जोर देता ताकि छात्रों में शुरू से ही पढ़ने की आदत का विकास हो और वे सरकारी नीति का सहारा लेने को विवश न हों।

गरीब छात्रों के लिए विशेष प्रयास – मैं अपने विद्यालय में गरीब किंतु मेधावी छात्रों की पढ़ाई के लिए विशेष प्रयास करवाता तथा छात्र कल्याण निधि से उनके लिए कापियाँ, स्टेशनरी और अन्य कार्यों के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करता। ऐसे छात्रों को छात्रवृत्ति संबंधी जानकारी समय-समय पर देकर उनको सरकारी सहायता दिलाने का सतत प्रयास करता।

पाठ्य सहगामी क्रियाओं को बढ़ावा – छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए पढ़ाई-लिखाई के अलावा अन्य क्रियाकलापों पर भी ध्यान देना आवश्यक है। मैं छात्रों की दिल्ली-दर्शन की व्यवस्था कर उन्हें दर्शनीय स्थानों को दिखाता। इसके अलावा बाल सभा के आयोजन में भाषण, कविता-पाठ, वाद-विवाद, नाटक अभिनय जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए छात्रों को प्रोत्साहित करता ताकि छात्र इनमें भाग लेकर इसे पढ़ाई का अंग समझें और पढ़ाई को बोझ मानने की भूल न करें।

उपसंहार – विदयालय का प्रधानाचार्य बनकर मैं चाहूँगा कि छात्रों में पढ़ाई के प्रति रुचि उत्पन्न हो। इसके लिए मैं उन्हें पढ़ाते समय सरल और रुचिकर तकनीक अपनाने के लिए शिक्षकों से कहूँगा। मैं छात्रों को यह अवसर दूंगा कि वे अपनी बात कर सकें। इतने प्रयासों के बाद मेरा विद्यालय निःसंदेह अच्छा बन जाएगा। विद्यालय की उन्नति में ही मेरी मेहनत सार्थक सिद्ध होगी।

(10) देश के विकास में बाधक बेरोज़गारी

  • बेरोज़गारी के कारण
  • बेरोज़गारी के परिणाम
  • बेरोज़गारी का अर्थ
  • समाधान के उपाय

प्रस्तावना – स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमारे देश को कई समस्याओं से दो-चार होना पड़ा है। इन समस्याओं में मूल्य वृद्धि, जनसंख्या वृद्धि, प्रदूषण, भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी आदि प्रमुख हैं। इनमें बेरोजगारी का सीधा असर व्यक्ति पर पड़ता है। यही असर व्यक्ति के स्तर से आगे बढ़कर देश के विकास में बाधक सिद्ध होता है।

बेरोज़गारी का अर्थ – ‘रोज़गार’ शब्द में ‘बे’ उपसर्ग और ‘ई’ प्रत्यय के मेल से ‘बेरोज़गारी’ शब्द बना है, जिसका अर्थ है वह स्थिति जिसमें व्यक्ति के पास काम न हो अर्थात जब व्यक्ति काम करना चाहता है और उसमें काम करने की शक्ति, सामर्थ्य और योग्यता होने पर भी उसे काम नहीं मिल पाता है। यह देश का दुर्भाग्य है कि हमारे देश में लाखों-हज़ारों नहीं बल्कि करोड़ों लोग इस स्थिति से गुजरने को विवश हैं।

बेरोज़गारी के कारण – बेरोज़गारी बढ़ने के कई कारण हैं। इनमें सर्वप्रमुख कारण हैं- देश की निरंतर बढ़ती जनसंख्या। इस बढ़ती जनसंख्या के कारण सरकारी और प्राइवेट सेक्टर द्वारा रोज़गार के जितने पद और अवसर सृजित किए जाते हैं वे अपर्याप्त सिद्ध होते हैं। परिणामतः यह समस्या सुरसा के मुँह की भाँति बढ़ती ही जाती है। बेरोज़गारी बढ़ाने के अन्य कारणों में अशिक्षा, तकनीकी योग्यता, सरकारी नौकरी की चाह, स्वरोज़गार न करने की प्रवृत्ति, उच्च शिक्षा के कारण छोटी नौकरियाँ न करने का संकोच, कंप्यूटर जैसे उपकरणों में वृद्धि, मशीनीकरण, लघु उद्योग-धंधों का नष्ट होना आदि है।

इनके अलावा एक महत्त्वपूर्ण निर्धनता भी है, जिसके कारण कोई व्यक्ति चाहकर भी स्वरोज़गार स्थापित नहीं कर पाता है। हमारे देश की शिक्षा प्रणाली भी ऐसी है जो बेरोजगारों की फौज़ तैयार करती है। यह शिक्षा सैद्धांतिक अधिक प्रयोगात्मक कम है जिससे कौशल विकास नहीं हो पाता है। ऊँची-ऊँची डिग्रियाँ लेने पर भी विश्वविद्यालयों और कालेजों से निकला युवा स्वयं को ऐसी स्थिति में पाता है जिसके पास डिग्रियाँ होने पर भी काम करने की योग्यता नहीं है। इसका कारण स्पष्ट है कि उसके पास तकनीकी योग्यता का अभाव है।

समाधान के उपाय – बेरोज़गारी दूर करने के लिए सरकार और बेरोज़गारों के साथ-साथ प्राइवेट उद्योग के मालिकों को सामंजस्य बिठाते हुए ठोस कदम उठाना होगा। इसके लिए सरकार को रोजगार के नवपदों का सृजन करना चाहिए। यहाँ यह भी ध्यान रखना चाहिए कि नवपदों के सृजन से समस्या का हल पूर्णतया संभव नहीं है, क्योंकि बेरोजगारों की फ़ौज बहुत लंबी है जो समय के साथसाथ बढ़ती भी जा रही है। सरकार को माध्यमिक कक्षाओं से तकनीकी शिक्षा अनिवार्य कर देना चाहिए ताकि युवा वर्ग डिग्री लेने के बाद असहाय न महसूस करे।

सरकार को स्वरोजगार को प्रोत्साहन देने के लिए बहुत कम दरों पर कर्ज देना चाहिए तथा युवाओं के प्रशिक्षण की व्यवस्था करते हुए इन उद्योगों का बीमा भी करना चाहिए। सरकार को चाहिए कि वह लघु एवं कुटीर उद्योगों के अलावा पशुपालन, मत्स्य पालन आदि को भी बढ़ावा दे। प्राइवेट उद्यमियों को चाहिए कि वे युवाओं को अपने यहाँ ऐसी सुविधाएँ दे कि युवाओं का सरकारी नौकरी से आकर्षण कम हो। युवा वर्ग को अपनी सोच में बदलाव लाना चाहिए तथा उनकी उच्च शिक्षा बाधक नहीं बल्कि सफलता के मार्ग का साधन है जिसका प्रयोग वे समय आने पर कर सकते हैं। अभी जो भी मिल रही है उसे पहली सीढ़ी मानकर शुरुआत तो करें। इसके अलावा उच्च शिक्षा के साथ-साथ तकनीकी शिक्षा अवश्य ग्रहण करें ताकि स्वरोजगार और प्राइवेट नौकरियों के द्वार भी उनके लिए खुले रहें।

बेरोज़गारी के परिणाम – कहा गया है कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है। बेरोज़गार व्यक्ति खाली होने से अपनी शक्ति का दुरुपयोग असामाजिक कार्यों में लगाता है। वह असामाजिक कार्यों में शामिल होता है और कानून व्यवस्था भंग करता है। ऐसा व्यक्ति अपना तथा राष्ट्र दोनों का विकास अवरुद्ध करता है। ‘बुबुक्षकः किम् न करोति पापं’ भूखा व्यक्ति कौन-सा पाप नहीं करता है अर्थात भूखा व्यक्ति चोरी, लूटमार, हत्या जैसे सारे पाप कर्म कर बैठता है। अत: व्यक्ति को रोज़गार तो मिलना ही चाहिए।

उपसंहार-बेरोज़गारी की समस्या पूरे देश की समस्या है। यह व्यक्ति, समाज और देश के विकास में बाधक सिद्ध होती है। जनसंख्या वृद्धि पर अंकुश लगाने के साथ ही इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है। बेरोज़गारी कम करने में सरकार के साथ-साथ समाज और युवाओं की सोच में बदलाव लाना आवश्यक है।

(11) वन रहेंगे हम रहेंगे

  • वनों के विभिन्न लाभ
  • हमारा दायित्व
  • वनों से प्राकृतिक संतुलन
  • नगरीकरण का प्रभाव

प्रस्तावना – वनों के साथ मनुष्य का संबंध बहुत पुराना है। आदिमानव वनों की गोद में ही पला-बढ़ा है और अपना जीवन उन्हीं वनों में व्यतीत किया है। वन मानव के लिए प्रकृति प्रदत्त अनुपम वरदान है। वन मनुष्य की विविध आवश्यकताओं को विविध रूपों में पूरा करते हैं। सच तो यह है कि वनों के बिना धरती पर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है।

वनों से प्राकतिक संतुलन – वन शिव की भाँति परोपकारी होते हैं। वे जहरीली गैसों का पानकर जीवनदायी ऑक्सीजन प्रदान करते हैं, जिससे प्राणियों को जीवन मिलता है। धरती पर निरंतर बढ़ते कल-कारखाने और उनसे निकलता धुआँ, मोटर-गाड़ियों का ज़हरीला धुआँ तथा मनुष्य के विभिन्न क्रियाकलापों से कार्बन डाई ऑक्साइड और सल्फर डाई ऑक्साइड जैसी गैसों के कारण वायुमंडल विषाक्त हो जाता है। उससे ऑक्सीजन की मात्रा घटती जाती है पर पेड़-पौधे इस दूषित हवा का अवशोषण कर शुद्ध हवा देकर प्राकृतिक संतुलन बनाए रखते हैं।

वनों के विभिन्न लाभ – वनों से मनुष्य को इतने लाभ हैं कि उनका आकलन सरल नहीं है। वनों के लाभों को दो भागों में बाँटा जा सकता है – 1. प्रत्यक्ष लाभ-वन मनुष्य को फल-फूल, इमारती लकड़ी और जलावनी लकड़ी, गोद, शहद, पत्तियाँ, जानवरों के लिए चारा और छाया देते हैं। इनसे हमारे उद्योग-धंधों को मज़बूत आधार मिलता है। बहुत से उद्योगों के लिए कच्चा माल इन्हीं वनों से मिलता है। कागज़, प्लाइवुड, रेशम, दियासलाई अगरबत्ती जैसे उद्योगों का आधार वन हैं।

2. अप्रत्यक्ष लाभ-वनों से अनेक ऐसे लाभ हैं जिन्हें हम देख नहीं पाते हैं। वन सभी प्राणियों के लिए जीवनदायी ऑक्सीजन देते हैं जिसके मूल्य का अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता है। इसके अलावा वन पशु-पक्षियों को आश्रय एवं भोजन उपलब्ध कराते हैं। वन एक ओर वर्षा लाने में सहायक हैं तो दूसरी ओर मिट्टी का कटाव रोककर मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बनाए रखते हैं। इस मिट्टी को बहकर नदियों में जाने से रोककर वृक्ष बाढ़ रोकने में भी मदद करते हैं। इसके अलावा वन धरा का शृंगार हैं जो अपनी हरियाली से उसकी सुंदरता में वृद्धि करते हैं।

नगरीकरण का प्रभाव – दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ती जनसंख्या और उसकी आवश्यकता की सर्वाधिक मार वनों पर पड़ी है। मनुष्य ने अपनी बढ़ती आवासीय आवश्यकता के लिए वनों की अंधाधुंध कटाई की है। इसके अलावा उद्योगों की स्थापना से वन विनाश बढ़ा है। इससे सबसे अधिक बुरा असर शहरों और महानगरों पर पड़ा है जहाँ अब साँस लेने के लिए स्वच्छ हवा दुर्लभ हो गई है। इन उद्योगों और कल-कारखानों की चिमनियों से निकला धुआँ न केवल मनुष्य के लिए बल्कि वनों की वृद्धि में बाधक सिद्ध होती है। वनों की कटाई करते हुए मनुष्य यह भी भूल जाता है कि वनों का विनाश करके वह अपना विनाश करने पर तुला है।

हमारा दायित्व-वनों का विनाश रोककर ही मनुष्यता का विनाश रोका जा सकता है। ऐसे में मनुष्य का यह पहला दायित्व बनता है कि यदि वह अपनी ज़रूरत के लिए एक पेड़ काटता है तो उसकी जगह चार नए पौधे लगाए और पेड़ बनने तक उनकी देखभाल करे। अब वह समय आ गया है कि त्योहारों, जन्मदिन, विवाह या अन्य मांगलिक अवसरों पर पेड़ लगाएँ जाएँ और उनका संरक्षण किया जाए। वनों को बचाने के लिए अब पुनः एक बार ‘चिपको आंदोलन’ जैसा ही आंदोलन एवं जन जागरण चलाकर इन्हें कटने से बचाने का प्रयास करना चाहिए। सड़कों को चौड़ा करने और मेट्रो रेल जैसी नई परियोजना को पूरा करते समय जितने पेड़ काटे जाएँ उनके दूने पेड़ लगाना अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए।

उपसंहार-वन प्राणियों के लिए वरदान हैं। इस वरदान को बनाए रखने की बहुत आवश्यकता है। वनों के सहारे ही पृथ्वी पर प्राणियों का जीवन संभव है। भरपूर वर्षा, धरती पर हरियाली और उसकी उर्वराशक्ति बनाए रखने के लिए वनों का होना आवश्यक है। हमें वनों के संरक्षण का हर संभव प्रयास करना चाहिए, क्योंकि वनों के बिना पृथ्वी पर जीवन न बचेगा। आइए हम सभी प्रतिवर्ष एक से अधिक पेड़ लगाने की प्रतिज्ञा करते हैं।

(12) कंप्यूटर के लाभ

संकेत-बिंदु –

  • कंप्यूटर की उपयोगिता
  • विद्यार्थियों के लिए उपयोगी
  • वर्तमान युग-कंप्यूटर युग
  • कंप्यूटर और इंटरनेट का मेल
  • प्रकाशन क्षेत्र में कंप्यूटर

प्रस्तावना – विज्ञान की प्रगति ने मनुष्य की दुनिया बदलकर रख दी है। उसने मनुष्य को नाना प्रकार के सुविधा के साधन प्रदान किए हैं। उसकी कृपा से मनुष्य को ऐसे अत्याधुनिक उपकरण मिले हैं जिनकी कभी वह कल्पना किया करता था। ऐसे यंत्रों में टेलीविज़न, मोबाइल फ़ोन, लैपटॉप, कैलकुलेटर, कंप्यूटर आदि हैं। इनमें कंप्यूटर ऐसा उपकरण है जिसने लगभग हर क्षेत्र में अपनी उपयोगिता साबित की है और अब तो सभी को ज़रूरत बनता जा रहा है।

वर्तमान युग (कंप्यूटर-युग) – वर्तमान युग को कंप्यूटर युग कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है। कार्यालयों में इस यंत्र का उपयोग जितना तेज़ी से बढ़ा और लोकप्रिय हुआ है, उतना अन्य कोई उपकरण नहीं। आज हम नज़र दौड़ाकर देखें तो जीवन के हर क्षेत्र में उसका हस्तक्षेप दिखाई देता है। इतना ही नहीं इंटरनेट के मेल ने कंप्यूटर को बहुपयोगी बना दिया है। सरकारी या प्राइवेट कोई भी कार्यालय ऐसा न होगा जहाँ पर इसका उपयोग न हो।

कंप्यूटर की उपयोगिता – कंप्यूटर अपनी कार्यप्रणाली और त्वरित गणना के कारण अत्यधिक उपयोगी बन गया है। यह जटिल-सेजटिल गणनाएँ सेकंड में कर देता है। इसके अलावा कंप्यूटर से मानवीय भूल की संभावना न के बराबर हो जाती है। ये गणनाएँ इतने कम समय में हो जाती हैं कि कई व्यक्ति भी मिलकर नहीं कर सकते हैं। आज कार्यालयों में कई व्यक्तियों का कार्य अकेला कंप्यूटर कर देता है। अब कार्यालयों में न फाइलें खोने का डर है और चूहों के कुतरने का। बैंक, रेलवे आरक्षण केंद्र, अस्पतालों में मरीजों का आरक्षण, तरह-तरह की डिजाइनें बनाने का काम तथा छपाई की दुनिया में क्रांति ला दिया है। खेल की दुनिया में तरहतरह के रिकॉर्ड पलक झपकते प्रस्तुत कर देना कंप्यूटर के बाएँ हाथ का काम है। कंप्यूटर के कारण अब काम का तनाव नहीं रह गया, क्योंकि अशुद्धियों की संभावना न के बराबर रह जाती है।

कंप्यूटर और इंटरनेट का मेल – कंप्यूटर के साथ इंटरनेट का मेल होने से कंप्यूटर की उपयोगिता कई गुना बढ़ गई है। अब कंप्यूटर के साथ बैठकर किसी भी तरह की जानकारी पलभर में पाई जाती है। कोई भी विषय हो, कंप्यूटर जवाब देने के लिए तैयार है। आपके बैंक की पासबुक कंप्यूटर पर उपलब्ध है। रेलवे की आरक्षण तालिका से अपनी मनपसंद के ट्रेन में सीटों की उपलब्धता जानी जा सकती है। आज इंटरनेट युक्त कंप्यूटर की मदद से अपने देश ही नहीं विदेश की जानकारी भी पाई जा सकती है।

विद्यार्थी के लिए उपयोगी-जिस तरह कंप्यूटर के कारण अब फाइलों की आवश्यकता नहीं रही और उनके स्टोर्स की ज़रूरत नहीं रही उसी प्रकार कंप्यूटर ने विद्यार्थियों का काम भी सुगम बना दिया है। अब छात्रों को मोटी-मोटी पुस्तकें उठाने, लाने-ले जाने की ज़रूरत नहीं रही। कई-कई पुस्तकें एक मेमोरी कार्ड में डालकर कंप्यूटर पर पढ़ी जा सकती हैं। अब छात्रों के लिए एक सुविधा यह भी है कि कंप्यूटर पर पढ़ा ही नहीं लिखा भी जा सकता है तथा किसी जगह की गलती को सुधारकर त्रुटिहीन प्रिंट निकाला जा सकता है। नक्शे, दुर्लभ चित्र और दुर्लभ पुस्तकें अब खरीदने की आवश्यकता नहीं रही। बस कंप्यूटर पर एक क्लिक करके इनका लाभ उठाया जा सकता है।

प्रकाशन क्षेत्र में कंप्यटर – कंप्यूटर ने प्रकाशन की दुनिया में क्रांति ला दी है। अब पुस्तकों की छपाई की गुणवत्ता, त्रुटिहीनता और उनके आकर्षण की वृद्धि का श्रेय कंप्यूटर को जाता है। इतना ही नहीं कंप्यूटर से यह काम अल्प समय में हो जाता है। इसके अलावा कंप्यूटर से छपाई के कारण पुस्तकों का मूल्य कम हुआ है जिसका लाभ विद्यार्थियों को मिला है। कंप्यूटर उन जटिल चित्रों को सहजता से बनाकर प्रस्तुत कर देता है जिन्हें बनाना कठिन है।

उपसंहार-कंप्यूटर को विज्ञान का अद्भुत वरदान समझना चाहिए, जिसने कदम-कदम पर मनुष्य की मदद की है। ‘अति सर्वत्र वय॑ते’ का सिद्धांत कंप्यूटर पर भी लागू होता है। हमें कंप्यूटर का तभी उपयोग करना चाहिए जब आवश्यक हो तथा इसका दुरुपयोग भूलकर भी नहीं करना चाहिए ताकि यह वरदान अभिशाप न बनने पाए।

(13) जीवन में खेलकूद का महत्त्व

  • खेल बढ़ाते मानवीय गुण
  • खेलों के लिए प्रोत्साहन
  • खेलों से शारीरिक एवं मानसिक विकास
  • खेल-एक आकर्षक कैरियर

प्रस्तावना – किसी समय कहा जाता था कि ‘खेलोगे-कूदोगे बनोगे खराब, पढ़ी-लिखोगे बनोगे नवाब’ परंतु यह उक्ति आज अपनी प्रासंगिकता एवं उपयोगिता पूर्णतया खो चुकी है। खेल हर आयु-वर्ग की आज आवश्यकता बन चुके हैं। पहले मनुष्य अपने दैनिक जीवन में शारीरिक परिश्रम वाली क्रियाएँ करता था, जिससे उसकी खेल-संबंधी आवश्यकताएँ पूरी हो जाती थीं, परंतु आज की दिनचर्या में खेलों की आवश्यकता एवं महत्ता और भी बढ़ गई है। अब तो डॉक्टर भी प्रातः खुली हवा में सैर करने, व्यायाम करने, योगा करने की सलाह देने लगे हैं।

खेलों से शारीरिक एवं मानसिक विकास – खेल प्रायः दो प्रकार के होते हैं-पहले वे जिन्हें खुले मैदानों में खेला जाता है और दूसरे वे जिन्हें घर में बैठकर खेला जाता है। इनमें पहले प्रकार के खेल; जैसे-क्रिकेट, हॉकी फुटबॉल, वालीबॉल, कुश्ती, घुड़सवारी, लंबी-ऊँची कूद, दौड़ आदि खेलों में शारीरिक गतिविधियाँ अधिक होती हैं। इन खेलों से हमारा शरीर पुष्ट होता है। इनसे मांसपेशियाँ और हड्डियाँ पुष्ट और मज़बूत बनती हैं, शरीर सुडौल बनता है। इससे शरीर की सभी इंद्रियाँ सक्रिय रहती हैं तथा रक्त संचार सुचारु बनता है।

इन खेलों को खेलने से शारीरिक श्रम अधिक करना पड़ता है, अतः खिलाड़ी गहरी-गहरी साँसें लेते हैं जिससे हमारे फेफड़ों में ऑक्सीजन अधिक मात्रा में आती है जिससे शरीर को ऊर्जा मिलती है और हमारा पाचन ठीक रहता है जिससे भूख अधिक लगती है और हमारे द्वारा खाया-पिया गया आसानी से पच जाता है। इससे शरीर स्वस्थ और निरोग रहता है। इसके विपरीत खेल न खेलने वाले व्यक्ति की पाचन क्रिया ठीक न होने से वह अनेक बीमारियों से घिर जाता है। वह आलस्य अनुभव करता है, मोटापे का शिकार होता है और थोड़ा-सा भी काम करने, दौड़ने-भागने आदि से हाँफने लगता है। उसका स्वास्थ्य ठीक न होने से सब कुछ अच्छा होने से भी उसे कुछ अच्छा नहीं लगता है और निराशा तथा उदासी से घिर जाता है।

खेलों से मानसिक विकास भी होता है। शतरंज, लूडो, कैरम, ताश, वीडियोगेम जैसे खेल हमारी मानसिक क्षमता, चिंतन, सोच-विचार को बढ़ाते हैं जो हमारे जीवन के लिए उपयोगी सिद्ध होते हैं।

खेल बढ़ाते मानवीय गुण – खेल हमारे भीतर मानवीय गुणों को पैदा करते हैं तथा उनका विकास करते हैं। खेल एक ओर मित्रता और सद्व्यवहार को बढ़ावा देते हैं तो हमें हार-जीत को समभाव से ग्रहण करने की सीख देते हैं। यह भावना जीवन में सफलता पाने के लिए आवश्यक होती है। खेल हमारे भीतर त्वरित निर्णय लेने की क्षमता का विकास करते हैं। खेलों से ईमानदार बनने, परस्पर सहयोग करने, मिल-जुलकर रहने तथा त्याग करने की सीख देते हैं। इसके अलावा खेलों से हम अनुशासन, संगठन, साहस, विश्वास, आज्ञाकारिता, सहानुभूति, उदारता, आदि गुणों को खेल-ही-खेल में विकसित कर लेते हैं।

खेल एक आकर्षक कैरियर – खेल अब केवल खेलने-कूदने और स्वस्थ रहने का साधन ही नहीं रह गए हैं, बल्कि खेलों में एक आकर्षक कैरियर भी छिपा है। आज खेलों में अच्छा प्रदर्शन करके यश और नाम कमाया जा सकता है। सचिन तेंदुलकर, महेंद्र सिंह धोनी, युवराज, राहुल द्रविड़, कपिल देव, साइना नेहवाल, सानिया मिर्जा आदि की प्रसिद्धि और वैभव संपन्नता का कारण खेल ही है। खेलों से ही ये विश्व प्रसिद्ध बने हैं और अपार धन के स्वामी बने हैं। इसके अलावा विभिन्न खेलों में अच्छा प्रदर्शन करने के बाद एक समयोपरांत खेल प्रशिक्षक बनकर प्रशिक्षण केंद्र खोलकर नियमित आय अर्जित की जा सकती है।

खेलों के लिए प्रोत्साहन – खेलों में निरंतर उन्नत प्रदर्शन करने के लिए प्रोत्साहन और प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। प्रतियोगिताओं में विभिन्न प्रदेशों और देशों के खिलाड़ी भाग लेते हैं। इनके बीच पदक जीतने या स्थान हासिल करने के लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। यह प्रशिक्षण जितनी कम आयु से शुरू कर दिया जाए उतना ही अच्छा होता है। इसके लिए सरकार को जगह-जगह खेल प्रशिक्षण केंद्र खोलना चाहिए और ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं को भी खेलों में अच्छा करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

उपसंहार-खेल जीवन के लिए बहुत ज़रूरी होते हैं। ये नाना प्रकार से मनुष्य को लाभ पहुँचाते हैं। खेल स्वास्थ्य के लिए हितकारी होने के साथ ही मानवीय मूल्यों का विकास करते हैं। हमें खेलों को खेल भावना से खेलना चाहिए, बदला लेने की नीयत से नहीं। हमें खेलों में भाग लेना चाहिए और बच्चों को खेलों में भाग लेने के लिए प्रेरित करना चाहिए। हम सभी को किसी-न-किसी एक खेल का भागीदार अवश्य बनना चाहिए।

(14) मेरी अविस्मरणीय यात्रा

  • यात्रा की अविस्मरणीय बातें
  • यात्रा की तैयारी
  • अविस्मरणीय होने के कारण

प्रस्तावना – मनुष्य आदिकाल से ही घुमंतू प्राणी रहा है। यह घुमंतूपन उसके स्वभाव का अंग बन चुका है। आदिकाल में मनुष्य अपने भोजन और आश्रय की तलाश में भटकता था तो बाद में अपनी बढ़ी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए। इनके अलावा यात्रा का एक और उद्देश्य है-मनोरंजन एवं ज्ञानवर्धन। कुछ लोग समय-समय पर इस तरह की यात्राएँ करना अपने व्यवहार में शामिल कर चुके हैं। ऐसी एक यात्रा करने का अवसर मुझे अपने परिवार के साथ मिला था। दिल्ली से वैष्णों देवी तक की गई इस यात्रा की यादें अविस्मरणीय बन गई हैं।

यात्रा की तैयारी – वैष्णों देवी की इस यात्रा के लिए मन में बड़ा उत्साह था। यह पहले से ही तय कर लिया गया था कि इस बार दशहरे की छुट्टियों में हमें वैष्णों देवी की यात्रा करना है। इसके लिए दो महीने पहले ही आरक्षण करवा लिया गया था। आरक्षण करवाते समय यह ध्यान रखा गया था कि हमारी यात्रा दिल्ली से सवेरे शुरू हो ताकि रास्ते के दृश्यों का आनंद उठाया जा सके। रास्ते में खाने के लिए आवश्यक खाद्य पदार्थ घर पर ही तैयार किए गए। चूँकि हमें सवेरे-सवेरे निकलना था, इसलिए कुछ गर्म कपड़ों के अलावा अन्य कपड़े एक-दो पुस्तकें, पत्र-पत्रिकाएँ टिकट, पहचान पत्र आदि दो-तीन सूटकेसों में यथास्थान रख लिए गए। शाम का खाना जल्दी खाकर हम अलार्म लगाकर सो गए ताकि जल्दी उठ सकें और रेलवे स्टेशन पहुँच सकें।

यात्रा की अविस्मरणीय बातें – दिल्ली से जम्मू और वैष्णों देवी की इस यात्रा में एक नहीं अनेक बातें अविस्मरणीय बन गई। हम सभी लगभग चार बजे नई दिल्ली से जम्मू जाने वाली ट्रेन के इंतजार में प्लेटफॉर्म संख्या 5 पर पहुँच गए। मैं सोचता था कि इतनी जल्दी प्लेटफॉर्म पर इक्का-दुक्का लोग ही होंगे पर मेरी यह धारणा गलत साबित हुई। प्लेटफार्म पर सैकड़ों लोग थे। हॉकर और वेंडर खाने-पीने की वस्तुएँ समोसे, छोले, पूरियाँ और सब्जी बनाने में व्यस्त थे। अखबार वाले अखबार बेच रहे थे। कुली ट्रेन आने का इंतज़ार कर रहे थे और कुछ लोग पुराने गत्ते बिछाए चद्दर ओढ़कर नींद का आनंद ले रहे थे।

ट्रेन आने की घोषणा होते ही प्लेटफार्म पर हलचल मच गई। यात्री और कुली सजग हो उठे तथा वेंडरों ने अपना-अपना सामान उठा लिया। ट्रेन आते ही पहले चढ़ने के चक्कर में धक्का-मुक्की होने लगी। दो-चार यात्री ही उस डिब्बे से उतरे पर चढ़ने वाले अधिक थे। हम लोग अपनी-अपनी सीट पर बैठ भी न पाए थे कि शोर उठा, ‘जेब कट गई’। जिस यात्री की जेब कटी थी उसका पर्स और मोबाइल फ़ोन निकल चुका था। हमने अपनी-अपनी जेबें चेक किया, सब सही-सलामत था। आधे घंटे बाद ट्रेन अपने गंतव्य की ओर चल पड़ी। एक-डेढ़ घंटे चलने के बाद बाहर का दृश्य खिड़की से साफ़-साफ़ नज़र आने लगा। रेलवे लाइन के दोनों ओर दूर-दूर तक धरती ने हरी चादर बिछा दी थी। हरियाली का ऐसा नजारा दिल्ली में दुर्लभ था। ऐसी हरियाली घंटों देखने के बाद भी आँखें तृप्त होने का नाम नहीं ले रही थीं। हमारी ट्रेन आगे भागी जा रही थी और पेड़ पीछे की ओर। कभी-कभी जब बगल वाली पटरी से कोई ट्रेन गुज़रती तो लगता कि परदे पर कोई ट्रेन गुज़र रही थी।

ट्रेन में हमें नाश्ता और काफी मिल गई। दस बजे के आसपास अब खेतों में चरती गाएँ और अन्य जानवर नज़र आने लगे। उन्हें चराने वाले लड़के हमें देखकर हँसते, तालियाँ बजाते और हाथ हिलाते। सब कुछ मस्तिष्क की मेमोरी कार्ड में अंकित होता जा रहा था। लगभग एक बजे ट्रेन में ही हमें खाना दिया गया। खाना स्वादिष्ट था। हमने पेट भर खाया और जब नींद आने लगी तब सो गए। चक्की बैंक पहुँचने पर ही हमारी आँखें शोर सुनकर खुली कि बगल वाली सीट से कोई सूटकेस चुराने की कोशिश कर रहा था पर पकड़ा गया। कुछ और आगे बढ़ने पर पर्वतीय सौंदर्य देखकर आँखें तृप्त हो रही थीं। जम्मू पहुँचकर हम ट्रेन से उतरे और बस से कटरा गया। सीले रास्ते पर चलने का रोमांच हमें कभी नहीं भूलेगा। कटरा में रातभर आराम करने के बाद हम सवेरे तैयार होकर पैदल वैष्णों देवी के लिए चल पड़े और दो बजे वैष्णों देवी पहुंच गए।

अविस्मरणीय होने के कारण – इस यात्रा के अविस्मरणीय होने के कारण मेरी पहली रेल यात्रा, प्लेटफॉर्म का दृश्य, ट्रेन में चोरी, जेब काटने की घटना के अलावा प्राकृतिक दृश्य और पहाड़ों को निकट से देखकर उनके नैसर्गिक सौंदर्य का आनंद उठाना था। पहाड़ आकार में इतने बड़े होते हैं, यह उनको देखकर जाना। पहाड़ी जलवायु और वहाँ के लोगों का परिश्रमपूर्ण जीवन का अनुभव मुझे सदैव याद रहेगा।

उपसंहार-मैं सोच भी नहीं सकता था कि हरे-भरे खेत इतने आकर्षक होंगे और ट्रेन की यह यात्रा इस तरह रोमांचक होगी। पहाड़ी सौंदर्य देखकर मन अभिभूत हो उठा। अब तो इसी प्रकार की कोई और यात्रा करने की उत्सुकता मन में बनी हुई है। इस यात्रा की यादें मुझे सदैव रोमांचित करती रहेंगी।

(15) विज्ञान के वरदान

  • विज्ञान से हानियाँ
  • विज्ञान के विभिन्न वरदान
  • विज्ञान का विवेकपूर्ण उपयोग

प्रस्तावना – मानव जीवन को सरल और सुखमय बनाने में सबसे ज्यादा यदि किसी का योगदान है तो वह विज्ञान का है। विज्ञान ने कदम-कदम पर मानव जीवन में हस्तक्षेप किया है और मनुष्य को इतनी सुविधाएँ प्रदान की हैं कि मनुष्य विज्ञान के अधीन होकर रह गया है। विज्ञान ने धरती आकाश और जल क्षेत्र तीनों को प्रभावित किया है। धरती का तो शायद ही कोई कोई कोना हो जहाँ विज्ञान ने कदम न रखा हो। विज्ञान के कारण मनुष्य ने उन्नति की है। मानव जीवन में क्रांति लाने का श्रेय विज्ञान को है। आज जिधर भी नज़र डालें, विज्ञान का प्रभाव सर्वत्र दृष्टिगोचर होता है।

विज्ञान के विभिन्न वरदान – विज्ञान ने मनुष्य को इतनी सुविधाएँ दी हैं कि वह मनुष्य के लिए कामधेनु बन गया है। सर्वप्रथम कृषि क्षेत्र को देखते हैं। यहाँ पूरी तरह से बदलाव का कारण विज्ञान है। अब किसान को न हल चलाने की ज़रूरत है और न सिंचाई के लिए बैलों के पीछे दौड़ लगाने की। उसे अब निराई के लिए खुरपी उठाने की ज़रूरत नहीं हैं और न कटाई के लिए हँसिया उठाने की और न उसे धूप में चलकर एड़ी का पसीना चोटी पर पहुँचाने की। विज्ञान की कृपा से अब उसके पास ट्रैक्टर, ट्यूबवेल, कीटनाशक, खरपतवार नाशक यंत्र और दवाएँ हैं तथा कटाई-मड़ाई के लिए हारवेस्ट है जिनसे वह हफ़्तों का काम घंटों में कर लेता है। इसके अलावा उन्नतिशील बीज, खाद और यंत्रों का आविष्कार विज्ञान के कारण ही संभव हो पाया है। पैदल और बैलगाड़ियों पर यात्रा करने वाले मनुष्य के पास धरती, आकाश और जल पर चलने वाले द्रुतगामी साधन हैं जिनसे वह अपनी यात्रा को सरल, सुखद और मंगलमय ढंग से पूरा कर लेता है। विज्ञान के कारण अब आवागमन के साधनों से समय और श्रम दोनों बचने लगा है।।

अभी हरकारों और कबूतरों से संदेश भेजने वाला मनुष्य पत्रों की दुनिया से आगे बढ़कर रफ़्तार टेलीफ़ोन, ईमेल से होते मोबाइल तक आ पहुँचा है। जिस पत्र का जवाब आने में महीनों लगते थे और इलाज के लिए भेजा गया पैसा मरीज की मृत्यु और क्रिया कर्म के बाद मिलता था वही जवाब और पैसा अब हाथों हाथ मिलने लगा है। इतना ही नहीं अब तो बातें करते हुए व्यक्ति को हम देख भी सकते हैं। सरदी, गरमी और बरसात की मार झेलने वाले मनुष्य के पास अलग-अलग मौसम के कपड़े हैं। उसके पास हीटर और ब्लोअर हैं जो सरदी को उसके पास आने भी नहीं देते हैं। गरमी भगाने के लिए व्यक्ति के पास पंखे, कूलर और ए.सी. हैं। अब उसके यातायात के साधन भी वातानुकूलित हैं। वह जिन आरामदायी भवनों में रहता है, वे किसी स्वर्ग से कम नहीं हैं कच्चे घर और झोपड़ियों में सरदी, गरमी और वर्षा की मार झेलने की बातें गुज़रे ज़माने की बातें हो चुकी हैं।

चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में विज्ञान ने मनुष्य को नया जीवन दिया है। अब रोगों का इलाज ही नहीं, शरीर के खराब अंगों को बदलना बाएँ हाथ का काम हो गया है। रक्तदान और नेत्रदान जैसे मानवोचित कार्यों और विज्ञान के सहयोग से मनुष्य को नवजीवन मिल रहा है। एक्सरे, अल्ट्रासाउंड और एम.आर.आई. के माध्यम से रोगों की पहचान कर उनका यथोचित इलाज किया जा रहा है।

उपर्युक्त कुछ उदाहरण विज्ञान के वरदान के कुछ नमूने हैं। वास्तव में विज्ञान ने मनुष्य का कायाकल्प कर दिया है।

विज्ञान से हानियाँ – विज्ञान के कारण मनुष्य को जहाँ अनेक लाभ हुआ है वहीं कुछ हानियाँ भी हैं। ये हानियाँ किसी सिक्के के दूसरे पहलू की भाँति हैं। विज्ञान की मदद से मनुष्य ने शत्रुओं से मुकाबला करने के लिए अनेक अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए हैं। इनमें परमाणु बम जैसे घातक हथियार भी हैं। ये अस्त्र-शस्त्र गलत हाथों में पड़कर समूची मानवता के लिए खतरा बन सकते हैं। इसके अलावा विज्ञान ने मनुष्य को भ्रम से दूर किया है जिससे मोटापा, रक्तचाप, अपच जैसी बीमारियाँ उसे घेर रही हैं।

विज्ञान का विवेकपूर्ण उपयोग – किसी भी वस्तु का विवेकपूर्ण उपयोग ही लाभदायक होता है। ऐसी ही स्थिति विज्ञान की है। विज्ञान द्वारा प्रदत्त चाकू का प्रयोग हम सब्जी काटने के लिए करते हैं या दूसरे की हत्या के लिए, यह हमारे विवेक पर निर्भर करता है। यदि कोई विज्ञान का दुरुपयोग करता है तो यह विज्ञान का दोष नहीं है। विज्ञान का विवेकपूर्ण उपयोग ही मनुष्यता की भलाई जैसे कार्य करने में सहायक होगा।

उपसहार- विज्ञान ने हमारा जीवन नाना प्रकार से सुखमय बनाया है। हमें विज्ञान का ऋणी होना चाहिए, जिसने हमें आदिमानव की जंगली-जीवन शैली से ऊपर यहाँ तक पहुँचाया है। अब यह हमारा दायित्व बनता है कि हम विज्ञान को वरदान ही बना रहने दें। इसका दुरुपयोग कर इसे अभिशाप न बनाएँ। विज्ञान के वरदान बने रहने में मनुष्य, समाज, राष्ट्र और समूची मानवता की भलाई है।

(16) मेरी प्रिय पुस्तक-रामचरित मानस

  • मार्मिक प्रसंग
  • आदर्शवादी व्यवहार
  • पुस्तक की कथावस्तु
  • कर्तव्यबोध का संदेश
  • प्रेरणादायिनी

प्रस्तावना – यह हमारे देश और समस्त भारतवासियों का सौभाग्य है कि यहाँ समय-समय पर अनेक कवियों ने जन्म लिया है और अपनी कालजयी कृतियों से जनमानस का मनोरंजन ही नहीं किया, बल्कि उन्हें ज्ञान के साथ-साथ कर्म का संदेश भी दिया। इनमें से कुछ कवियों ने धर्म और भक्तिभाव को प्रेरित करने वाली कृतियों की रचना की तो कुछ ने कर्तव्यबोध और आदर्श व्यवहार की तथा कुछ ने नीति सम्मत व्यवहार करने की पर गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरित मानस मुझे विशेष पसंद है, क्योंकि इसमें आवश्यक एवं जीवनोपयोगी गुणों एवं मूल्यों का संगम है।

पुस्तक की कथावस्तु – रामचरित मानस की प्रमुख कथावस्तु दशरथ पुत्र श्रीराम का जीवन चरित्र है। इसमें उनके जन्म से लेकर उनके सुख-सुविधापूर्ण शासन तक का वर्णन है। बीच-बीच में अनेक उपकथाएँ इसके कलेवर में वृद्धि करती हैं।

रामचरित मानस में वर्णित रामकथा को सात सर्गों में बाँटकर वर्णित किया गया है। इन्हें बालकांड, अयोध्याकांड, सुंदरकांड, किष्किंधाकांड, अरण्यकांड, लंकाकांड और उत्तरकांड नामों से जाना जाता है। कथा का प्रारंभ ईश वंदना के दोहों, श्लोकों और चौपाइयों से शुरू होता है और राम-जन्म उनके तीनों भाइयों लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के साथ की गई बाल-क्रीड़ा, उनकी शिक्षा-दीक्षा, विश्वामित्र के साथ राक्षसों के वध के लिए उनके संग गमन, मारीचि, सुबाहु, ताड़का वध, जनकपुर गमन, स्वयंवर में धनुषभंग करना, सीता विवाह और अयोध्या वापस लौटना, कैकेयी का राजा दशरथ से दो वरदान माँगना, राम का सीता और लक्ष्मण के साथ वन गमन, सीता हरण, हनुमान-सुग्रीव से मित्रता, बालि वध, समुद्र पर पुल बाँधकर सेना सहित लंका गमन, रावण से युद्ध, रावण को मारकर विभीषण को लंका का राजा बनाना, अयोध्या प्रत्यागमन, कुशलतापूर्वक राज्य करना, सीता को वनवास देना, लव-कुश के द्वारा अश्वमेध के घोड़े को रोकने आदि का वर्णन है।

मार्मिक प्रसंग – रामचरित मानस में अनेक प्रसंग ऐसे हैं जिनका मार्मिक वर्णन मन को छू जाता है। राम का वनवास जाना, दशरथ का मूछित होना, समस्त प्रजाजनों का शोकाकुल होना, दशरथ का प्राणत्याग, रावण द्वारा सीता-हरण, अशोक वाटिका में राम की याद में उनका शोक संतप्त रहना, मेघनाद के साथ युद्ध में लक्ष्मण का मूछित होना, भरत मिलन प्रसंग, सीता का निष्कासन आदि प्रसंग मन को छू जाते हैं। इन अवसरों पर पाठकों के आँसू रोकने से भी नहीं रुकते हैं। आज भी दशहरे के अवसर जब रामलीला का मंचन होता है तो इन मार्मिक प्रसंगों को देखकर आँसू बहने लगते हैं।

कर्तव्यबोध का संदेश – रामचरित मानस की सबसे मुख्य विशेषता है- कर्तव्य का बोध कराना। इस महाकाव्य में राजा को प्रजा के साथ, प्रजा को राजा के साथ, मित्र को मित्र के साथ, पिता को पुत्र के साथ कर्तव्यों का वर्णन एवं उन्हें अपनाने की सीख दी गई है। एक प्रसंग के अनुसार-आज के बच्चों को उनके कर्तव्य का बोध ‘प्रातः काल उन्हें माता-पिता के चरण छूना चाहिए’ कराते हुए लिखा गया है –

प्रातकाल उठि के रघुनाथा। मातु-पिता गुरु नावहिं माथा॥

इस कर्तव्य का उन्हें शीघ्र फल भी प्राप्त होता है। राम अपने भाइयों के साथ गुरु विश्वामित्र के घर पढ़ने जाते हैं और सारी विद्याएँ शीघ्र ही ग्रहण कर लेते हैं –

गुरु गृह पढ़न गए दोउ भाई। अल्पकाल सब विद्या पाई ॥

आदर्शवादी व्यवहार-रामचरित मानस नामक यह पुस्तक पाठकों के मन में धर्म और भक्तिभाव का उदय तो करती है साथ ही आदर्श व्यवहार की सीख भी देती है। यह मानव को मानवोचित व्यवहार के लिए प्रेरित करती है।

राजा पर यह दायित्व होता है कि वह प्रजा का पालन-पोषण करें तथा अपने कर्तव्यों का उचित प्रकार से निर्वाह करे। इसी को याद दिलाते हुए तुलसीदास ने लिखा है –

जासु राज निज प्रजा दुखारी। सो नृप अवस नरक अधिकारी।

आज के मंत्रियों और अफसरों के लिए इससे बड़ी सीख और क्या हो सकती है।

प्रेरणादायिनी – रामचरित मानस नामक यह पुस्तक हमें कर्म का संदेश देती है। राम ईश्वर के अवतार थे, अंतर्यामी थे, त्रिकालदर्शी थे, फिर भी उन्होंने आम इनसान की तरह हर कार्य अपने हाथों से करके एक ओर कर्म की प्रेरणा दी तो दूसरी ओर असत्य, अन्याय और अत्याचार सहन न करके उससे मुकाबला करने की प्रेरणा दी। इस महाकाव्य की एक-एक पंक्ति जीवन के सभी पक्षों को प्रेरित करती है।

उपसंहार – ‘रामचरितमानस’ की रचना को लगभग पाँच सौ वर्ष बीत गए पर इसकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है। यह पुस्तक भारत में ही नहीं विश्व की भाषाओं में रूपांतरित की गई। इसकी अवधी भाषा, दोहा, सोरठा और चौपाई जैसे गेयता वाले छंदों के कारण यह पढ़ने में सरल सहज और सुनने में कर्णप्रिय है। इसकी लोकप्रियता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह महाकाव्य हर हिंदू के घर में देखा जा सकता है।

(17) फ़िल्म जो अच्छी लगी

  • फ़िल्म की कहानी
  • कथानक एवं दृश्य
  • फ़िल्म के दृश्य, पात्र एवं संवाद

प्रस्तावना – मनुष्य किसी-न-किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए श्रम करता है। श्रम के उपरांत थकान एवं तनाव होना स्वाभाविक है। इससे छुटकारा पाने के लिए अनेक तरीके अपनाता है। वह खेल-तमाशे, नाटक, फ़िल्म, देखता है तथा पत्र-पत्रिकाएँ पढ़कर तरोताज़ा महसूस करता है। इनमें फ़िल्म देखना सबसे लोकप्रिय तरीका है जिससे तनाव-थकान से मुक्ति के अलावा ज्ञानवर्धन एवं मनोरंजन भी होता है। मैंने भी अपने मित्रों के साथ जो फ़िल्म देखी, वह थी- चक दे इंडिया जो मुझे अच्छी और प्रेरणादायक लगी।

कथानक एवं दृश्य – इस फ़िल्म के प्रदर्शन के बाद से ही इसकी काफ़ी चर्चा थी। मेरे मित्र भी इस फ़िल्म का बखान करते थे कि यह प्रेरणादायी फ़िल्म है। मैंने अपने मित्रों के साथ इस फ़िल्म को देखा।

इस फ़िल्म में अभिनेता शाहरुख खान ने मुख्य भूमिका निभाई है। इसमें भारतीय महिला हाकी टीम की तत्कालीन दशा को मुख्य विषय बनाया गया है। फ़िल्म में खेल और राजनीति का संबंध, खेल भावना का परिचय, सांप्रदायिक तनाव, खेल में अधिकारियों का हस्तक्षेप, कभी गुस्साई और कभी हर्षित जनता की प्रतिक्रिया सब कुछ वास्तविक-सा लगता है।

फ़िल्म की कहानी – इस फ़िल्म में शाहरुख खान को भारतीय हॉकी टीम के कप्तान के रूप दर्शाया गया है। वह पठान मुसलमान है। उनकी टीम चिर-परिचित प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के विरुद्ध मैच खेल रही है। मैच में भारतीय टीम 1-0 से पिछड़ रही है। भारतीय खिलाड़ी जोरदार प्रदर्शन करते हैं और पेनाल्टी कार्नर का मौका टीम को मिल जाता है। इस पेनाल्टी कार्नर को गोल में बदलने में शाहरुख खान असफल रहते हैं। खेल जारी रहता है पर समाप्ति पर भारत वह मैच 1-0 से हार जाता है।

इसी दृश्य से पूर्व भारतीय कप्तान और पाकिस्तानी कप्तान को आपस में बातचीत करते दर्शा दिया जाता है। चूँकि भारत यह मैच हार चुका था इसलिए मीडिया इस मुलाकात का गलत अर्थ निकालती है और इस घटना के षड्यंत्र के साथ पेश करती है। ऐसे में देश की जनता भड़क जाती है। भारत में कप्तान की छवि खराब हो जाती है। कुछ उपद्रवी खेल प्रेमी उनका मकान नष्ट कर देते हैं। देश की जनता उन्हें गद्दार कहती है। वे धीरे-धीरे गुमनामी के अंधकार में खो जाते हैं।

इस घटना के पाँच, छह वर्ष बाद यह दिखाया जाता है कि भारतीय महिला हॉकी टीम की स्थिति इतनी खराब है कि कोई कोच बनने के लिए तैयार नहीं है। ऐसे में शाहरुख खान कोच की भूमिका निभाने के लिए आगे आते हैं। भारत के अलग-अलग राज्यों से आईं खिलाड़ियों के बीच समस्या-ही-समस्या है। सबकी अलग-अलग भाषा, रहन-सहन, तौर-तरीके सब अलग हैं। उनको एकता के सूत्र में बाँधना चुनौती है। ये महिला खिलाड़ी आपस में लड़ जाती हैं और कोच को हटाने की माँग करती हैं। संयोग से एक विदाई समारोह में इन खिलाड़ियों में एकता हो जाती है।

इसी बीच शाहरुख खान (कोच) भारतीय पुरुष एवं महिला हॉकी टीमों के बीच मुकाबला करवाते हैं। इस मुकाबले से महिला टीम की योग्यता सभी के सामने आ जाती है। अब टीम को विश्व कप प्रतियोगिता में भेजा जाता है जहाँ वह पहला मैच 7-1 से हार जाती है। यह हार उनके लिए टॉनिक का काम करती है और जीत दर्ज करते-करते विश्वकप जीत लेती है। अब वही मीडिया और भारतीय जनता शाहरुख खान को सिर पर बिठा लेती है।

फ़िल्म के दृश्य, पात्र एवं संवाद – यह फ़िल्म इतनी प्रभावी है कि दर्शकों को अंत तक बाँधे रखती है। फ़िल्म में मारपीट, खीझ, गुस्सा, संघर्ष, प्रतिशोध, एकता, साहस, हार से सबक, जीत की खुशी आदि को अच्छे ढंग से दर्शाया गया है। इसमें शाहरुख का अभिनय दर्शनीय है। खिलाड़ियों में जीत की चाह देखते ही बनती है जो अंत में उनकी विजय के लिए वरदान बन जाती है।

उपसंहार-‘चक दे इंडिया’ वास्तविक-सी लगने वाली कहानी पर बनी फ़िल्म है जो हार से मिली असफलता से निराश न होने तथा पुनः प्रयास कर आगे बढ़ने का संदेश देती है। यह फ़िल्म एकता एवं सौहार्द बढ़ाने में भी सहायक है। इस फ़िल्म का संदेश है, मुसीबत से हार न मानकर सफलता की ओर बढ़ते जाना, यही जीवन की सच्चाई है।

(18) परोपकार या परहित सरिस धर्म नहिं भाई

  • परोपकारी प्रकृति
  • परोपकार के विविध उदाहरण
  • परोपकार-मानवधर्म
  • परोपकार के विविध रूप
  • वर्तमान स्थिति

प्रस्तावना- परोपकार शब्द ‘पर’ और ‘उपकार’ के मेल से बना है, जिसका अर्थ है-दूसरों की भलाई अर्थात दूसरों की भलाई के लिए तन-मन और धन से किए गए सभी कार्य परोपकार कहलाते हैं। परोपकार के समान न कोई धर्म है और न दूसरों को सताने जैसा कोई पाप। मनुष्य का सारा जीवन प्रेम और सहयोग पर आधारित है। इसी सहयोग के मूल में है-परोपकार, जिससे उपकारी और उपकृत दोनों कों खुशी होती है।

परोपकार-मानवधर्म – परोपकार मानवजीवन का सबसे बड़ा धर्म कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। मनुष्य का धर्म है, कि वह जैसे भी हो दूसरे की मदद करे। यहीं से परोपकार की शुरुआत हो जाती है। यदि मनुष्य परोपकार नहीं करता है तो उसमें और पशु में क्या अंतर रह जाता है। कवि मैथिलीशरण गुप्त ने ठीक ही कहा है –

अहा! वही उदार है, परोपकार जो करे। वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥

परोपकारी प्रकृति-हम ध्यान से देखें तो प्रकृति का कण-कण परोपकार में लीन दिखता है। सूर्य अपना प्रकाश धरती का अँधेरा भगाने के लिए करता है तथा गरमी से शीत हर लेता है ताकि जीव आनंदपूर्वक रह सके। चाँद अपनी शीतलता से मन को शांति देता है। बादल दूसरों की भलाई के लिए बरसकर अपना अस्तित्व नष्ट कर लेते हैं। इसी प्रकार नदी तालाब अपना पानी दूसरों के लिए त्याग देते हैं। पेड़ दूसरों की क्षुधा शांति के लिए ही फल धारण करते हैं। प्रकृति के अभिन्न अंग फूल अपनी सुगंध दूसरों को बाँटते रहते हैं। प्रकृति के इस कार्य से प्रेरित होने में संत और सज्जन कहाँ पीछे रहने वाले। वे भी दूसरों की भलाई के लिए धन एकत्र करते हैं। कवि रहीम ने ठीक ही कहा है –

तरुवर फल नहिं खात हैं, सरवर करत न पान। कह रहीम परकाज हित, संपति सँचहि सुजान॥

परोपकार के विविध रूप – परोपकार के नाना रूप साधन एवं तरीके हैं। मनुष्य वाणी, मन और कर्म से परोपकार कर सकता है, पर सबसे अच्छा तरीका कर्म द्वारा दूसरों की भलाई करना है, क्योंकि इसका प्रत्यक्ष लाभ व्यक्ति को मिलता है। वाणी द्वारा दूसरों की भलाई दूसरों का मनोबल बढ़ाने में सहायक सिद्ध होती है। परोपकार के अंतर्गत हम असहाय की धन से मदद करके रोगी की सेवा करके, अपाहिज को उसके गंतव्य तक पहुँचाने जैसे छोटे-छोटे कार्यों द्वारा कर सकते हैं।

परोपकार के विविध उदाहरण – भारत का इतिहास परोपकारी व्यक्तियों के कार्यों से भरा पड़ा है। यहाँ लोगों ने मानवता की भलाई के लिए न अपने धन को धन समझा और न तन को तन। आवश्यकता पड़ने तन, मन और धन से दूसरों की भलाई की। भामाशाह ने अपनी जीवनभर की संचित कमाई राणा प्रताप के चरणों में रख दिया। महर्षि दधीचि ने देवताओं को संभावित पराजय से बचाने के लिए और मानवता के कल्याण हेतु अपनी हड्डियों तक का दान दे दिया। कर्ण ने अपने जीवन की परवाह न करते हुए कवच, कुंडल और सोने के दाँत तक का दान दे दिया।

राम, कृष्ण, ईसा मसीह, मदर टेरेसा, सुकरात, महात्मा गांधी आदि ने अपना जीवन ही परोपकार में लगा दिया। परोपकार के लिए सुकरात ने ज़हर का प्याला पिया, तो गौतम बुद्ध राज्य का सुख छोड़कर संन्यासी बन गए।

वर्तमान स्थिति – मनुष्य अपनी बढ़ी हुई आवश्यकताएँ, लोभ एवं स्वार्थ की प्रवृत्ति के कारण इतना उलझा हुआ है कि परोपकार जैसे कार्य पीछे छूट गए हैं। लोगों में परोपकारी भावना का अभाव दिखता है। आज मनुष्य को अधिकाधिक धन संचय करने की पड़ी है इस कारण वह पशुवत अपने लिए ही जी रहा है और मर रहा है। दूसरों की भलाई करना किताबों तक सीमित रह गया है।

उपसंहार – मानव जीवन को तभी सार्थक कहा जा सकता है जब वह परोपकार करे। इसके लिए छोटे-से-छोटे कार्य से शुरुआत की जा सकती है। परोपकार करने से खुद को आत्मिक शांति तो मिलती है वहीं दूसरे को मदद एवं खुशी भी मिलती है। मनुष्य को परोपकारी वृत्ति का कभी भी त्याग नहीं करना चाहिए।

(19) समय का सदुपयोग

  • समय का अधिकाधिक उपयोग
  • प्रकृति से सीख
  • समय नियोजन का महत्त्व
  • आलस्य समय के सदुपयोग में बाधक

प्रस्तावना – मनुष्य अपने जीवन में बहुत कुछ कमाता है और बहुत गँवाता है। उसे प्रत्येक वस्तु परिश्रम के उपरांत प्राप्त होती है, परंतु प्रकृति ने उसे समय का अमूल्य उपहार मुफ़्त दिया है। इस उपहार की अवहेलना करके उसकी महत्ता न समझने वालों को एक दिन पछताना पड़ता है क्योंकि गया समय लौटकर वापस नहीं आता है। जो समय बीत गया उसे किसी हाल में लौटाया नहीं जा सकता है।

समय नियोजन का महत्त्व – समय ऐसी शक्ति है जिसका वितरण सभी के लिए समान रूप से किया गया है, परंतु उसका लाभ वही उठा पाते हैं जो समय का उचित नियोजन करते हैं। प्रकृति ने किसी के लिए भी छोटे दिन नहीं बनाया है परंतु नियोजनबद्ध तरीके से काम करने वाले हर काम के लिए पूरा समय बचा लेते हैं और अनियोजित तरीके से काम करने वालों का काम समय पर पूरा न होने से समय की कमी का रोना रोते हैं। समय का नियोजन न करने वालों को समय पीछे ढकेल देता है और समय का सदुपयोग करने वाले सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते हैं।

महापुरुषों की सफलता का रहस्य उनके द्वारा समय का नियोजन ही है जिससे वे समय पर अपने काम निपटा लेते हैं। गांधी जी समय के एक-एक क्षण का सदुपयोग करते थे। वे अपनी दिनचर्या के अनुरूप रोज़ का काम रोज़ निपटाने के लिए तालमेल बिठा लेते थे। विद्यार्थी जीवन में समय का सदुपयोग और उसके नियोजन का महत्त्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि इसी काल में उसे विद्यार्जन के अलावा शारीरिक और चारित्रिक विकास पर भी ध्यान देना होता है। इसके लिए उसे हर विषय के अध्ययन के लिए समय निकालना पड़ता है ताकि कोई विषय छूट न जाए। इसके अलावा उसे खेलने और अन्यकार्यों के लिए भी समय विभाजन करना पड़ता है। जो विद्यार्थी समय का उचित विभाजन नहीं करते वे सफलता नहीं प्राप्त कर पाते। आज का काम कल पर छोड़ने वाले विदयार्थी भी सफलता से कोसों दूर रह जाते हैं। फिर किस्मत का रोना रोने के अलावा उनके पास कोई रास्ता नहीं बचता है। ऐसे विद्यार्थियों के लिए ही कहा गया है कि –

अब पछताए होत का, जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत।

समय का अधिकाधिक उपयोग – समय का महत्त्व और मूल्य समझकर हमें इसका अधिकाधिक उपयोग करना चाहिए। हमें एक बात यह सदैव ध्यान रखना चाहिए कि Time and tide wait for none अर्थात समय और ज्वार किसी की प्रतीक्षा नहीं करते हैं। वे अपने समयानुसार आते-जाते रहते हैं। यह तो व्यक्ति के विवेक पर निर्भर करता है कि वे उनका उपयोग करते हैं या सदुपयोग। समय के बारे में एक बात सत्य है कि समय किसी की भी परवाह नहीं करता। यह किसी शासक, राजा या तानाशाह के रोके नहीं रुका है। जिन लोगों ने समय को नष्ट किया है, समय उनसे बदला लेकर एक दिन उन्हें अवश्य नष्ट कर देता है।

इस क्षणभंगुर मानव जीवन में काम अधिक और समय बहुत कम है। नेपोलियन और सिकंदर महान ने समय के पल-पल का उपयोग किया। समय पर बिना चूके अपने शत्रुओं-पर हमला किया और विजयश्री का वरण किया। समय पर हमले का जवाब न देने वाले, शत्रुओं को समय देने वाले शासक के हाथ पराजय ही लगती है। आतंकियों द्वारा लगाए बम को समय पर नष्ट न करने का कितना भीषण परिणाम होगा यह बताने की आवश्यकता नहीं है। समय के एक-एक पल की कीमत समझते हुए संत कबीर दास ने ठीक ही लिखा है –

काल करै सो आज कर, आज करै सो अब। पल में परलै होयगी, बहुरि करेगा कब॥

आलस्य समय के सदुपयोग में बाधक – कुछ लोग समय का उपयोग तो करना चाहते हैं, परंतु आलस्य उनके मार्ग में बाधक बन जाता है। यह मनुष्य को समय पर काम करने से रोकता है। आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। कहा भी गया है, “आलस्यो हि मनुष्याणां शरीरस्थो महारिपुः”। जो लोग बुद्धिमान होते हैं वे खाली समय का उपयोग अच्छी पुस्तकें पढ़ने में करते हैं इसके विपरीत मूर्ख अपने समय का उपयोग सोने और झगड़ने में करते हैं। कहा भी गया है –

काव्य शास्त्र विनोदेन कालो गच्छति धीमताम। व्यसनेन च मूर्खाणां निद्रांकलहेन वा॥

उपसंहार- प्रकृति ने समय का बँटवारा सभी के लिए बराबर किया है। हमें चाहिए कि हम इसी समय का उचित नियोजन करें और प्रत्येक कार्य को समय पर निपटाने का प्रयास करें। आज का कार्य कल पर छोड़ने की आदत आलस्य को बढ़ावा देती है। हमें समय का उपयोग करते हुए सफलता अर्जित करने का प्रयास करना चाहिए।

(20) पत्र-पत्रिकाओं के नियमित पठन के लाभ

  • पढने की स्वस्थ आदत का विकास
  • पत्र-पत्रिकाएँ कितनी लाभदायी
  • ज्ञान एवं मनोरंजन का भंडार
  • रंग-बिरंगी पत्र पत्रिकाएँ
  • पत्रिकाओं से दोहरा लाभ

प्रस्तावना – मनुष्य जिज्ञासु एवं ज्ञान-पिपासु जीव है। वह विभिन्न साधनों एवं माध्यमों से अपनी जिज्ञासा एवं ज्ञान-पिपासा शांत करता आया है। अन्य प्राणियों की तुलना में उसका मस्तिष्क विकसित होने के कारण वह अनेकानेक साधनों का प्रयोग करता है। ऐसे ही साधनों में एक है-पत्र-पत्रिकाएँ, जिनके द्वारा मनुष्य अपना ज्ञानवर्धन एवं मनोरंजन करता है।

ज्ञान एवं मनोरंजन का भंडार – पत्र-पत्रिकाएँ अपने अंदर तरह-तरह का ज्ञान समेटे होती हैं। इनके पठन से ज्ञानवर्धन के साथ-साथ हमारा स्वस्थ मनोरंजन भी होता है। वैसे भी पत्र-पत्रिकाएँ और पुस्तकें मनुष्य की सबसे अच्छी मित्र होती हैं। पुस्तकें और पत्र-पत्रिकाएँ पढ़ते समय यदि व्यक्ति इनमें एक बार खो गया तो उसे अपने आस-पास की दुनिया का ध्यान नहीं रह जाता है। पाठक को ऐसा लगने लगता है कि उसे कोई खजाना मिल गया है। इनमें छपी कहानियों से हमारा मनोरंजन होता है तो वहीं हमें नैतिक ज्ञान भी मिलता है तथा मानवीय मूल्यों की समझ पैदा होती है। इनमें विभिन्न राज्यों पर छपे लेख, वर्ग-पहेलियाँ, शब्दों का वर्गजाल, बताओ तो जानें आदि स्तंभ ज्ञानवृद्धि में सहायक होते हैं। रंगभरो, बिंदुजोड़ो, कविता। कहानी पूरी कीजिए जैसे स्तंभ ज्ञान में वृद्धि करते हैं।

पढ़ने की स्वस्थ आदत का विकास – पत्र-पत्रिकाओं के नियमित पठन से पढ़ने की स्वस्थ आदत का विकास होता है। यह देखा गया है कि जो बालक पढ़ने से जी चुराते हैं या पाठ्यक्रम की पुस्तकें पढ़ने से आना-कानी करते हैं उनमें पढ़ने की आदत विकसित करने का सबसे अच्छा साधन पत्र-पत्रिकाएँ हैं। इनमें छपी कहानियाँ, चुटकुले, आकर्षक चित्र पढ़ने को विवश करते हैं। यह आदत धीरे-धीरे बढ़ती जाती है जिसे समयानुसार पाठ्य पुस्तकों के पठन की ओर मोड़ा जा सकता है। इससे बच्चे में पढ़ने की आदत का विकास हो जाता है तथा पढ़ाई के प्रति रुचि उत्पन्न हो जाती है। ये पत्र-पत्रिकाएँ बच्चों के लिए पुनरावृत्ति का काम करती हैं। कई बच्चे कहानियाँ पढ़ने की लालच में गृहकार्य करने बैठ जाते हैं।

रंग-बिरंगी पत्रिकाएँ – बच्चों तथा पाठकों की आयु-रुचि तथा पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन अवधि के आधार पर इन्हें कई वर्गों में बाटा जा सकता है। जो पत्र-पत्रिकाएँ सप्ताह में एक-बार प्रकाशित की जाती हैं, उन्हें साप्ताहिक पत्रिकाएँ कहा जाता है। इन पत्रिकाओं में राजस्थान पत्रिका, सरस सलिल, इंडिया टुडे आदि मुख्य हैं। कुछ पत्रिकाएँ पंद्रह दिनों में एक बार छापी जाती हैं। इन्हें पाक्षिक पत्रिका कहते हैं। पराग, नंदन, नन्हे सम्राट, चंपक, लोट-पोट, चंदा मामा, सरिता, माया आदि ऐसी ही पत्रिकाएँ हैं।

महीने में एक बार छपने वाली पत्र-पत्रिका को मासिक पत्रिकाएँ कहा जाता है। इन पत्रिकाओं में गृहशोभा, सुमन, सौरभ, मुक्ता कादंबिनी, रीडर्स डाइजेस्ट, प्रतियोगिता दर्पण, मनोरमा तथा फ़िल्मी दुनिया से संबंधित बहुत-सी पत्रिकाएँ हैं। इनके अलावा और भी विषयों और साहित्यिक पत्रपत्रिकाओं का प्रकाशन महीने में एक बार किया जाता है। कुछ पत्रिकाओं का वार्षिकांक और अर्ध-वार्षिकांक भी प्रकाशित होता है।

पत्र-पत्रिकाएँ कितनी लाभदायी – पत्र-पत्रिकाएँ मनुष्य के दिमाग को शैतान का घर होने से बचाती हैं। ये हमारे बौद्धिक विकास का सर्वोत्तम साधन हैं। इन्हें ज्ञान एवं मनोरंजन का खजाना कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है। शरीर और मस्तिष्क की थकान और तनाव दूर करना हो या अनिद्रा भगाना हो तो पत्र-पत्रिकाएँ काम आती हैं। सफर में इनसे अच्छा साथी और कौन हो सकता है। एकांत हो या किसी का इंतज़ार करते हुए समय बिताना हो पत्रिकाओं का सहारा लेना सर्वोत्तम रहता है। इनसे खाली समय आराम से कट जाता है। इन पत्र-पत्रिकाओं में छपी जानकारियों का संचयन करके जब चाहे काम में लाया जा सकता है।

पत्रिकाओं से दोहरा लाभ – पत्र-पत्रिकाएँ एक ओर हमारा बौद्धिक विकास करती हैं, मनोरंजन करती हैं तो दूसरी ओर रोज़गार का साधन भी हैं। इनके प्रकाशन में हज़ारों-लाखों को रोजगार मिला है तो बहुत से लोग इन्हें बाँटकर और बेचकर रोटी-रोज़ी का इंतजाम कर रहे हैं। इसके अलावा इन पत्रिकाओं को पढ़कर रद्दी में बेचने के बजाय बहुत से लोग लिफ़ाफ़े बनाकर अपनी आजीविका चला रहे हैं। इस प्रकार पत्रिकाएँ आम के आम और गुठलियों के दाम की कहावत को चरितार्थ कर रही हैं।

उपसंहार-पत्र-पत्रिकाएँ हमारी सच्ची मित्र हैं। ये हमारे सामने ज्ञान का मोती बिखराती हैं। इनमें से कितनी मोतियाँ हम एकत्र कर सकते हैं, यह हमारी क्षमता पर निर्भर करता है। हमें पत्र-पत्रिकाओं के पठन की आदत डालनी चाहिए तथा जन्मदिन आदि के अवसर पर उपहारस्वरूप पत्रिकाएँ देकर नई शुरुआत करनी चाहिए।

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  • Azadi Ka Amrit Mahotsav Essay in English PDF Download

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Azadi Ka Amrit Mahotsav

The following is an essay on Azadi Ka Amrit Mahotsav in English. Readers can use this essay at their convenience to learn the basics of writing an essay and also to gather valuable information on the highlights of Azadi Ka Amrit Mahotsav 2022. 

English Essay on Azadi Ka Amrit Mahotsav 2022

The 75 th Indian Independence Day will be celebrated on 15 th August 2022. It is going to be big this year since the diamond jubilee celebrations are on the way. The Indian army, the freedom fighters whom we lost, and some of whom are still alive, and the Indian culture and history will be nurtured and celebrated this year as well.      

It was Shri Narendra Modi, our Prime Minister, who started the official Azadi Ka Amrit Mahotsav on 12th March 2021, starting the journey from Sabarmati Ashram. In order to commemorate 75 years of India’s Independence, he started off a 75-week-long festival.  This is supposed to continue for 75 long weeks till the 75th Indian Independence Day and will extend another year to end on 15th August 2023.

Mahatma Gandhi began the Dandi Yatra on 12th March 1930. He started the march from the Sabarmati Ashram, keeping in mind the cause of awakening self-reliance and self-respect in his nation. Incidentally, our honourable Prime Minister, Shri Narendra Modi, started the symbolic Dandi Yatra on this very day in 2021. Azadi Ka Amrit Mahotsav marked the beginning of the revival of Indians’ journey towards self-reliance and self-respect.

The Har Ghar Tiranga, Har Din Tiranga Campaign 2022

The Har Ghar Tiranga, Har Din Tiranga campaign aims to instil a sense of pride and love for our nation in the citizens, who will keep a tricolour flag in their houses 365 days of the year. This seems like a great initiative to keep reminding the citizens that they live in a colourful nation breeding love, unity, and diversity. 

The campaign is urging all Indian citizens to start a mass movement to commemorate our 75th Independence Day. They can do this by hoisting or putting up tricolour flags in their homes and putting up tricolour images as their profile pictures on social media handles.  

Previously, the Tricolour flag could only be hoisted between Sunrise and sunset. However, this year it is not the same scenario. People are allowed to hoist the flag all day long. 

The Flag Code for Azadi Ka Amrit Mahotsav 2022 

Following are some of the rules laid down by the Indian Government in 2021 for the hoisting and display of the Indian tricolour flag from then onwards:

The flag shall be either hand spun, hand woven, or machine made using cotton/polyester/wool/silk khadi bunting. 

Any member of the public, private, or educational organisation can hoist or display the national flag on all days and occasions, be it ceremonious or otherwise. 

The flag can be hoisted and displayed day and night if it is an open area where people can watch.

The flag can be of any size, but it has to be rectangular in shape with a length-to-width ratio of 3:2.

In a time of display, the national flag needs to be positioned appropriately and should appear distinctly.

People should not display a damaged or dishevelled flag.

No other flags should be hoisted or displayed from the masthead where the Indian national flag is hoisted. 

There should be no other flag or bunting hoisted above or side by side with the Indian national flag.  

No other citizens, except dignitaries like the President, the Vice-President, the Prime Minister, Governors, etc., should not fly the national flag on their vehicles. 

The Azadi Ka Amrit Mahotsav is a government initiative to commemorate the 75th or diamond jubilee year of Indian Independence Day , where the festivities will continue for 75 weeks until 15th August 2023, which is a year from now. This is a great approach to instil a sense of love, respect, pride, and responsibility towards the nation in Indian citizens, kids and adults alike. It is an important step to revive the culture and history of Indian Independence and other aspects as well. People are urged to take an active part in this campaign turned mass movement to do their part.

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FAQs on Azadi Ka Amrit Mahotsav Essay in English PDF Download

1. How can you describe Azadi Ka Amrit Mahotsav in 1500 words?

A limit of 1500 words will give you enough scope to get into the details of the Har Ghar Tiranga, Har Din Tiranga campaign, the Flag Code of India, and so on. However, the paragraphs should be concise and to the point so that the flow remains perfect and the intent remains clear. 

2. How can you write an Azadi Ka Amrut Mahotsav essay in English in 750 words?

750 words will give you a tighter limit, and you can just touch upon the major highlights of this year’s Azadi Ka Amrit Mahotsav, apart from the introduction and conclusion. However, it is still enough to provide clear and consumable information to readers. It’s best to stick to a basic structure and use short paragraphs to make the idea intelligible.

3. How to write an Azadi Ka Amrit Mahotsav paragraph in English?

If you are to write only a paragraph in English on Azadi Ka Amrit Mahotsav. In that case, you can mention the important dates, the people involved in the movement, the intent behind the movement, the span of celebrations, and add a few lines on the Har Ghar Tiranga, Har Din Tiranga campaign. 

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खेल का महत्व पर निबंध: जानिए क्यों जरुरी है बच्चों के लिए खेल (Essay on Importance of Sports in Hindi)

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  • Updated on  
  • नवम्बर 22, 2023

खेल का महत्त्व

प्रगतिशील और आधुनिक बनने के दौड़ में हम अपने स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे हैं। खेल का महत्व जैसे हम भूलते जा रहे हैं। आज के बच्चे मोबाइल, लैपटॉप और वीडियो गेम्स से ही खेलते हैं। परंतु खेल का महत्व बच्चों की बढ़ती ग्रोथ के साथ जानना आवश्यक है। खेल जितना स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है, उतना ही खेल का महत्व पढ़ाई में भी है। अक्सर परीक्षाओं में तथा प्रतियोगी परीक्षाओं में खेल का महत्व पर निबंध लिखने को कहा जाता है। खेल के महत्व को समझाने के लिए तथा खेल के महत्व पर निबंध जो कि एक महत्वपूर्ण तथा पूछे जाने वाला विषय है, उसके बारे में छोटे और बड़े निबंध नीचे दिए जा रहे हैं। आइए देखते हैं हमारे जीवन में खेल का क्या महत्व हैI

This Blog Includes:

  • खेल का महत्व (Essay on Importance of Sports in Hindi)

खेल के महत्व पर निबंध 200 शब्दों में

खेल का महत्त्व पर निबंध (600 शब्द), खेल के महत्व पर निबंध 800 शब्दों में.

  • विद्यार्थी जीवन में खेल का महत्व (Essay on Importance of Sports in Hindi)

खेल के महत्व पर स्लोगन

  • खेल के महत्व पर कविता (Essay on Importance of Sports in Hindi)

खेल के महत्व पर सुविचार

खेल में करियर, खेल में करियर विकल्प, खेलों के प्रकार, मौसम के आधार पर विभाजित , आदर्श खिलाड़ी के गुण, खेल का महत्व ( essay on importance of sports in hindi ).

खेल का हमारे जीवन में क्या महत्व है इसके बारे में हम बचपन से सुनते आए हैं और इसलिए स्कूल कॉलेज में अलग से स्पोर्ट्स टाइम दिया जाता है। इतना ही नहीं घर पर कई बार मम्मी भी बच्चों को डांटती रहती है कि थोड़ा बाहर जाके खेलों सारा दिन में घर में टीवी देखते हो।

अब मैं खेल के महत्व की बात करूँ तो शरीर और दिमाग काे विकसित करने के लिए खेल महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके साथ खेल आपके तनाव को भी दूर करता है। खेल आपके कंसन्ट्रेशन को बनाए रखने के लिए अच्छा है। इतना ही नहीं खेल आपकी नौकरी लगने में भी मदद करते हैं।

स्वामी विवेकानंद ने अपने देश के नवयुवकों को कहा था-“मेरे नवयुवक मित्रों। बलवान बनों। तुमको मेरी यह सलाह है। गीता को पढ़ने के बदले युवकों को फुटबॉल खेलना चाहिए।” इस कथन से स्पष्ट है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास संभव है और शरीर को स्वस्थ तथा मजबूत बनाने के लिए खेल अनिवार्य है। मनोवैज्ञानिकों का मत है कि मनुष्य की खेलों में रुचि स्वाभाविक है। इसी कारण बच्चे खेलों में अधिक रुचि लेते है। पी.साइरन ने कहा है- ‘अच्छा स्वास्थ्य एवं अच्छी समझ जीवन के दो सर्वोत्तम वरदान हैं।’ इन दोनों की प्राप्ति के लिए जीवन में खिलाड़ी की भावना से खेल खेलना आवश्यक है। खेलने से शरीर को बल, माँस-पेशियों को उभार, भूख को तीव्रता आलस्यहीनता तथा मलादि का शुद्धता प्राप्त होती है। खेल खेलने से मनुष्य को संघर्ष करने की आदत लगती है। जीवन की जय-पराजय को आनंदपूर्ण ढंग से लेने की महत्त्वपूर्ण आदत खेल खेलने से ही आती है। खेल हमारा भरपूर मनोरंजन करते हैं। खिलाड़ी हो अथवा खेल प्रेमी दोनों को खेल के मैदान में एक अपूर्व आनंद मिलता है।

खेल के महत्व पर निबंध 400 शब्दों में

आज हर व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य की चिंता है। वह चाहता है कि स्वस्थ रहकर जीवन बिताएं। स्वस्थ रहने के लिए व्यायाम, योग, प्राणायाम, संतुलित पोषक-आहार आदि तो महत्वपूर्ण घटक हैं ही, इसके अलावा खेल बहुत महत्वपूर्ण है। जीवन में खेलकूद का भी उतना ही महत्व है, जितना कि पढ़ाई-लिखाई का। खेलकूद न केवल छात्रों का मनोरंजन करते हैं अपितु उनके स्वास्थ्य को भी उत्तम बनाते हैं। यदि बच्चे प्रसन्न और स्वस्थ रहेंगे तो पढ़ाई लिखाई की ओर भी ध्यान देंगे। खेल के अंतर्गत शरीर बहुत अधिक परिश्रम करता है, परिणामस्वरूप अधिक मात्रा में ऑक्सीजन शरीर के अंदर जाती है। यही ऑक्सीजन हमारे रक्त को शुद्ध करती है तथा भोजन को पचाने में सहायता करती है। जिसने खेलों को महत्व दिया है वह सदैव प्रसन्न, स्वस्थ तथा मजबूत रहता है, उसमें आत्मविश्वास रहता है, नेतृत्व की क्षमता उत्पन्न होती है, इच्छाशक्ति सदैव बलवती रहती है, संगठन की शक्ति का अहसास होता है। अत: खेल स्वास्थ्य का पर्याय है। स्वस्थ युवक खेल-सामग्री के अभाव में भी खेल सकता है। कई परिवार अपने स्तर को ऊंचा बनाए रखने के लिए बच्चों के खेल के विभिन्न साधन घर में ही जुटा कर उन्हें वहाँ कैद रखना चाहते हैं, जिसकी वजह से  सामूहिक खेलों से बच्चे वंचित रह जाते हैं। आज के अधिकतर बच्चे कंप्यूटर पर अकेले वीडियो गेम खेलते रहते हैं। ऐसे खेलों से मानसिक अभ्यास तो हो जाते हैं, किंतु शारीरिक अभ्यास नहीं हो पाते हैं। थकान के बाद शीतल छाया में बैठकर सामान्य भोजन में भी जैसे आनंद की अनुभूति होती है, वैसे आनंद की अनुभूति रोगग्रस्त शरीर को विविध प्रकार के व्यंजनों में भी नहीं होती है। अतः जब बालक रुचि से खेलता है, तो उसकी पाचन-शक्ति बढ़ती है और उसे ज़ोर की भूख लगती है। ऐसे में किए गए भोजन का बिना किसी चूर्ण या पुड़िया प्रयोग किए पचना और शरीर का बलिष्ठ होना, ये सभी प्रक्रियाएँ स्वचालित यंत्र की तरह पूर्ण हो जाती हैं । ऐसे बालकों के लिए कभी चिकित्सकों की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इस प्रकार खेल एक और लाभ अनेक हैं।  वही राष्ट्र विकसित या सामर्थ्यवान बन पाता है, जिस देश का युवक स्वस्थ होता है। यह तभी संभव है जब प्रत्येक नागरिक अपनी लाख व्यस्तताओं के बावजूद खेल के लिए समय निकाले।

डिजिटल इंडिया पर निबंध (Essay on Digital India)

लोगों द्वारा आकस्मिक या संगठित भागीदारी के माध्यम से की जाने वाली प्रतिस्पर्धी खेल गतिविधियों को हम खेल कह सकते हैं। यह सभी की शारीरिक क्षमता और कौशल को सुधारने और बेहतर बनाए रखने में मदद करता है। यह प्रतिभागियों के लिए मनोरंजन का एक तरीका है। खेल वास्तव में सभी के द्वारा विशेषरुप से बच्चों द्वारा पसंद किए जाते हैं हालांकि, ये उनके लिए विभिन्न तरीकों से हानि भी पहुँचा सकते हैं। यह – खेल: चरित्र और स्वास्थ्य निर्माणबच्चों को आसानी से घायल कर सकता है या अध्ययन से भटका सकता है। फिर भी, बच्चे अपने मित्रों के साथ खेलने के लिए बाहर जाना पसंद करते हैं।

यदि हम इतिहास पर नजर डालें तो हम देखते हैं कि, खेलों को प्राचीन समय से ही बहुत अधिक महत्व दिया जा रहा है। आधुनिक समय में, अन्य मनोरंजन बढ़ाने वाली चीजों, जैसे- विडियो गेम, टीवी आदि की वृद्धी और प्रसिद्धी के कारण जीवन में खेलों की माँग कम हो रही है। यद्यपि, यह भी सत्य है कि, खेल बहुत से देशों के द्वारा सांस्कृतिक गतिविधियों की तरह माने जाते हैं, इसलिए हम कह सकते हैं कि, भविष्य में खेल और स्पोर्ट्स का प्रचलन कभी खत्म नहीं होगा।

खेल गतिविधियों को स्कूल और कॉलेजों में विद्यार्थियों के अच्छे शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य और पेशेवर भविष्य के लिए अनिवार्य कर दिया गया है। खेल उन सभी के लिए, जो इनमें पूरी लगन के साथ शामिल होता के लिए भविष्य में अच्छा कैरियर रखते हैं। यह विशेषरुप से विद्यार्थियों के लिए बहुत ही लाभदायक है क्योंकि, यह शारीरिक और मानसिक विकास को सहायता प्रदान करता है। वे लोग जो खेलों में अधिक रुचि रखते हैं और खेलने में अच्छे हैं, वे अधिक सक्रिय और स्वस्थ जीवन जी सकते हैं। वे कार्यस्थल पर बेहतर अनुशासन के साथ ही नेतृत्व के गुणों को विकसित कर सकते हैं।

शारीरिक समन्वय और ताकत

यह माना जाता है कि, खेल और ताकत एक ही सिक्के के दो पहलु हैं। यह सत्य है कि, खेल में भागीदारी करने वाले एक व्यक्ति के पास सामान्य व्यक्ति (जो व्यायाम नहीं करता हो) से अधिक ताकत होती है। खेलों में रुचि रखने वाला व्यक्ति महान शारीरिक ताकत विकसित कर सकता है और किसी भी राष्ट्रीय या अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के खेल में भागीदारी करने के द्वारा अपना भविष्य उज्ज्वल कर सकता है। खेल प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने, शारीरिक समन्वय बनाए रखने, शरीर की ताकत को बढ़ाने और मानसिक शक्ति में सुधार करने में मदद करता है।

चरित्र और स्वास्थ्य निर्माण

नियमित आधार पर खेल खेलना एक व्यक्ति के चरित्र और स्वास्थ्य निर्माण में मदद करता है। यह आमतौर पर देखा जा सकता है कि, युवा अवस्था से ही खेल में शामिल रहने वाला एक व्यक्ति, बहुत ही साफ और मजबूत चरित्र के साथ ही अच्छे स्वास्थ्य को विकसित करता है। खिलाड़ी बहुत अधिक समय के पाबंद और अनुशासित होते हैं, इस प्रकार, हम कह सकते हैं कि, खेल राष्ट्र और समाज के लिए विभिन्न मजबूत और अच्छे नागरिक प्रदान करता है।

खेल आमतौर पर, एक दूसरे पर विजय प्राप्त करने की कोशिश के साथ दो प्रतिस्पर्धी टीमों के बीच एक प्रतियोगिता के रूप में खेला जाता है।खेल और स्पोर्ट्स के विभिन्न प्रकार होते हैं, जिन्हें हम घर के बाहर खेलते हैं उन्हें आउटडोर (मैदानी खेल) खेल कहते हैं, वहीं जो घर के अन्दर खेले जाते हैं उन्हें इनडोर खेल कहा जाता है। दोनों में से एक प्रतिभागी विजेता होता है, वहीं दूसरा हारता है। खेल वास्तव में सभी के लिए बहुत महत्वपूर्ण गतिविधि है, विशेषरुप से बच्चों और युवाओं के लिए क्योंकि यह शरीर को स्वस्थ और तंदरुस्त रखता है।

खेल का महत्व पर 800 शब्दों में निबंध नीचे दिया जा रहा है :

संकेत बिंदु-

  • खेलों का महत्व 
  • खेलकूद और स्वास्थ्य
  • सच्चे खिलाड़ी का कर्तव्य 

खेल का महत्व

मानव संसार का सबसे महत्वपूर्ण प्राणी है। अन्य प्राणियों की अपेक्षा मानव में सोचने-समझने, चिंतन करने की शक्ति अधिक है, परंतु मस्तिष्क का एकांगी विकास किसी काम का नहीं है। मस्तिष्क के विकास के साथ-साथ शारीरिक शक्ति का होना भी आवश्यक है। ‘शरोरामायं खलु धर्मसाधनम्’ अर्थात् शरीर कर्तव्य पालन का पहला साधन है। कालिदास का यह कथन पूर्णत: सत्य है। जीवन की पहली आवश्यकता स्वस्थ शरीर ही है। अच्छे स्वास्थ्य के अनेक साधन हैं जैसे-व्यायाम, खेलकूद, जिम्नास्टिक आदि। व्यायाम तथा जिम्नास्टिक से शरीर स्वस्थ तो अवश्य रहता है, परंतु न तो इनसे मनोरंजन होता है और न ही शरीर के स्वस्थ बनने के अतिरिक्त इसका कोई अन्य लाभ है। साथ ही ये दोनों साधन नीरस हैं। इसके विपरीत खेलों से व्यायाम के साथ-साथ मनोरंजन भी होता है। यही कारण है कि विद्यार्थियों की रुचि व्यायाम की अपेक्षा खेलकर में अधिक होती है। वे खेलकूद में भाग लेकर अपना स्वास्थ्य ठीक रखते हैं स्वामी दयानंद सरस्वती ने कहा था- “मजबूत आत्मा और पक्के मन का मंदिर शरीर कल्पना में भी कैसे कच्चा हो सकता है?” खेलकूद स्वास्थ्य-रक्षा का निःशुल्क साधन है। स्वामी विवेकानंद जी ने स्वास्थ्य का मस्तिष्क पर प्रभाव के विषय में अपने विचार स्पष्ट रूप से व्यक्त किए थे “स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है। “ खेलों से स्वास्थ्य तो ठीक रहता ही है इनसे मनुष्य का चारित्रिक और आध्यात्मिक विकास भी होता है। खेलकर से पुष्ट और स्फूर्तिमय शरीर ही मन को स्वस्थ बनाता है। खेलकूद मानव मन को प्रसन्न और उत्साहित बनाए रखते हैं। खेलों से नियम पालन के स्वभाव का विकास होता है और मन एकाग्र होता है। खेल में भाग लेने से खिलाड़ियों में सहिष्णुता,धैर्य और साहस का विकास होता है तथा सामूहिक सद्भाव और भाईचारे की भावना बढ़ती है। खेलकूद अप्रत्यक्ष रूप से आध्यात्मिक विकास में भी सहायक होते हैं ये जीवन संघर्ष का मुकाबला करने की शक्ति प्रदान करते है। खेलकूद से एकाग्रता का गुण आता है जिससे अध्यात्म साधना में मदद मिलती है। सच्चा खिलाड़ी हानि लाभ, यश अपयश सफलता असफलता को समान भाव से ग्रहण करने का अभ्यस्त हो जाता है। खेलों में भाग लेने से तन मन की शक्ति के साथ-साथ हमारा आत्मविश्वास भी बढ़ता है। तन-मन से स्वस्थ आत्मविश्वासी व्यक्ति के लिए जीवन में कोई भी काम करना कठिन नहीं होता। मनुष्य अकेले किसी भी खेल को नहीं खेल सकता। दो या दो से अधिक व्यक्ति ही किसी खेल को खेल सकते हैं। मिलकर खेलने से हमारा दूसरे खिलाड़ियों में परिचय बढ़ता है। हमें मिलकर काम करने की आदत पड़ती है। मिलकर खेलने में व्यक्तिगत हार-जीत नहीं रहती। हार का दुःख तथा जीत की खुशी साथी खिलाड़ियों में बंट जाती है। खेल में जीत के लिए आवश्यक है कि खिलाड़ी व्यक्तिगत यश के लिए न खेले। वह अन्य खिलाड़ियों के साथ सहयोग से खेले। इस प्रकार खेलों से टीम भावना तथा सहकारिता की भावना से काम करने को शिक्षा स्वयंमेव मिलती रहती है।  अच्छे खिलाड़ियों को खेलने के लिए अपने स्कूल के अतिरिक्त दूसरे स्कूलों में, अपने नगर के अतिरिक्त दूसरे नगरों में, अपने प्रदेश के अतिरिक्त दूसरे प्रदेशों में यहाँ तक कि अपने देश के अतिरिक्त दूसरे देशों में भी जाना पड़ता है। इससे उसके ज्ञान का विस्तार होता है। हमें दूसरे देशों की सभ्यता-संस्कृति,भाषा,खान-पान,रहन- सहन आदि को देखने समझने का अवसर प्राप्त होता है। अधिकतर खेल घर से बाहर निकलकर प्रकृति के खुले आँगन में खेले जाते हैं। इससे खुली हवा का आनंद भी मिलता है। खेलों में बच्चे, बूढ़े, युवक सभी आयु वाले भाग ले सकते हैं। खेल दो प्रकार के हैं- एक वे जो घर में बैठकर खेले जा सकते हैं या किसी हॉल में जैसे-शतरंज, लूडो, केरमबोड,टेबल टेनिस आदि। दूसरे प्रकार के खेल वे है जो घर से बाहर खुले स्थानों और मैदानों में खेले जाते हैं जैसे-हॉकी, क्रिकेट, बॉलीबॉल, फुटबॉल, लोन टेनिस, कबड्डी आदि। घर में खेले जाने वाले खेलों से केवल मनोरंजन होता है। इन से मन मस्तिष्क का व्यायाम तो हो जाता है, परंतु शरीर का व्यायाम नहीं होता। शारीरिक व्यायाम तो मैदान में खेले जाने वाले खेलों से ही होता है। आज संसार के सभी देशों ने खेल के महत्व को समझ लिया है, इसलिए खेलों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। स्कूलों,कॉलेजों में खेलों पर अधिक खर्च किया जाने लगा है। अब हर स्तर पर खेलों का महत्व समझाने के लिए खेलों का आयोजन होने लगा है। इससे न केवल खिलाड़ियों बल्कि देखने वालों और सुनने वालों का भी मनोरंजन होता है। इससे जीवन रसमय बन जाता है। खेल के मैदान में खिलाड़ियों से अधिक उत्साह दर्शकों में दिखाई देता है। विदेशों में खेल के महत्व को समझते हुए खेल पर बहुत ध्यान दिया जाता है। बड़े दुर्भाग्य की बात है कि हमारे देश में सरकार खेलों पर उतना ध्यान नहीं देती जितना देना चाहिए। इस प्रकार हम देखते हैं कि खेलों में भाग लेकर खिलाड़ी अपना स्वास्थ्य तो ठीक रखते ही है साथ ही अपने विद्यालय, कार्यालय तथा देश का नाम भी उज्ज्वल करते हैं।

विद्यार्थी जीवन में खेल का महत्व ( Essay on Importance of Sports in Hindi )

पुराने समय से ही खेल का महत्व है । विद्यार्थी जीवन में अनुशासन , पढ़ाई का जितना महत्व है उतना ही महत्व खेल खुद का भी हैं । ये पूरा दिन कक्षा में बैठे बैठे पढ़ाई करने से बॉडी का Posture ख़राब हो जाता हैं । खेल खुद बॉडी का Posture मेन्टेन रखने में मददगार साबित होता हैं । पहले जब  बच्चे जब गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण करने जाते थे। तो उनकेपढ़ाई के साथ-साथ अनेक प्रकार के खेल भी खिलाये जाते थे। जिससे अपने दिमाग के साथ तन की भी स्वस्थ रख सके । एक विद्यार्थी बचपन से प्रेरणा लेकर खेलना शुरू करता हैं । आज कल न सिर्फ लड़के बल्कि लडकिय भी बढ़ -चढ़ कर हिस्सा लेती है । खेल खुद आपके दिमाग को रिफ्रेशमेंट देता है जिससे विद्यार्थी अच्छे से अपना ध्यान केन्द्रित कर पाते हैं । ये कंसंट्रेशन बढ़ाने में भी मदद करता हैं । जो विद्यार्थी बचपन से खेल खुद में भाग लेते हैं उनके शरीर का विकास आचे तरीके से होता हैं । विद्यार्थियों के अन्दर खेल भावना जगाती है। इससे वो एकजुटता, लीडरशिप की भावना जगाती है ।ये मानसिक रूप से विद्यार्थियों को टफ बनाती है और खेल को खेल की तरह देखना चाहिए चाहे जीत हो या हार उसे खुले दिल से एक्सेप्ट करना चाहिए । 

खेल का महत्व

खेल का महत्व और उस पर लिखे गए नारे इस प्रकार हैं:

  • खेल-कूद द्वारा होता है स्वास्थ्य का निर्माण, जरुरी है खेल क्योंकि स्वास्थ्य है जीवन का प्राण।
  • खेलों का महत्व समझती हैं नानी-दादी, इसीलिए उस जमाने में खेलने की थी आज़ादी।
  • जैसे-जैसे हो रहा है खेल-कूद की प्रवृति का लोप, वैसे-वैसे दिख रहा है रोगो का स्वास्थ्य पर कोप।
  • जिंदगी की सबसे बड़ी जीत उन चीजों से ऊपर उठ जाना हैं जिसे हम कभी बहुत ज्यादा महत्व देते थे।
  • कभी भी हार को दिल पे मत लगाये और हार कर घर पर मत बैठ जाये, क्युकी कभी कभी एक अच्छा खिलाडी भी 0 पे आउट हो जाता हैं।
  • जिंदगी की सबसे बड़ी जीत उन चीज़ों से ऊपर उठना है जिन्हें हम अभी  बहुत ज्यादा महत्त्व देते हैं। 
  • मैं उस खिलाडी से नहीं डरूँगा जिसने 50 कलाएं सीख ली हैं, बल्कि उस खिलाडी से डरूंगा जो एक ही कला की 50 बार प्रैक्टिस करता है। 
  • खेल आपको स्वस्थ तो बनाते ही हैं इसके साथ करियर बनाने का भी एक बेहतर विकल्प है। 

खेल के महत्व पर कविता ( Essay on Importance of Sports in Hindi )

खेल का महत्व और लिखी कविता इस प्रकार है:

खेलों की दुनिया का जादू, खेल हमें सिखलाते आओ बच्चों आज तुम्हे मैं, एक बात बतलाऊं खेलों का कितना महत्त्व है? यह तुमको समझाऊं खेलों से सब कुछ मिल सकता, हमको हँसते गाते खेल… खेल-खेल में सारे बच्चे, सेहत खूब बनाते उछल कूद कर मस्ती करते, जीवन का सुख पाते यह आनंद बिना पैसे का, हम खेलों से पाते खेल.. खेल खेलने से ही बच्चों, खेल भावना आती खेल-खेल में जीवन के सब, बिगड़े काम बनाती हार जीत से उपर उठ कर, हम आदर्श बनाते खेल… रुपया-पैसा, धन-दौलत सब, खेलों से मिल जाता सचिन घुमा कर अपना बल्ला, लाखों लाख कमाता नाम और धन पाकर दोनों, फूले नहीं समाते खेल… खेलों की दुनिया का जादू, खेल हमें सिखलाते

खेल का महत्व और उसपे कुछ बेहतरीन सुविचार इस प्रकार हैं:

  • शिक्षा के अलावा आपको अच्छे स्वास्थ्य की आवश्यकता है और उसके लिए आपको खेल खेलना चाहिए। कपिल देव
  • “जिंदगी की सबसे बड़ी जीत उन चीजों से ऊपर उठ जाना हैंजिसे हम कभी बहुत ज्यादा महत्व देते थे…”
  • खेल में अपना प्रर्दशन इस प्रकार दिखाओ की सामने वाली विरोधी टीम का प्रत्येक खिलाड़ी आपके लिए तालियां बजाने लग जाये।
  • अपनी एक हार से इतना भी निराश मत होईये मौके और भी आएंगे जीतने के लिए, इसलिए अपना अभ्यास जारी रखे।
  • एक अच्छा खिलाड़ी कभी भी अपना मनोबल नीचे  नहीं गिरने देता है।
  • अगर आप भी स्पोर्ट्स में अपना कर्रिएर बनाना चाहते हैं, तो सबसे पहले खुद को परिश्रमी बनाना आवश्यक हैं।
  • अगर स्कूलों में खेलो को बढ़ावा नहीं दिया जायेगा, तो कोई भी देश एक बेहतर खिलाड़ी की खोज नहीं कर पायेगा।

खेल का महत्व और उससे होने वाले लाभों के बारे में नीचे बताया गया है-

  • खेल से व्यक्ति का शारीरिक और मासिक विकास होता है बच्चे  बड़ो की उपेक्षा चीजों पर जल्दी कंसन्ट्रेट कर पाते हैं।
  • खेल बच्चों में टीम स्पिरिट की भावना बढ़ाता है और उन्हें इसमें अपना नाम कैसे देख सकते हैं यह भी सिखाता है जो उन्हें आगे चलकर कई तरीकों से लाभ पहुंचाता है।
  • शारीरिक गतिविधियों में बॉडी स्ट्रेच करते हैं जिससे हमारी हमारी शायद बनावट भी बनी रहती है। ज्यादा से ज्यादा बच्चों को खेल और योगा के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
  •  खेल अपने जीवन में धैर्य कैसे बनाया जाए यह सकते हैं क्योंकि हर गेम उतार चढ़ाव आते हैं जिसमें धैर्य की भूत आवश्यकता होती है साथ ही धूप गर्मी पसीना इन सब समस्याओं से भी आप अपने धैर्य के साथ लड़ सकते हैं।
  •  खेलकूद हमारे व्यक्तित्व के विकास में बहुत बड़ा योगदान देता है जिससे इन में शारीरिक मानसिक क्षमता में बढ़ोतरी करता है।

खेल का महत्व में अब जानिए कि खेल में क्या क्या करियर संभावनाएं हैं :

पढ़ोगे-लिखोगे तो बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे तो होगे खराब। पहले ये कहावत बहुत प्रचलित थी  l लेकिन बदलते दौर के साथ हर कोई मुझे बड़ा होगा अपना करियर बनाना चाहता है। आज के समय में आप खेल में अपना एक बेहतरीन करियर बना सकते हैं जहां को एक अच्छी सैलरी मिलती है। खेल मैं कैरियर बनाना कई लोगों को लगता है के खेल में करियर बनाना सिर्फ एथलीट या किसी एक खेल में अच्छा परफ़ॉर्मर तक सीमित नहीं है  इसमें कई तरह की जॉब हैं जिनमें आपको  आपको एथलेटिक होने की जरुरत नहीं है । खेल में  हर किसी के लिए अवसर ही अवसर है। अब हम ये कह सकते है की-  खेलोगे-“कूदोगे तो होगे नवाब।”

खेल में करियर विकल्प कुछ इस प्रकार हैं:

  • खेल कमेंटेटर या एंकर – इनका काम कोच और प्लेयर्स का इंटरव्यू देना होता है यह लाइव रेडियो या टेलीविजन में आपको मुख्य भूमि निभाते हुए नजर आएंगे। इसके लिए आपको खेल की अच्छी जानकारी के साथ-साथ उसमें अच्छा अनुभव भी होना चाहिए।
  • खेल फोटोग्राफर – खेल आयोजन के दौरान खेल फोटोग्राफर फोटो खींचते हैं। खेल फोटोग्राफर फ्रीलांसरों के रूप में काम कर सकते हैं । एक खेल फोटोग्राफर के रूप में आप विभिन्न खेल आयोजनों की फोटो को कैप्चर कर सकते हैं। खेल फोटोग्राफरों को एक्शन को अच्छी क्वालिटी में कैप्चर करने के लिए रेफ्लेक्सेस अच्छे होने चाहिए ।
  • खेल राइटर- खेल लेखक का काम होता है खेल से जुड़ी ख़बरें या आर्टिकल, ब्लॉग लिखना। जो ऑनलाइन वेब मीडिया तथा अखबारों के लिए लिखते है। आज इस क्षेत्र में भी बहुत सारे विकल्प मौजूद है और अच्छी खासी सैलरी भी मिलती है।
  • फिटनेस डाइरेक्टर-  जो कि व्यक्तिगत या सामूहिक रूप में फिटनेस एक्टिवीटी का ध्यान रखते है। जिसमें फिटनेस फेसिलिटी, होटल कॉर्पोरेशन भी शामिल है। 
  • खेल अंपायर – क्रिकेट की अंपायरिंग करने के लिए जाने जाते हैं। वहीं रेफरी फुटबॉल, टेनिस, हॉकी इत्यादि मैच में होते हैं। अंपायर के पास फील्ड में कोई भी निर्णय लेते हैं । वह जो भी निर्णय लेता है दोनों टीमों के खिलाड़ियों को उसे स्वीकारना ही होता है। इसमें थर्ड अंपायर भी होता है जो फील्ड अंपायर के डिसिशन बदल सकता हैं 
  • खेल कोच- आप कोच के लिए अप्लाई कर सकते है ।जिसके लिए आपके पास थोडा अनुभव होना चाहिए क्युकी इसमें कम्पटीशन काफी होता है । एक अच्छा कोच अपन खिलाडियों का मागदर्शन करता है ।

खेल का महत्व

खेलों के प्रकार नीचे बताए गए हैं-

  • शारीरिक खेल -जिनमें  शारीरिक क्षमताओं का विशेष प्रदर्शन करते है उसे शारीरिक खेल कहा जाता है।जैसे – क्रिकेट, खो- खो, कबड्डी, क्रिकेट , बैडमिंटन आदि। 
  • मानसिक खेल -जिन खलों में मानसिक क्षमताओं का विशेष प्रदर्शन किया जीता है उसे मानसिक खेल कहा जाता है। जैसे  – चैस, सुडोकू, केरम्, पासा, बकरी– बाघ खेल आदि। 
  • मशीनी खेल – मशीनी खेल उस खेल को कहा जाता है जिसमें मानसिक क्षमताओं के साथ उपकरणों का उपयोग किया जाता है!
  • ऑनलाइन खेल – ये खेल वाइड रेंज में पाए जाते है । इन्हें लैपटॉप, मोबाइल, टेबलेट पर खेला जाता है। आज कल के दौर में इसका प्रचलन बढ़ रहा है।

मौसम के आधार पर इन्हें समर विंटर गेम्स दो तरह  के खेला जाता हैं। 

  • समर गेम्स – जिस खेल को गर्मियों के महीने में खेला जाता है उसे समर गेम्स कहते हैं जैसे नौकायन आदि।
  • विंटर गेम्स – जिस खेल को सर्दियों के महीने में खेला जाता है उसे विंटर गेम्स कहते हैं जैसे आइस हॉकी तथा आइस स्केटिंग आदि।

खेल को इंडोर और आउटडोर खेल में भी बांटा गया हैं।

ये ऐसे खेल हैं जिन्हें आप घर में बैठ कर अपने परिवार या प्रियजनों के साथ खेल सकता है। जिससे आपका मनोरंजन होगा और एक दूसरे के साथ समय भी बिता सकते हैं। आइए देखें इंडोर खेल के उदहारण –

  • राजा मंत्री चोर सिपाही – इसमें चार किरदार है राजा,मंत्री,चोर, सिपाही।इसमें 4 चिट बनाई जाती हैं ।इसमें सबसे ज्यदा पॉइंट्स राजा, फिर मंत्री, फिर सिपाही और अंत में चोर आता हैं।
  • सांप-सीढ़ी- इसमें एक बोर्ड, गोटियों और डाइस की मदद से खेला जाता है। बोर्ड में 1 से 100 तक अंक होते है और डाइस में 1 से 6 तक के नंबर होते हैं, जहाँ बीच-बीच में सांप के चित्र होते हैं। डाइस में जितना नंबर आता है, उतने ही नम्बर चलना होता है। सांप के मुंह में गोटी कट मानी जाती है और वो नीचे उस बॉक्स में वापस चली जाती है, जहां सांप की पूंछ होती है। 
  • चैस (शतरंज)- चैस का खेल मानसिक रूप से दिमाग को मजबूत बनाने का खेल है है। इसमें एक चैस बोर्ड और मोहरे होती है।

जिसे हम घर से बाहर खेलते हैं, जिससे हमारा मानसिक और शारीरक विकास होता है। ये तरों ताज़ा रहने में भी मदद करता है – आए देखे कुछ आउटडोर खेल –

  • फुटबॉल – फुटबॉल दुनिया हर देश में खेलता है। इसमें 11 खिलाड़ियों की आवश्यकता होती है। इसमें बॉल को फुटबॉल नाम से जाना जाता है।
  • क्रिकेट – क्रिकेट खेल में 11 खिलाड़ी होते है। ये कई देशों में खेला जाता हैं। भारत क्रिकेट खेल का क्रेज सबसे ज्यादा हैं। इसे बेट और बॉल का उपयोग करके खेला जाता है। इसमें एक अंपायर होता है जो इसके सारे निर्णय लेता है और सबको वो मानाने पड़ते है। महिला और पुरुष दोनों की टीम खेलती है। 
  • हॉकी – हॉकी खेल में खिलाड़ियों की संख्या 11 होती है। ओलंपिक में हॉकी खेली जाती है। महिला और पुरुष दोनों की टीम खेलती है। इस खेल में हॉकी स्टिक और बॉल होती है।
  • टेनिस – टेनिस खेल में दो या दो से अधिक लोग खेलते है। इस खेल को सिंगल या डबल में खेला जाता है। इसमें टेनिस रैकेट और बॉल होती है।
  • बैटमिंटन- बैडमिंटन रैकेट से खेला जाने वाला एक खेल है जिसमें शटलकॉक को नेट पर हिट करने के लिए रैकेट का उपयोग किया जाता है। 
  • कबड्डी – कबड्डी भारत में दूसरा सबसे लोकप्रिय खेल है । यह भारत और पाकिस्तान (भारतीय उपमहाद्वीप) का मूल खेल है। भारत में लोग प्राचीन काल से कबड्डी खेलते और देखते आ रहे हैं।
  • कुश्ती- कुश्ती, जिसे पहलवानी के नाम से भी जाना जाता है, भारत के सबसे पुराने खेलों में से एक है। इस खेल में शारीरिक बल मायने रखता है।

Sachin Tendulkar

एक अच्छा खिलाड़ी सदैव अपने खेल के प्रति समर्पित रहता है। वो अपना , परिवार और देश का नाम रोशन करने का हर मुमकिन प्रयाश करते हैं। वह एक अच्छा लीडर होना चाहिए जो अपनी टीम को लीड करे। उसके एक पॉजिटिव सोच वाला होना चाहिए ताकि वो टीम को कॉन्फिडेंस दिला सके। उसे अपना मन शांत रखने की कला में निपुण होना चाहिए ताकि विपरीत परिस्तिथि में सयम बना सकते। एक अच्छे खिलाड़ी को विनम्र होना चाहिए ताकि वो अपने टीम में एक अच्छा वातावरण बना सके। उसके अन्दर खेल भावना होनी चाहिए ताकि वो हार या जीत को दिल से न लगाए। किसी भी अच्छे खिलाड़ी को इच्छा, अपने उत्साह और शरीर  में तालमेल बनाए रखें। उसे हमेशा अपने अभ्यास में कंसिस्टें होना चाहिए क्योंकि “Practice Makes a Man Perfect”

बैक स्ट्रोक

राहुल द्रविड़

रोहित शर्मा

बिलियर्ड्स में

साक्षी मलिक

आशा करते हैं कि आपको खेल का महत्व का ब्लॉग अच्छा लगा होगा। ऐसे ही अन्य महत्वपूर्ण और रोचक ब्लॉग पढ़ने के लिए Leverage Edu  के साथ बने रहिए।

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रश्मि पटेल विविध एजुकेशनल बैकग्राउंड रखने वाली एक पैशनेट राइटर और एडिटर हैं। उनके पास Diploma in Computer Science और BA in Public Administration and Sociology की डिग्री है, जिसका ज्ञान उन्हें UPSC व अन्य ब्लॉग लिखने और एडिट करने में मदद करता है। वर्तमान में, वह हिंदी साहित्य में अपनी दूसरी बैचलर की डिग्री हासिल कर रही हैं, जो भाषा और इसकी समृद्ध साहित्यिक परंपरा के प्रति उनके प्रेम से प्रेरित है। लीवरेज एडु में एडिटर के रूप में 2 साल से ज़्यादा अनुभव के साथ, रश्मि ने छात्रों को मूल्यवान मार्गदर्शन प्रदान करने में अपनी स्किल्स को निखारा है। उन्होंने छात्रों के प्रश्नों को संबोधित करते हुए 1000 से अधिक ब्लॉग लिखे हैं और 2000 से अधिक ब्लॉग को एडिट किया है। रश्मि ने कक्षा 1 से ले कर PhD विद्यार्थियों तक के लिए ब्लॉग लिखे हैं जिन में उन्होंने कोर्स चयन से ले कर एग्जाम प्रिपरेशन, कॉलेज सिलेक्शन, छात्र जीवन से जुड़े मुद्दे, एजुकेशन लोन्स और अन्य कई मुद्दों पर बात की है। Leverage Edu पर उनके ब्लॉग 50 लाख से भी ज़्यादा बार पढ़े जा चुके हैं। रश्मि को नए SEO टूल की खोज व उनका उपयोग करने और लेटेस्ट ट्रेंड्स के साथ अपडेट रहने में गहरी रुचि है। लेखन और संगठन के अलावा, रश्मि पटेल की प्राथमिक रुचि किताबें पढ़ना, कविता लिखना, शब्दों की सुंदरता की सराहना करना है।

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Hindi Essay on “Importance of Trees” , ”वृक्षों का महत्व” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

वृक्षों का महत्व

Importance of Trees

Hindi-Essay-Hindi-Nibandh-Hindi

 Essay No. 01

प्रस्तावना- हमारे जीवन में वृक्षों का बहुत महत्व है। वृक्ष हमारे देश की प्राकृतिक सम्पदा हैं। इन्हें पेड़ों के झुण्ड, जंगल के रूप मंे जाना जाता है। वृक्ष हमें कच्ची साम्रगी-उधोगांे के लिए लकड़ी देते हैं। पेड़ बाढ़ों और भूमि के कटाव को रोकते हैं। इनसे आंखों को भाने वाली हरियाली मिलती है। पेड़ हमें अनेक प्रकार की कच्ची सामग्री, जैसे रबड़, इलायची, मसाले, उपयोगी जड़ी-बूटियां और फल-फूलों को प्रदान करते हैं। हमें पेड़ों का जीवन बचाना चाहिये। हमें अधिक से अधिक पेड़ लगाने चाहियें। गौतम बुद्व को ‘निर्वाण‘ एक वृक्ष के नीचे प्राप्त हुआ था। पेड़ हमें गर्मी में छाया देते हैं।

वृक्ष मानव- जीवन में उपयोगी-वृक्षों की महिमा हमारे आदिग्रंथों में वर्णित है। ये हमारे जीवनदाता होते हैं। पेड़ पयार्वरण को प्रदुषण से बचाते हैं। ये दूषित वायु को सोखते हैं और शुद्व आॅक्सीजन हमें देते हैं।

ऋषि-मुनियों एवं प्राचीन आचार्यों ने वृक्ष लगाने के महत्व को पुत्र-जन्म के महत्व के समान मान्यता प्रदान की है। वृक्ष विहीन धरती को तो हम कल्पना भी नहीं कर सकते। वृ़क्ष न हों तो पर्यावरण प्रदुषण इनता बढ़ जायेगा कि शुद्व आॅक्सीजन के लिए हम तरस जायेंगे, मानवता का विनाश हो जायेगा।

उपंसहार- कुछ लोग स्वार्थवश लकड़ी को ईंधन के रूप में इस्तेमाल करने के लिए चोरी-चोरी पेड़ों को काटते हैं, हमें उन्हें रोकना चाहिये। प्रत्येक मनुष्य को एक पेड़ लगाना चाहिये और उसकी देखभान करनी चाहिये। ऐसा करने से हमें प्रदुषण की समस्या से छुटकारा मिल जायेगा।

वृक्षों का महत्त्व

Vrikshon Ka Mahatva

 Essay No. 02

भारत में प्राचीन काल में वृक्षों की पूजा की जाती यो आज भी वृक्षों की पूजा की जाती है। माना जाता है कि जुक बस वृक्षों पर देवत्ता निवास करते हैं।

आज भी वृक्षों को बहुत अधिक महत्त्व दिया जाता है। ऋ हमारे मित्र हैं। वे हमारे सच्चे सहयोगी हैं। वृक्षों से प्याप शुद्ध रहता है। शुद्ध पर्यावरण से हमारा जीवन सुजन्य होता है। ये प्रदूषण को कम करते हैं। हवा में कल-कारखानों और वाहनों के धुएँ से जहरीली गैसों का मिश्राप हो जाता है। हवा में ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा काली है। वृक्ष स्वयं कार्बन डाई-ऑक्साइड जैसी गैस ग्रहण ऊर हमें प्राणादायिनी ऑक्सीजन देते हैं। यदि वृक्ष न हो तो पृथ्वी पर जीवन ही नष्ट हो जाएगा। वृक्ष केवल हमें छाया और हवा ही नहीं बल्कि लकड़ी तथा औषधियाँ भी प्रदान करते हैं।

वर्षा होने के लिए भी वृक्षों का होना ज़रूरी है। इसलिए पर्यावरण को संतुलित रखने के लिए वृक्षों का अधिक संख्या में रहना जरूरी है। लेकिन आज का मानव वृक्षों को अंधाधुंध काट रहा है। जंगल कम हो रहे हैं। यह चिंता का विषय है। पर्यावरण की रक्षा के लिए नए वृक्षों को लगाना जरूरी है। इसीलिए आज सरकार ने हरे वृक्षों की कटाई पर रोक लगा दी है। सरकार नए वृक्षों को रोपने के लिए हमें प्रोत्साहित कर रही है। वृक्षारोपण अभियान चलाए जा रहे हैं। हमें प्रत्येक शुभ अवसर पर नए वृक्ष लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इस कार्य पर सरकार करोडों रुपये खर्च करती है। वृक्ष से बढ़कर अभी भी संसार में हमारा कोई सच्चा साथी नहीं है। वन संरक्षण के लिए ‘चिपको आंदोलन’ की शुरुआत सुंदर लाल बहुगुणा ने की।

आज हरे वृक्ष की कटाई को अपराध घोषित कर दिया गया है। सरकार ने वन विभाग को बहुत सारे अधिकार दिए हैं। वन विभाग वनों और वृक्षों की सुरक्षा करता है।

पूरी दुनिया वृक्षों के महत्त्व को समझने लगी है क्योंकि पूरी दुनिया को पर्यावरण प्रदूषण का खतरा महसूस हो रहा है।

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essay for class ka

commentscomments

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I need a essay on vanamahotsav

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It is super idea of importance on trees

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Very nice important of tree

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Nice but practice more 😜

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Vocational Edu.

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  • Essay on Importance of Education

Importance of Education Essay

Education is one of the key components for an individual’s success. It has the ability to shape one’s life in the right direction. Education is a process of imparting or acquiring knowledge, and developing the powers of reasoning and judgement. It prepares growing children intellectually for a life with more mature understanding and sensitivity to issues surrounding them. It improves not only the personal life of the people but also their community. Thus, one cannot neglect the significance of Education in life and society. Here, we have provided an essay on the Importance of Education. Students can use this essay to prepare for their English exam or as a speech to participate in the school competition.

Importance of Education

The importance of education in life is immense. It facilitates quality learning for people throughout their life. It inculcates knowledge, belief, skill, values and moral habits. It improves the way of living and raises the social and economic status of individuals. Education makes life better and more peaceful. It transforms the personality of individuals and makes them feel confident.

Well said by Nelson Mandela, “Education is the most powerful weapon to change the world”. To elaborate, it is the foundation of the society which brings economic wealth, social prosperity and political stability. It gives power to people to put their views and showcase their real potential. It strengthens democracy by providing citizens with the tools to participate in the governance process. It acts as an integrative force to foster social cohesion and national identity.

In India, education is a constitutional right of every citizen. So, people of any age group, religion, caste, creed and region are free to receive education. An educated person is respected everywhere and well-treated in society. As a kid, every child dreams of being a doctor, lawyer, engineer, actor, sportsperson, etc. These dreams can come true through education. So, investment in education gives the best return. Well-educated people have more opportunities to get a better job which makes them feel satisfied.

In schools, education is divided into different levels, i.e., preschool, primary, secondary and senior secondary. School education comprises traditional learning which provides students with theoretical knowledge. However, now various efforts are being made to establish inbuilt application-based learning by adding numerous experiments, practicals and extracurricular activities to the school curriculum. Students learn to read, write and represent their viewpoints in front of others. Also, in this era of digital Education, anyone can easily access information online at their fingertips. They can learn new skills and enhance their knowledge.

Steps Taken By Government To Promote Education

Education is evidently an important aspect that no government can ignore in order to ensure the equitable development of a nation. Unfortunately, some children still do not have access to education. The Government has thereby taken initiatives to improve education quality and made it accessible to everyone, especially the poor people.

The Government passed the Right to Education Act 2009 (RTE Act 2009) on 4 August 2009. This Act came into effect on 1 April 2010, following which education has become the fundamental right of every child in India. It provides free and compulsory elementary education to children of the age group of 6-14 years in a neighbourhood school within 1 km, up to Class 8 in India. On similar lines, there are other schemes launched by the government, such as Sarva Shiksha Abhiyan , Mid-Day Meal , Adult Education and Skill Development Scheme, National Means cum Merit Scholarship Scheme, National Program for Education of Girls at Elementary Education, Kasturba Gandhi Balika Vidyalaya, Scheme for Infrastructure Development in Minority Institutions, Beti Bachao , Beti Padhao, etc.

For our country’s growth, we require a well-educated population equipped with the relevant knowledge, attitude and skills. This can be achieved by spreading awareness about the importance of Education in rural areas. There is a famous saying that “If we feed one person, we will eliminate his hunger for only one time. But, if we educate a person, we will change his entire life”. Henceforth he will become capable of earning a livelihood by himself.

This essay on the Importance of Education must have helped students to improve their writing section for the English exam. They can also practice essays on other topics by visiting the CBSE Essay page. Keep learning and stay tuned with BYJU’S for the latest updates on CBSE/ICSE/State Board/Competitive Exams. Also, download the BYJU’S App for interactive study videos.

Frequently Asked Questions on Education Essay

How can the literacy rate in india be increased.

People in rural areas must be informed about the importance of providing education to their children. Also, with the COVID-19 situation, the government should take steps by providing laptops/phones for children to follow online classes.

Are girl children still denied their right to get educated?

Although awareness has now improved, there are still many villages in India where girl children are not provided with proper education or allowed to enrol themselves in schools. This mentality has to change for the betterment of the society.

Teaching subjects/academics alone is enough, or should students be introduced to other forms of educational activities too?

Extracurricular activities, moral value education, etc., are also as important as regular academic teachings.

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