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शिक्षा मनोविज्ञान का अर्थ, परिभाषाएँ एवं क्षेत्र (Meaning, Definitions & Scope of Educational Psychology)

किसी विज्ञान (शिक्षा मनोविज्ञान) का स्वरूप, क्षेत्र, समस्यायें तथा सीमायें उस विषय की परिभाषा पर निर्भर करती हैं। जब तक हम किसी विशेष विषय की परिभाषा को स्पष्ट नहीं कर सकते तब तक हम उसके स्वरूप, क्षेत्र, समस्याओं तथा सीमाओं के बारे में विचार नहीं कर सकते। इस आर्टिकल में शिक्षा मनोविज्ञान का अर्थ, परिभाषाएँ एवं क्षेत्र (Meaning, Definitions & Scope of Educational Psychology) का अध्ययन करेंगे।

शिक्षा मनोविज्ञान का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning & Definitions of Educational Psychology)

शिक्षा मनोविज्ञान दो शब्दों से मिलकर बना है। पहला शब्द है ‘शिक्षा’ (Education) और दूसरा शब्द है ‘मनोविज्ञान’ (Psychology) । मनोविज्ञान (Psychology) व्यवहार तथा अनुभव का ज्ञान है और शिक्षा (Education) व्यवहार की शुद्धि का नाम है। आधुनिक शिक्षा का उद्देश्य बच्चे के व्यक्तित्व का समरूप विकास (Harmonious development) है। अध्यापकों का कार्य ऐसी अवस्थाएं उत्पन्न करना है, जिनके द्वारा व्यक्तित्व का स्वतन्त्र तथा पूर्ण विकास हो सके और यही आधुनिक शिक्षा का उद्देश्य है परन्तु आधुनिक शिक्षा का यह अर्थ मनोविज्ञान के ज्ञान पर निर्भर है। अतः शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षा समस्याओं पर लागू होने वाला मनोविज्ञान है।

शिक्षा मनोविज्ञान की और परिभाषायें अथवा दृष्टिकोण इस प्रकार हैं :

ट्रो के विचार (Trow’s view) – ‘शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षा संस्थानों के मनोवैज्ञानिक तत्त्वों का अध्ययन करता है।’ (“Educational psychology is the study of the psychological aspects of educational situations.”)

कश्यप और पुरी महोदय के अनुसार- “शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षणिक पर्यावरण में की हुई बालक अथवा व्यक्ति की क्रियाओं का अध्ययन है। ” “Educational Psychology is the study of the activities of the pupil or of the individual in response to educational Environments.” Kashyap and Puri

को  और  क्रो  के विचार (View of Crow and Crow) – ‘शिक्षा मनोविज्ञान जन्म से वृद्धावस्था तक व्यक्ति के सीखने की अनुभूतियों की व्याख्या प्रस्तुत करता है।’ (“Educational psychology describes and explains the learning experiences of an individual from birth through old age.”)

कोलसनिक के विचार (Kolesnik’s view)- शिक्षा क्षेत्र में मनोविज्ञान के सिद्धान्तों तथा उसकी उपलब्धियों को प्रयोग में लाना शिक्षा मनोविज्ञान है।’ (“Educational psychology is the application of the findings and the theories of psychology in the field of education.”)

स्किनर के विचार (Skinner’s view) – ‘शिक्षा मनोविज्ञान विज्ञान की वह शाखा है जो शिक्षण और सीखने के साथ सम्बन्धित है। इनके विचारानुसार शिक्षण और सीखना शिक्षा मनोविज्ञान का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है। (“Educational psychology is that branch of science which deals with teaching and learning. According to him, teaching and learning are the most important problems, areas or fields of educational psychology.”)

सॉरे  एवं  टेलफोर्ड  का विचार (View of Sawrey and Telford) – ‘शिक्षा मनोविज्ञान का मुख्य सम्बन्ध सीखने से है। यह मनोविज्ञान का वह अंग है जो शिक्षा के मनोवैज्ञानिक पहलुओं की वैज्ञानिक खोज में विशेष रूप से सम्बन्धित है।’ (“The major concern of educational psychology is learning. It is the field of psychology which is primarily concerned with the scientific investigation of the psychological aspects of education.”)

एलिस क्रो  का विचार (View of Alice Crow) – ‘शिक्षा मनोविज्ञान वैज्ञानिक विधि से प्राप्त किए जाने वाले मानव प्रतिक्रियाओं के उन सिद्धान्तों के प्रयोग को प्रस्तुत करता है, जो शिक्षण और अधिगम को प्रभावित करते हैं।’ (“Educational psychology represents the application of scientifically derived principles of human reactions that affect teaching and learning.”)

स्टीफन के विचार (Stephen’s view) – ‘शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षा की वृद्धि तथा विकास का विधिवत अध्ययन है। इनके विचारानुसार जो कुछ भी शिक्षा की वृद्धि तथा विकास के विधिवत अध्ययन के साथ सम्बन्धित है, उसे शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में सम्मिलित किया जा सकता है।’ (“Educational psychology is the systematic study of educational growth and development. According to him, whatever is concerned with systematic study of educational growth and development can be included in the scope of educational psychology.”)

जुड के विचार (Judd’s view) – ‘शिक्षा मनोविज्ञान एक ऐसा विज्ञान है जो व्यक्तियों में हुये उन परिवर्तनों का उल्लेख और व्याख्या करता है जो विकास की विभिन्न अवस्थाओं में होते हैं।’ (“Educational psychology may be defined as a science which describes and at the same time explains the changes that take place in the individuals as they pass through the various stages of development or it deals with many conditions.”)

पील के विचार (Peel’s view point) – ‘शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षा का विज्ञान है जो अध्यापक को अपने विद्यार्थियों के विकास तथा उनकी योग्यताओं के विस्तार और उनकी सीमाओं को समझने में सहायता प्रदान करता है। यह अध्यापक को अपने विद्यार्थियों के सीखने की प्रक्रियाओं तथा उनके सामाजिक सम्बन्धों को भी समझने में सहायता प्रदान करता है। पील के विचारानुसार शिक्षा मनोविज्ञान व्यापक रूप से सीखने की प्रकृति, मानव व्यक्तित्व के विकास, व्यक्तियों की परस्पर भिन्नता और सामाजिक सम्बन्ध में व्यक्ति के अध्ययन के साथ सम्बन्धित है।’

(“Educational psychology is the science of education that helps teacher to understand the development of his pupils, the range and limits of their capacities, the processes by which they learn and their social relationship………. Educational psychology broadly deals with the nature of learning, the growth of human personality, the differences between individuals and the study of the person in relation to society.”)

नॉल एवं अन्य का विचार (View of Noll and Others) – ‘शिक्षा मनोविज्ञान मुख्य रूप से शिक्षा की सामाजिक प्रक्रिया से परिवर्तित या निर्देशित होने वाले मानव व्यवहार के अध्ययन से सम्बन्धित है।” (“Educational psychology is concerned primarily with the study of human behaviour as it is changed or directed under the social process of education.”)

निष्कर्ष (Conclusion)

उपर्युक्त विचारधाराओं के आधार पर कहा जा सकता है कि शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षा स्थितियों के संदर्भ में शिक्षार्थी एवं अधिगम प्रक्रिया से सम्बन्धित है।

(Educational psychology deals with the learner and the learning process in learning situations.”)

शिक्षा मनोविज्ञान का अर्थ, परिभाषाएँ एवं क्षेत्र

शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र एवं विषय-वस्तु (Scope and Subject Matter of Educational Psychology)

शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र से तात्पर्य अध्ययन की उस सीमा से होता है जिस सीमा तक उस विषय के अन्तर्गत अध्ययन किया जाता है और उसकी विषय सामग्री से तात्पर्य उस सीमा से होता है जिस सीमा तक उसके क्षेत्र में अध्ययन किया जा चुका होता है।

डगलस एवं हॉलैण्ड (Douglas & Holland) के अनुसार — “शिक्षा मनोविज्ञान की विषय-सामग्री शिक्षा की प्रक्रियाओं में भाग लेने वाले व्यक्ति की प्रकृति, मानसिक जीवन और व्यवहार है।”

क्रो एवं क्रो (Crow & Crow) के अनुसार — “शिक्षा मनोविज्ञान की विषय-वस्तु अधिगम को प्रभावित करने वाली दशाओं से सम्बन्धित होती है । ”

स्किनर (Skinner) के अनुसार — “शिक्षा मनोविज्ञान के अन्तर्गत वे समस्त सूचनायें एसं प्रविधियाँ सम्मिलित की जाती हैं जो समुचित अवबोध तथा अधिगम प्रक्रिया को प्रभावी दिशा प्रदान करने में सहायक होती हैं।”

गैरिसन तथा अन्य के अनुसार – “शिक्षा मनोविज्ञान की विषय-सामग्री का नियोजन दो दृष्टिकोण से किया जाता है— (1) छात्रों के जीवन को समृद्ध तथा विकसित करना। (2) शिक्षकों को अपने शिक्षण में गुणात्मक उन्नति करने में सहायता देने के लिए ज्ञान प्रदान करना।”

शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में छः मुख्य अवयव शामिल हैं

1. शिक्षार्थी (The learner) – ‘शिक्षार्थी’ शब्द से हमारा अर्थ है वे छात्र जो व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से कक्षा समूह में समाविष्ट होते हैं, वह व्यक्ति जिसके लिए यह कार्यक्रम विद्यमान है या काम कर रहा है। इस क्षेत्र में शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षार्थी के निम्नलिखित पहलुओं का अध्ययन करता है-

(1) वृद्धि एवं विकास अर्थात् उसका शारीरिक, बौद्धिक, संवेगात्मक और सामाजिक विकास ।

(2) बुद्धि, रुझान और व्यक्तित्व ।

(3) परिवार, विद्यालय, समाज, राज्य, जैसे सामाजिक अभिकरणों का व्यक्तित्व पर प्रभाव ।

(4) मानसिक स्वास्थ्य एवं समायोजन।

(5) व्यक्तिगत भिन्नताएं।

2. अधिगम प्रक्रिया (The learning process) – ‘अधिगम प्रक्रिया’ से हमारा अर्थ है छात्रों के सीखते समय जो चलता रहता है।

लिन्डग्रेन (Lindgren) के शब्दों में ‘अधिगम प्रक्रिया वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा छात्र अपने व्यवहार में परिवर्तन लाते हैं, कार्य-प्रदर्शन में सुधार लाते हैं, अपने विचार को पुनः संगठित करते हैं या व्यवहार करने के नए ढंगों, नए प्रत्ययों एवं जानकारी की खोज करते हैं।’ (“Learning process is the process by which pupils acquire changes in their behaviour, improve performance, reorganize their thinking, or discover new ways of behaving and new concepts and information.”)

इस क्षेत्र में शिक्षा मनोविज्ञान निम्नलिखित पहलुओं का अध्ययन करता है

(1) अधिगम प्रक्रिया की प्रकृति जिसमें अधिगम के सिद्धान्त सम्मिलित हैं।

(2) प्रभावशाली अधिगम के नियम और विधियां।

(3) अधिगम प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले कारक जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं

(क) अभिप्रेरणा, (ख) आदतें, (ग) ध्यान एवं रुचि, (घ) चिन्तन एवं तर्क, (ङ) समस्या समाधान और सृजनशीलता, (च) स्मृति एवं विस्मृति की प्रक्रिया, (छ) प्रशिक्षण का स्थान परिवर्तन, (ज) कौशलों को सीखना, (झ) प्रत्यय-निर्माण और अभिवृत्तियां । इस प्रकार शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में ये सभी विषय शामिल हैं।

3. अधिगम स्थिति (The learning situation) – ‘अधिगम स्थिति’ से हमारा अर्थ है वे कारक जो अधिगम एवं अधिगम प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। अधिगम स्थिति में शिक्षा मनोविज्ञान निम्नलिखित का अध्ययन करता है

(1) कक्षा प्रबंधन एवं अनुशासन ।

(2) प्रविधियां जिनमें कक्षा में अधिगम को सुविधापूर्ण बनाने वाली अभिप्रेरणात्मक प्रविधियां और सहायक साधन शामिल हैं।

(3) मूल्यांकन प्रविधियां एवं कार्य-विधियां जिनमें शिक्षा सांख्यिकी शामिल है।

(4) विशिष्ट बच्चों को पढ़ाने की विधियां जिनमें प्रतिभाशाली, पिछड़े हुए, अपराधी, समस्यात्मक और विकलांग (शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक और सामाजिक रूप से विकलांग) बच्चे शामिल हैं।

(5) निर्देशन एवं परामर्श।

4. अधिगम अनुभव (Learning experiences) – इसमें छात्रों के परिपक्वता स्तर के अनुसार क्रियाएं और विषय-वस्तु प्रदान करना शामिल है।

5. शिक्षण स्थिति (Teaching situation) – शिक्षा मनोविज्ञान की प्रभावशीलता तभी सार्थक होती है। जब शिक्षण अधिगम स्थिति में इसकी विधियां और निष्कर्ष शैक्षिक कार्यविधियों का एक भाग बन जाते हैं।

6. अधिगम अनुभवों का मूल्यांकन (Evaluation of learning experiences) – हाल ही में, मनोविज्ञान के विषय-वस्तु में अधिगम अनुभवों के मूल्यांकन का महत्त्व बढ़ गया है।

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शिक्षा मनोविज्ञान क्या हैं और इसकी परिभाषा

दोस्तों पिछली पोस्ट में हमने पढ़ा कि मनोविज्ञान क्या हैं और इसकी परिभाषा? आज हम इस पोस्ट में चर्चा करेंगे शिक्षा मनोविज्ञान की तो चलिए शुरू करते हैं। शिक्षा मनोविज्ञान Educational Psychology शिक्षा में मनोवैज्ञानिक सिद्धांतो का प्रतिपादन करने वाली वह प्रक्रिया हैं। जिसमें शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में मनोवैज्ञानिक सिद्धांतो को सम्मिलित किया जाता हैं और इन्हीं सिद्धांतो के अनुरूप शिक्षण विधियों एवं प्रविधियों का चयन किया जाता हैं।

शिक्षा मनोविज्ञान के सिद्धान्त कई मनोवैज्ञानिकों द्वारा प्रदान किये गए हैं जिन्हें हम Maslow Theory , S-R Theory, R-S Theory , Vygotsky Theory , Kohlberg Theory आदि के नाम से जानते हैं। इन Theories के अंतर्गत बताया गया हैं कि एक शिक्षण को अपने शिक्षार्थियों के साथ कैसे व्यवहार करना चाहिए या कैसे अपनी शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को पूर्ण करना चाहिए।

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उदाहरण के तौर पर हम इसे समझें तो S-R Theory के प्रतिपादक थार्नडाइक ने अपने सिद्धान्त में अधिगम के 3 मुख्य नियमों के संबंध में बताया हैं- तत्परता का नियम, अभ्यास का नियम और प्रभाव का नियम। उन्होंने बताया कि छात्र अधिगम (सीखने) करने की प्रक्रिया में इन 3 नियमों का पालन करते हैं।

इन समस्त मनोवैज्ञानिकों की इन Theories को शिक्षा जगत में शामिल किया जाना ही शिक्षा मनोविज्ञान को प्रदर्शित करता हैं। तो चलिए विस्तृत रूप से समझने का प्रयास करते हैं कि शिक्षा मनोविज्ञान क्या हैं और किसे कहते हैं? Educational Psychology in Hindi

Table of Contents

शिक्षा मनोविज्ञान क्या हैं? |Educational Psychology in Hindi

शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया में मनोवैज्ञानिक सिद्धांतो एवं नीतियों का अनुसरण करना ही शिक्षा मनोविज्ञान ( Educational Psychology ) हैं। थार्नडाइक को शिक्षा मनोविज्ञान का जनक माना जाता हैं। जिन्होंने S-R Theory का प्रतिपादन किया था। जिसे उद्दीपन-अनुक्रिया सिद्धान्त भी कहा जाता हैं। इस सिद्धांत के अंतर्गत थार्नडाइक मानते हैं कि छात्रों को सीखाने के लिए उद्दीपन (S) का होना आवश्यक हैं।

मनोविज्ञान शिक्षा में पूर्वज्ञान, रुचि और सह पाठ्यक्रम गतिविधियों का समर्थन करता हैं। शिक्षा मनोविज्ञान के अनुसार छात्रों को ज्ञात से अज्ञात की ओर ले जाना चाहिए। जिससे छात्रों को अधिगम करने में किसी समस्या का सामना न करना पढ़े। मनोविज्ञान छात्रों के व्यवहार में परिवर्तन और उसके सर्वांगीण विकास की बात करता हैं। शिक्षा मनोविज्ञान, बाल मनोविज्ञान की तरह मनोविज्ञान की एक शाखा हैं।

मनोविज्ञान शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में ऐसे सिद्धान्त का प्रतिपादन करता हैं जो छात्र-केंद्रित (Child Centered) हो। प्रारंभिक समय में शिक्षा अध्यापक केंद्रित हुआ करती थी। किन्तु शिक्षा मनोविज्ञान के आने से शिक्षा को बाल केंद्रित बना दिया गया हैं। जिसमें पाठ्यक्रम या शिक्षण विधियों के निर्माण के समय छात्रों के मानसिक स्तर का खासा ध्यान रखा जाता हैं।

शिक्षा मनोविज्ञान में कई विचारकों के विचारों को मुख्य भूमिका प्रदान की गई हैं। जैसे- Bloom Taxonomy , Piaget Theory , Bruner Theory आदि। इन सभी मनोवैज्ञानिकों ने अपने-अपने परीक्षण के आधार पर कुछ ऐसे मनोवैज्ञानिक सिद्धांतो का प्रतिपादन किया। जिनको शिक्षण प्रक्रिया में सम्मिलित कर शिक्षण को प्रभावशाली बनाया जा सकता हैं।

शिक्षा मनोविज्ञान की परिभाषा |Definition of Educational Psychology in Hindi

शिक्षा मनोविज्ञान की परिभाषा कई महान मनोवैज्ञानिकों द्वारा दी गयी हैं। जिसमें सभी ने अपने-अपने विचारों के अनुसार इसकी एक निर्धारित परिभाषा तैयार की हैं। जिनमें से मुख्य इस प्रकार हैं-

B.F स्किनर के अनुसार – “शिक्षा मनोविज्ञान मनोविज्ञान की वह शाखा है जिसमें सीखने और सीखाने की प्रक्रिया का अध्ययन किया जाता हैं।”

क्रो एंड क्रो के अनुसार – “शिक्षा मनोविज्ञान व्यक्ति के जन्म से वृद्धावस्था तक सीखने के अनुभवों की व्याख्या करता हैं।”

स्टीफन के अनुसार – “शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षिक विकास का क्रमबद्ध अध्ययन करता हैं।”

ट्रो के अनुसार – “शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षिक परिस्थितियों में मनोवैज्ञानिक पक्षों का अध्ययन करने वाला विज्ञान हैं।”

एलिस क्रो के अनुसार – “शिक्षा मनोविज्ञान वैज्ञानिक विधि से प्राप्त किये जाने वाले मानव क्रियाओं के सिद्धांतों के प्रयोग को प्रस्तुत करता हैं। जो शिक्षण और अधिगम को प्रभावित करते हैं।”

शिक्षा मनोविज्ञान की विशेषता |Characteristics of Educational Psychology

1. शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षा में मनोवैज्ञानिक सिद्धांतो को सम्मिलित करने और उसका क्रियान्वयन करने की एक प्रक्रिया हैं।

2. इसके अनुसार छात्रों को उनकी रुचि और उनके मानसिक स्तर के अनुरूप शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए।

3. यह शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाने हेतु अधिगम प्रक्रिया का अध्ययन करता हैं।

4. शिक्षा मनोविज्ञान अधिगम के मनोवैज्ञानिक सिद्धांतो को शिक्षा में सम्मिलित करने की बात करता है।

5. इसके अनुसार छात्रों को किसी भी प्रक्रिया से अधिगम कराया जा सकता है।

6. यह छात्रों को खुद से सीखने की ओर प्रेरित करता हैं जिससे छात्र तनाव मुक्त रह कर शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में अपनी सक्रिय भूमिका निभा सके।

7. यह छात्रों को Co Curriculum Activities के जरिये सीखने की प्रक्रिया का समर्थन करती हैं।

8. शिक्षा मनोविज्ञान बाल-केंद्रित शिक्षा का समर्थन करती हैं। ऐसा पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियां जो छात्रों के अनुरूप हो।

शिक्षा मनोविज्ञान के उद्देश्य |Aims of Educational Psychology in Hindi

● शिक्षा मनोविज्ञान का मुख्य उद्देश्य छात्रों का सर्वांगीण विकास करना है।

● इसका उद्देश्य शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को और अधिक प्रभावशाली बनाना है।

● इसका उद्देश्य ऐसी शिक्षण विधियों का विकास करना है जिससे छात्र कक्षा में सक्रिय होते हुए अधिगम प्रक्रिया में भाग ले सकें।

● इसका उद्देश्य शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को स्थायी और सक्रिय बनाना हैं।

● छात्रों के व्यक्तिव एवं उनके नैतिक मूल्यों का विकास करना भी इसका मुख्य उद्देश्य हैं।

शिक्षा मनोविज्ञान की शिक्षा में उपयोगिता या भूमिका |Importance of Educational Psychology in Education

शिक्षा किसी भी देश का भविष्य और उसके विकास की नींव होती हैं। अगर हम बात करें शिक्षा मनोविज्ञान की शिक्षा में भूमिका तो मनोवैज्ञानिक सिद्धांतो को शिक्षा के क्षेत्र में सम्मिलित किया जाना शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाता हैं। वर्तमान की शिक्षा बाल केंद्रित शिक्षा हैं। जिसका अर्थ है कि शिक्षा का मुख्य और मूल उद्देश्य छात्रों का सर्वांगीण विकास करना है।

शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षकों को कक्षा में छात्रों को समझने और किसी जटिल प्रकरण को सरलता सर समझाने की विधि प्रदान करती हैं। जिस कारण एक शिक्षक कक्षा में छात्रों को सक्रिय रखने और कक्षा में उनकी रुचि बनाये रखने में सक्षम हो सकता हैं। यह छात्रों को सरलता से अधिगम कराने की विधि का विकास करता हैं।

इसके माध्यम से कक्षा में छात्रों को उनके बुद्धि स्तर और उनकी व्यक्तिगत भिन्नताओं के आधार पर विभक्त किया जा सकता हैं। शिक्षा में मनोवैज्ञानिक विधियों के उपयोग से छात्रों की समस्याओं और उनके समाधानों का भी पता लगाया जा सकता हैं। शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षा की गुणवत्ता और महत्ता में वृद्धि करने की एक कला हैं। जिसका ज्ञान प्रत्येक शिक्षक को होना अनिवार्य हैं।

संक्षेप में – Conclusion

शिक्षा मनोविज्ञान ऐसी विधियों एवं प्रविधियों का विकास करती हैं जिससे शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को प्रभावशाली और स्थायी बनाया जा सकता हैं। यह छात्रों की मानसिक स्थिति का पता लगाने और अधिगम के मनोवैज्ञानिक तथ्यों को उजागर करने का कार्य करती हैं।

तो दोस्तो आज आपने हमारी इस पोस्ट के माध्यम से जाना कि शिक्षा मनोविज्ञान क्या हैं और इसकी परिभाषा (Educational Psychology in Hindi) हम आशा करते हैं कि हमारी यह पोस्ट आपको एक उत्तम शिक्षक बनने की ओर प्रेरित करेगी। इस पोस्ट सर संबंधित आपके कोई प्रश्न हो तो कमेंट बॉक्स के माध्यम से हम तक अवश्य शेयर करें।

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शिक्षा मनोविज्ञान की परिभाषाएं, प्रकृति तथा विशेषताएँ

Hamid Ali

शिक्षा मनोविज्ञान की परिभाषाएं, प्रकृति तथा विशेषताएँ (Difinitions, Nature and Specificity of Educational Psychology)

शिक्षामनोविज्ञान, मनोविज्ञान की एक शाखा है जिसमें मनोविज्ञान के सिद्धांतों, नियमों, विधियों का उपयोग शिक्षा में क्षेत्र में किया जाता है।

शिक्षा मनोविज्ञान की परिभाषाएं (Difinitions of Educational Psychology)

स्किनर (b. f. skinner) के अनुसार.

  • शिक्षा मनोविज्ञान मनोविज्ञान की वह शाखा है। जिसका संबंध अध्ययन (Study) तथा सीखने (Learning) से है।
  • शिक्षामनोविज्ञान अध्यापकों की तैयारी की आधारशिला है।
  • शिक्षा से जुड़े सभी व्यवहार तथा व्यक्तित्व शिक्षा मनोविज्ञान के अंतर्गत आते है।
  • शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में उन सभी ज्ञान और विधियाँ को शामिल किया जाता है। जो सीखने की प्रक्रिया से अधिक अच्छी प्रकार समझने और अधिक कुशलता से निर्देशित करने के लिए आवश्यक है।
  • मानवीय व्यवहार का शैक्षिक परिस्थितियों (Educational situations) में अध्ययन करना ही शिक्षा मनोविज्ञान है।

कॉलेस्निक (W.B. Kolesnik) के अनुसार

मनोविज्ञान के सिद्धांतों (Theories of psycology) व परिणामों (findings) का शिक्षा में अनुप्रयोग (Application) करना शिक्षा मनोविज्ञान है।

एलिस क्रो (Alice Crow) के अनुसार

शिक्षा मनोविज्ञान मानव प्रतिक्रियाओं (Human reactions) के वैज्ञानिक रूप से व्युत्पन्न सिद्धांतों के अनुप्रयोग (application) का प्रतिनिधित्व (Represent) करता है जो शिक्षण और सीखने को प्रभावित करते हैं।

क्रो एंड क्रो (Crow and Crow) के अनुसार

शिक्षा मनोविज्ञान व्यक्ति के जन्म से लेकर वृद्धावस्था तक अधिगम (Learning) के अनुभवों (Expriences) का वर्णन (Describe) तथा व्याख्या (Explain) करता है।

स्टीफन (J. M. Stephon) के अनुसार

शिक्षा मनोविज्ञान बालक के शैक्षिक विकास (Educational development) का क्रमबद्ध (Systemaqtic) अध्ययन है।

थार्नडाइक (Thorndike) के अनुसार

शिक्षा मनोविज्ञान के अंतर्गत शिक्षा से संबंधित संपूर्ण व्यवहार (Behaviour) और व्यक्तित्व (Persenalty) आ जाता है।

शिक्षा मनोविज्ञान के ज्ञान द्वारा शिक्षक बालक की व्यक्तिगत विभिन्नताओं का ज्ञान प्राप्त करता है। उचित शिक्षण विधियों का चयन करता है। तथा कक्षा-कक्ष में अनुशासन स्थापित करता है।

जर्मन दार्शनिक हरबर्ट को ‘ वैज्ञानिक शिक्षा शास्त्र ’ का जन्मदाता माना जाता है।

शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति तथा विशेषताएँ (Nature and Specificity of Educational Psychology)

  • शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति वैज्ञानिक (scientific nature) होती है। क्योंकि शैक्षिक वातावरण में अधिगमकर्ता (Learner) के व्यवहार का वैज्ञानिक विधियों, नियमों तथा सिद्धांतों (Scientific methods, rules and principles) के माध्यम से अध्ययन किया जाता है।
  • यह  विधायक (Constitative) और नियामक (Regulative) दोनों प्रकार का विज्ञान है। विधायक विज्ञान तथ्यों (Facts) पर जबकि नियामक विज्ञान मुल्यांकन (assessment) पर आधारित होता है।
  • शिक्षा का स्वरूप संश्लेषणात्मक (Synthetic) होता है, जबकि शिक्षा मनोविज्ञान का स्वरूप विश्लेषणात्मक (analytic) होता है।
  • शिक्षामनोविज्ञान एक वस्तुपरक विज्ञान (Material science) है।
  • शिक्षा मनोविज्ञान व्यवहार का विज्ञान (Science of behavior) क्योंकि इसमें शैक्षणिक परिस्थिति के अंतर्गत बालक के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।
  • शैक्षणिक परिस्थितियों के अंतर्गत बालक के व्यवहार का अध्ययन करना ही शिक्षा मनोविज्ञान की विषय वस्तु (theme) है।
  • शिक्षा मनोविज्ञान का सीधा संबंध शिक्षण में अधिगम क्रियाकलापों से है।
  • शिक्षामनोविज्ञान को सर्वप्रथम आधार प्रदान करने का श्रेय पेस्टोलॉजी द्वारा किया गया।
  • शिक्षा तथा मनोविज्ञान को जोड़ने वाली प्रमुख कड़ी मानव मानव व्यवहार है।

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शिक्षा मनोविज्ञान की विधियाँ | Methods of Educational Psychology

शिक्षा मनोविज्ञान की विधियाँ .

In gathering and classifying its data, educational psychology uses the methods and tools of science. -Skinner.

1. आत्मनिष्ठ विधियाँ (Subjective Methods)

2. वस्तुनिष्ठ विधियाँ (objective method), आत्मनिष्ठ विधियाँ (subjective methods), आत्मनिरीक्षण विधि (introspective method).

मस्तिष्क द्वारा अपनी स्वयं की क्रियाओं का निरीक्षण करना आत्मनिरीक्षण विधि कहलाता है।

1. आत्मनिरीक्षण का परिचय 

  • बाल मनोविज्ञान के महत्वपूर्ण सिध्दांत
  • वेन हीले का ज्यामितीय चिंतन का स्तर

2. आत्मनिरीक्षण का अर्थ

3. आत्मनिरीक्षण का गुण, 4. आत्मनिरीक्षण का दोष, गाथा वर्णन विधि (anecdotal method).

पूर्व अनुभव या व्यवहार का लेखा तैयार करना।

वस्तुनिष्ठ विधियाँ (Objective Method)

प्रयोगात्मक विधि (experimental method).

पूर्व निर्धारित दशाओं में मानव व्यवहार का अध्ययन

1. प्रयोगात्मक विधि का अर्थ

2. प्रयोगात्मक विधि का गुण , 3. प्रयोगात्मक विधि का दोष , बहिर्दर्शन या निरीक्षण विधि (extrospection or observational method).

व्यवहार का निरीक्षण करके मानसिक दशा को जानना।

1. निरीक्षण विधि का अर्थ

2. निरीक्षण विधि का गुण, 3. निरीक्षण विधि का दोष , जीवन इतिहास विधि (case history method).

जीवन इतिहास द्वारा मानव व्यवहार का अध्ययन।

उपचारात्मक विधि (Clinical Method)

आचरण सम्बन्धी जटिलताओं को दूर करने में सहायता।
  • पढ़ने में बेहद कठिनाई अनुभव करने वाले बालक।
  • बहुत हकलाने वाले बालक।
  • बहुत पुरानी अपराधी प्रवृत्ति वाले बालक।
  • गम्भीर संवेगों के शिकार होने वाले बालक।

विकासात्मक विधि (Development Method)

बालक की वृद्धि और विकास क्रम का अध्ययन।

मनोविश्लेषण विधि (Psycho-analytic Method)

व्यक्ति के अचेतन मन का अध्ययन करके उपचार करना।  

तुलनात्मक विधि (Comparative Method)

व्यवहार सम्बन्धी समानताओं और असमानताओं का अध्ययन।  

सांख्यिकी विधि (Statical Method)

समस्या से सम्बन्धित तथ्य एकत्र करके परिणाम निकालना।

परीक्षण विधि (Test Method)

व्यक्तियों की विभिन्न योग्यतायें जानने के लिए परीक्षा।

साक्षात्कार विधि (Interview Method)

व्यक्तियों से भेंट करके समस्या सम्बन्धी तथ्य एकत्र करना।  

प्रश्नावली विधि (Questionnair Method)

प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करके समस्या सम्बन्धी तथ्य एकत्र करना।

विभेदात्मक विधि (Differential Method)

वैयक्तिक भेदों का अध्ययन तथा सामान्यीकरण।

मनोभौतिकी विधि (Psy-physical Method)

मन तथा शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन।
  • वंशानुक्रम का अर्थ, परिभाषा, प्रक्रिया व सिद्धान्त
  • वंशानुक्रम का बालक पर प्रभाव
  • वंशानुक्रम व वातावरण का सम्बन्ध, महत्व
  • शिक्षक के लिए शिक्षा मनोविज्ञान की उपयोगिता
  • अभिवृद्धि और विकास के बीच अंतर

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Educational Psychology Notes In Hindi PDF

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Educational Psychology Notes In Hindi PDF | शिक्षा मनोविज्ञान नोट्स इन हिन्दी पीडीएफ

◆ शिक्षा मनोविज्ञान का आधार मानव व्यवहार है मनोविज्ञान शिक्षा को आधार प्रदान करता है । ◆ क्रो एण्ड क्रो के अनुसार – शिक्षा मनोविज्ञान को व्यवहारिक विज्ञान माना जाता है , शिक्षा मनोविज्ञान सीखने के क्यों , कैसे व क्या से संबंधित है । ◆ आधुनिक शिक्षामनोविज्ञान में थार्नडाईक व कैटल का योगदान है । ◆ शिक्षा मनोविज्ञान दो शब्दों से मिलकर बना है – ( 1 ) शिक्षा ( 2 ) मनोविज्ञान

★ शिक्षा :- ◆ क्रो एण्ड क्रो – शिक्षा व्यक्तिकरण व समाजीकरण की प्रकिया है जिसके सर्वांगीण विकास पर बल दिया जाता है । ◆ शिक्षा : – शिक्षा शब्द की उत्पत्ति ‘ शिक्ष् ‘ धातु से हुई है जिसका अर्थ है सीखना । सीखने के तीन तत्व :- 1. शिक्षक 2. शिक्षार्थी 3. पाठ्यक्रम

★ शिक्षा के प्रकार तीन है :- 1 . औपचारिक शिक्षा माध्यम – निर्धारित समय व स्थान , जैसे – विद्यालय 2 . अनौपचारिक शिक्षा – जिसका समय व स्थान निर्धारित नहीं होते – जैसे परिवार 3 . निरौपचारिक शिक्षा – पत्राचार , टी . वी , समाचार दररथ स्थान से प्राप्त की जाने वाली शिक्षा ★ शिक्षा की परिभाषा :- 1 . स्वामी विवेकानन्द : ‘ मनुष्य में अन्तर्निहित पूर्णता की अभिव्यक्ति ही शिक्षा है । ‘ 2 . ब्राउन – शिक्षा वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बालक के व्यवहार में परिवर्तन लाया जाता है । 3 . महात्मा गाँधी – शिक्षा से मेरा तात्पर्य बालक या मनुष्य के शरीर मस्तिष्क तथा आत्मा के सर्वोत्तम विकास की अभिव्यक्ति से है । ‘ 4 . पेस्टोलॉजी – शिक्षा बालक की जन्मजात शक्तियों का स्वाभाविक , विरोधहीन व प्रगतिशील विकास है । 5 , जॉन डीवी : – ‘ शिक्षा व्यक्ति को उन सभी योग्यताओं का विकास हैं जिनके द्वारा वह वातावरण के ऊपर नियंत्रण स्थापित करता है । 6. डगल्स व हॉलैण्ड – शिक्षा शब्द का प्रयोग सब परिवर्तनों को व्यक्त करने के लिए किया जाता है जो व्यक्ति के जीवन काल में होते हैं । 7. फ्रैंडसन – आधुनिक शिक्षा का संबंध व्यक्ति व समाज दोनों के कल्याण से है । 8 . डमविल – शिक्षा के व्यापक अर्थ में से सब प्रभाव आते है जो बालक को जन्म से मृत्यु तक प्रभावित करता है । एजुकेशन शब्द की उत्पत्ति लेटिन भाषा के एडुकेटम से हुई है । Educatum अर्थ – अन्दर से बाहर निकालना । एडुकेयर – आगे बढ़ाना । एडुसियर – विकसित करना । ■ मनोविज्ञान :- उत्पत्ति – साईकी + लोगोस ( Psyche + Logos ) ( आत्मा + विज्ञान / वातचीत ) ग्रीक भाषा का शब्द हैं । आत्मा का विज्ञान नोट : – ग्रीक ना होने पर लैटिन करना है । ● मनोविज्ञान के आदि जनक – अरस्तु ● आधुनिक मनोविज्ञान के जनक – विलियम जेम्स ( 1312 ) अमेरिका (मनोविज्ञान पहले दर्शन शास्त्र की शाखा था । ) दर्शनशास्त्र से अलग किया मनोविज्ञान शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग – रूडोल्फ गोयक्ले ( 1550 ई . ) पुस्तक – साईक्लोजिया ● प्रयोगात्मक मनोविज्ञान के जनक – विलियम वुन्ट में जर्मनी के निपजंग नगर में पहली मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला की स्थापना की थी । भारत मनोवैज्ञानिक एसोशियसन की स्थापना ( 1924 ) ‘ ● भारत में पहला मनोवैज्ञानिक विभाग ( 1915 ) कलकत्ता के सरेन्द्र नाथ सेन ने की । पहला मनोविज्ञान प्रयोगशाला 1905 बोजेन्द्रनाथ सोल ने स्थापित किया । ★ मनोविज्ञान का विकास : 1. आत्मा का विज्ञान – प्लेटो , अरस्तू व डेकार्त ( 16 वीं शताब्दी ) ( Soul of Science ) आलोचना – आत्मा एक आध्यात्मिक , धार्मिक व काल्पनिक विषय हैं । 2 . मन का विज्ञान – पोम्पोनॉजी – प्रथम ( 17 वीं शताब्दी में ) ( Science of Mind ) समर्थन किया – जॉन लॉक थॉमस रोड , बर्कले । आलोचना – मन अमूर्त व निजी है हम दूसरों के गर्ने को नहीं जान सकते , मन अन्तर्मुखी होते है । 3 . चेतना का विज्ञान : – विलियम जेम्स ( 19 वीं शताब्दी तक 1852 ) ( Science of Consciousness ) समर्थक – विलियम वुण्ट , जेम्स सल्ली , टिचेनर आलोचना – चेतन केवल 1 / 10 भाग है , बाकी अचेतन होता है । विलियम मैक्डूगल : – अपनी पुस्तक ‘ आउटलाईन ऑफ साइकोलॉजी में चेतना शब्द की आलोचना की । 4. व्यवहार का विज्ञान : – 20 वीं शताब्दी ( Science of Behaviour ) प्रतिपादक – वाटसन ( 1213 ) ● सर्वप्रथम विलियम मैक्डूगल ने 1905 ई इसका उल्लेख किया बाद में पिल्सबली ने 1911 में पुस्तक मनोविज्ञान के मूल तत्त्व में इसे व्यवहार का विज्ञान कहा । ● मैक्डूगल – सजीव प्राणियों का सकारात्मक विज्ञान कहा थ 1928 में व्यवहार शब्द का प्रयोग किया । ● वॉटसन – मनोविज्ञान व्यवहार का निश्चित व धनात्मक विज्ञान हैं । ‘ ● मन – आधुनिक मनोविज्ञान का संबंध व्यवहार की वैज्ञानिक खोज से । ● वडवर्थ – ‘ मनोविज्ञान ने सतप्रथम अत्मिा का त्याग , फिर मन का त्याग , फिर चेतना का त्याग और वर्तमान में उसने व्यवहार को रूप को अपना लिया है । ★ मनोविज्ञान की परिभाषाएँ :- ◆ सामान्य परिभाषा – मनोविज्ञान व्यक्ति के व्यवहार व अनुभव का वैज्ञानिक अध्ययन है । ◆ स्किनर – मनोविज्ञान व्यवहार एवं अनुभव का विज्ञान है । जो जीवन की सभी परिस्थितियों में प्राणी को क्रियाओं का अध्ययन करता है । ‘ ◆ को एण्ड क्रो : – ‘ मनोविज्ञान मानव व्यवहार तथा मानव संबंधों का अध्ययन है । ◆ बोरिंग लेगफील्ड , वेल्ड : – ‘ मनोविज्ञान मानव प्रकृति का अध्ययन है । ◆ वुडवर्थ : – मनोविज्ञान वातावरण के सम्पर्क में आने वाले व्यक्ति के क्रियाकलाप का विज्ञान है । ◆ मैक्डूगल : – मनोविज्ञान आचरण व व्यवहार का यथार्थ विज्ञान है । ◆ गैरिसन एवं अन्य के अनुसार : – मनोविज्ञान का संबंध प्रत्यक्ष मानव व्यवहार से है । ◆ पिल्सबल्ली : – ‘ मनोविज्ञान की सबसे सन्तोषजनक परिभाषा मानव व्यवहार के विज्ञान के रूप में की जा सकती है । ◆ विलियम जेम्स , मनोविज्ञान की सर्वोत्तम परिभाषा चेतना के विज्ञान के रूप में की जा सकती है । ★ मनोविज्ञान के लक्ष्य ( Goals of Psychology ) :- 1 . मापन एवं वर्णन ( Measurement and description ) 2 . पूर्वानुमान एवं नियंत्रण ( Prediction and Control ) 3 . व्याख्या ( Explanation ) | 1 , मापन एवं वर्णन ( Measurement and description ) – मनोविज्ञान का सबसे प्रथम लक्ष्य प्राणी के व्यवहार एवं संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं का वर्णन करना तथा फिर उसे मापन करना होता है । प्रमुख मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं जैसे चिंता , सीखना , मनोवृत्ति , क्षमता , बुद्धि आदि का वर्णन करने के लिए पहले उसे मापना आवश्यक होता है । 2 . पूर्वानुमान एवं नियंत्रण ( Prediction and Control ) : – मनोविज्ञान का दूसरा लक्ष्य व्यवहार के बारे में पूर्वकथन करने से होता है ताकि उसे ठीक ढंग से नियंत्रित किया जा सके । 3 . व्याख्या ( Explanation ) : – मनोविज्ञान का अंतिम लक्ष्य मानव व्यवहार की व्याख्या करना होता है । ★ मनोविज्ञान की शाखाएँ : 1 . शिक्षा मनोविज्ञान ( Education ) 2 . मानव प्रयोगात्मक मनोविज्ञान ( Human ) 3 . पशु प्रयोगात्मक मनोविज्ञान ( Anirmal ) 4 . व्यक्तित्व / व्यक्तिगत मनोविज्ञान Individual ) 5 . सामान्य / असामान्य मनोविज्ञान ( मानसिक रोगों का अध्ययन ) ( Normal and Abnormal ) 6 . निदानात्मक व उपचारात्मक मनोविज्ञान 7 . समाज मनोविज्ञान ( Social psy ) 8 . संज्ञानात्मक मनोविज्ञान ( Congnitive ) 9 . अपराध मनोविज्ञान ( COTri1nal ) 10 . बाल मनोविज्ञान ( Child ) 11 . किशोर मनोविज्ञान ( Adolescent ) 12 . प्रौढ़ मनोविज्ञान ( Adult ) 13 . परा मनोविज्ञान – मन से परे ( Para ) 14 . औद्योगिक मनोविज्ञान ( Industrial ) 15 . सैन्य मनोविज्ञान ( Military ) 16 . व्यवहार मनोविज्ञान 17 . औपचारिक मनोविज्ञान ( Clinical ) 18 . शारीरिक मनोविज्ञान ( Physialogical ) 19 . सुधारात्मक मनोविज्ञान 20 . कानून मनोविज्ञान ( Law ) 21 . व्यावहारिक मनोविज्ञान ( Applied ) 22 . सैद्धान्तिक मनोविज्ञान ( Pure ) 23 . प्रयोगात्मक मनोविज्ञान ( Experinmental )

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विषय – शिक्षा मनोविज्ञान भाषा – हिन्दी प्रारूप – पीडीएफ आकार – 3MB पृष्ठ – 105 पीडीएफ डाउनलोड करने के लिए नीचे लिंक दिया गया है जिसपर क्लिक करके नोट्स डाउनलोड कर सकते है ।

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शिक्षा मनोविज्ञान का कार्य क्षेत्र (Scope of Educational Psychology)

अनुक्रम (Contents)

शिक्षा मनोविज्ञान का कार्य क्षेत्र

शिक्षा मनोविज्ञान का कार्य क्षेत्र

शिक्षा मनोविज्ञान का कार्य क्षेत्र – शिक्षा मनोविज्ञान के अर्थ तथा उसके उद्देश्य से स्पष्ट है कि शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षार्थी (Learner), अध्यापक (Teacher) तथा शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया (Teaching-Learning Process) का मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से अध्ययन करता है। शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र को स्पष्ट करते हुए स्किनर ने लिखा है कि शिक्षा मनोविज्ञान के कार्य क्षेत्र में वह सभी ज्ञान तथा प्राविधियाँ सम्मिलित हैं जो सीखने की प्रक्रिया को अधिक अच्छी प्रकार से समझने तथा अधिक निपुणता से निर्देशित करने से सम्बन्धित हैं। आधुनिक शिक्षा मनोवैज्ञानिकों के अनुसार शिक्षा मनोविज्ञान के प्रमुख कार्यक्षेत्र निम्नवत हैं-

(i) वंशानुक्रम (Heredity) –

वंशानुक्रम व्यक्ति की जन्मजात योग्यताओं से सम्बन्धित होता है। किसी व्यक्ति के वंशानुक्रम में ऐसी समस्त शारीरिक, मानसिक अथवा अन्य विशेषतायें आ जाती हैं जिन्हें वह अपने माता-पिता अथवा अन्य पूर्वजों से (जन्म के समय नहीं वरन्) जन्म से लगभग नौ माह पूर्व गर्भाधान समय प्राप्त करता है। मनोवैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया है कि बालक के विकास के प्रत्येक पक्ष पर सके वंशानुक्रम का प्रभाव पड़ता है। शारीरिक संरचना, मूल प्रवृत्तियाँ, मानसिक योग्यता, व्यावसायिक ममता आदि पर व्यक्ति के वंशानुक्रम का प्रभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। शैक्षिक विकास की दृष्टि में वंशानुक्रम का अध्ययन करना अत्यधिक महत्वपूर्ण है। वंशानुक्रम के ज्ञान के आधार पर अध्यापक अपने छात्रों का वांछित विकास कर सकता है।

(ii) विकास (Development) –

शिक्षा मनोविज्ञान के अंतर्गत भ्रूणावस्था से लेकर मृत्युपर्यन्त होने वाले मानव के विकास का अध्ययन किया जाता है। मानव जीवन का प्रारम्भ किस प्रकार से होता है तथा जन्म के उपरान्त विभिन्न अवस्थाओं – शैशवावस्था, वाल्यावस्था, किशोरावस्था तथा प्रौढ़ावस्था में शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक आदि पक्षों में क्या-क्या परिवर्तन होते हैं, इसका अध्ययन करना शिक्षा मनोविज्ञान का एक महत्वपूर्ण विषय क्षेत्र है। बालकों की विभिन्न अवस्थाओं में होने वाले विकास के ज्ञान से उनकी सामर्थ्य तथा क्षमता के अनुरूप शिक्षा प्रदान करने में महत्वपूर्ण योगदान मिलता है।

(ii) व्यक्तिगत भिन्नता (Individual Differences)-

संसार में कोई भी दो व्यक्ति एक दूसरे के पूर्णतया समान नहीं होते हैं। शारीरिक, सामाज सामाजिक व मानसिक आदि गुणों में व्यक्ति एक दूसरे से पर्याप्त भिन्न होते हैं। अध्यापक को अपनी कक्षा में ऐसे छात्रों का सामना करना होता है जो परस्पर काफी भिन्न होते हैं। व्यक्तिगत विभिन्नताओं के ज्ञान की सहायता से अध्यापक अपने शिक्षण कार्य को सम्पूर्ण कक्षा की आवश्यकताओं तथा योग्यताओं के अनुरूप व्यवस्थित कर सकता है।

(iv) व्यक्तित्व (Personality)-

शिक्षा मनोविज्ञान मानव के व्यक्तित्व तथा उससे सम्बन्धित विभिन्न समस्याओं का भी अध्ययन करता है। मनोविज्ञान ने यह सिद्ध कर दिया है कि मानव के विकास तथा उसकी शिक्षा में व्यक्तित्व की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। शिक्षा का उद्देश्य बालक का सर्वांगीण विकास करना है। अतः बालक के व्यक्तित्व का संतुलित विकास करना शिक्षा का एक महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व हो जाता है। मनोविज्ञान व्यक्तित्व की प्रकृति, प्रकारों, सिद्धान्तों का ज्ञान प्रदान करके संतुलित व्यक्तित्व के विकास की विधियां बताता है। अतः शिक्षा मनोविज्ञान का एक कार्यक्षेत्र व्यक्तित्व का अध्ययन करके बालक के व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास का मार्ग प्रशस्त करना भी है।

(v) अपवादात्मक बालक (Exceptional Child)-

शिक्षा मनोविज्ञान अपवादात्मक बालकों के लिए विशेष प्रकार की शिक्षा व्यवस्था का आग्रह करता है। वास्तव में तीव्र बुद्धि या मन्द बुद्धि बालकों तथा गूंगे, बहरे, अंधे बालकों के द्वारा सामान्य शिक्षा का समान लाभ उठाने की कल्पना करना त्रुटिपूर्ण ही होगा। ऐसे बालकों के लिए इनकी विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप शिक्षा व्यवस्था का आयोजन करना होता है। शिक्षा मनोविज्ञान इस कार्य में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करता है।

(vi) अधिगम प्रक्रिया (Learning Process)-

शिक्षा प्रक्रिया का प्रमुख आधार अधिगम है। सीखने के अभाव में शिक्षा की कल्पना की ही नहीं जा सकती। शिक्षा मनोविज्ञान सीखने के नियमों, सिद्धान्तों तथा विधियों का ज्ञान प्रदान करता है। प्रभावशाली शिक्षण के लिए यह आवश्यक है कि अध्यापक सीखने की प्रकृति, सिद्धान्त, विधियों के ज्ञान के साथ-साथ सीखने में आने वाली कठिनाइयों को समझे तथा उनको दूर करने के विभिन्न उपायों से भी भलीभांति परिचित हो। सीखने का स्थानान्तरण कैसे होता है? तथा शैक्षिक दृष्टि से इसका क्या महत्व है? यह जानना भी अध्यापक के लिए उपयोगी होता है। इन सभी प्रकरणों की चर्चा शिक्षा मनोविज्ञान करता है।

(vii) पाठ्यक्रम निर्माण (Curriculum Development)-

वर्तमान समय में पाठ्यक्रम को शिक्षा प्रक्रिया का एक जीवन्त अंग स्वीकार किया जाता है तथा पाठ्यक्रम निर्माण में मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों, प्रयोग किया जाता है। विभिन्न स्तरों के बालक व बालिकाओं की आवश्यकताएँ, विकासात्मक विशेषताएँ, अधिगम शैली आदि भिन्न-भिन्न होती हैं। पाठ्यक्रम निर्माण के समय इन सभी का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक तथा महत्वपूर्ण होता है।

(viii) मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) –

अध्यापकों तथा छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य का शैक्षिक दृष्टि से विशेष महत्व है। जब तक अध्यापक तथा छात्रगण मानसिक दृष्टि से स्वस्थ तथा प्रफुल्लित नहीं होंगे, तब तक प्रभावशाली अधिगम सम्भव नहीं है। मनोविज्ञान मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारकों का ज्ञान प्रदान करता है तथा कुसमायोजन से बचने के उपायों को खोजता है।

(ix) शिक्षण विधियाँ (Teaching Methods) –

शिक्षण का अभिप्राय छात्रों के सम्मुख ज्ञान को प्रस्तुत करना मात्र नहीं है। प्रभावशाली शिक्षण के लिए यह आवश्यक है कि छात्र प्रभावशाली ढंग से ज्ञान को ग्रहण करने में समर्थ हो सके। शिक्षा मनोविज्ञान बताता है कि जब तक छात्रों को पढ़ने के प्रति अभिप्रेरित नहीं किया जायेगा, तब तक अध्यापन में सफलता मिलना संदिग्ध होगा। यह भी स्मरणीय होगा कि सभी स्तर के बालकों के लिए अथवा सभी विषयों के लिए कोई एक सर्वोत्तम शिक्षण विधि सम्भव नहीं होती है। शिक्षा मनोविज्ञान प्रभावशाली शिक्षण के लिए उपयुक्त शिक्षण विधियों का ज्ञान प्रदान करता है।

(x) निर्देशन व समुपदेशन (Guidance and Counselling) –

शिक्षा एक अत्यंत व्यापक तथा बहु-आयामी प्रक्रिया है। समय-समय पर छात्रों को तथा अन्य व्यक्तियों को शैक्षिक व्यक्तिगत तथा व्यावसायिक निर्देशन व परामर्श प्रदान करना अत्यंत आवश्यक है। छात्रों को किस पाठ्यक्रम में प्रवेश लेना चाहिए, किस व्यवसाय में वे अधिकतम सफलता अर्जित कर सकते हैं, उनकी समस्याओं का समाधान कैसे हो सकता है जैसे प्रश्नों का उत्तर शिक्षा मनोविज्ञान ही प्रदान कर पाता है।

(xi) मापन तथा मूल्यांकन (Measurement and Evaluation) –

छात्रों की विभिन्न योग्यताओं, रुचियों तथा उपलब्धियों का मापन व मूल्यांकन करना अत्यन्त महत्वपूर्ण तथा आवश्यक होता है। मापन तथा मूल्यांकन की सहायता से एक ओर जहाँ छात्रों की सामर्थ्य, रुचियों तथा परिस्थितियों का ज्ञान होता है, वहीं दूसरी ओर शिक्षण-अधिगम की सफलता-असफलता का ज्ञान भी प्राप्त होता है। शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययनों में छात्रों की योग्यताओं तथा उपलब्धियों का मापन व मूल्यांकन करने वाले विभिन्न उपकरण बहुतायत से प्रयुक्त किए जाते हैं।

उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र अत्यंत विस्तृत है तथा इसमें मनोविज्ञान से सम्बन्धित उन समस्त बातों का अध्ययन किया जाता है जो शिक्षा प्रक्रिया का नियोजन करने, संचालन करने तथा परिमार्जन करने की दृष्टि से उपयोगी हो सकती है।

  • शिक्षा का अर्वाचीन अर्थ | Modern Meaning of Education
  • शिक्षा का महत्त्व | Importance of Education in Hindi
  • शिक्षा के प्रकार | Types of Education औपचारिक शिक्षा, अनौपचारिकया शिक्षा
  • शिक्षा की संकल्पना तथा शिक्षा का प्राचीन अर्थ
  • अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक
  • अधिगम की विशेषताएं (Characteristics of Learning in Hindi)
  • अधिगम का अर्थ एवं परिभाषा
  • प्रतिभाशाली बालकों का अर्थ व परिभाषा, विशेषताएँ, शारीरिक विशेषता
  • मानसिक रूप से मन्द बालक का अर्थ एवं परिभाषा
  • अधिगम असमर्थ बच्चों की पहचान
  • बाल-अपराध का अर्थ, परिभाषा और समाधान
  • वंचित बालकों की विशेषताएँ एवं प्रकार
  • अपवंचित बालक का अर्थ एवं परिभाषा
  • समावेशी शिक्षा का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएँ और महत्व
  • एकीकृत व समावेशी शिक्षा में अन्तर
  • समावेशी शिक्षा के कार्यक्षेत्र
  • संचयी अभिलेख (cumulative record)- अर्थ, परिभाषा, आवश्यकता और महत्व, 
  • समावेशी शिक्षा (Inclusive Education in Hindi)
  • समुदाय Community in hindi, समुदाय की परिभाषा,
  • राष्ट्रीय दिव्यांग विकलांग नीति 2006

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शैक्षिक निर्देशन की आवश्यकता | Need of Educational...

शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर शैक्षिक निर्देशन के कार्य

शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर शैक्षिक निर्देशन के कार्य

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शिक्षा मनोविज्ञान | Education Psychology

Education Psychology by पी० डी० पाठक - P. D. Pathak

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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शैक्षिक तकनीकी का अर्थ, विशेषताएं, प्रकृति एवं क्षेत्र | Educational Technology in Hindi

शैक्षिक तकनीकी का अर्थ (meaning of educational technology).

‘ एजुकेशनल टेक्नॉलॉजी ’ (Educational Technology) शब्द, दो शब्दों से मिलकर बना है- एक, ‘ एजुकेशन ’ और दूसरा, ‘ टेक्नॉलॉजी ’। एजुकेशन का अर्थ है शिक्षा देना, पढ़ाना या प्रशिक्षित करना। अतः जब शिक्षक अपने शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिए विभिन्न तकनीकी साधनों की मदद लेता है जिससे शिक्षण एवं अधिगम दोनों प्रभावित होते हैं तो उसे शिक्षण तकनीकी कहा जाता है।

शिक्षा से तात्पर्य बालक के व्यवहार में वांछित परिवर्तन लाना है। शिक्षा से बालक की मूलप्रवृत्तियाँ परिमार्जित होती हैं। मूलप्रवृत्तियों के परिमार्जन में मनोविज्ञान, तकनीकी तथा विज्ञान अपना प्रभावपूर्ण योगदान शिक्षा के क्षेत्र में प्रदान करता है। अतः शिक्षा स्वयं में एक आत्मनिर्भर (Independent) प्रत्यय नहीं है वरन् यह तकनीकी विज्ञान से सम्बन्धित है। वैज्ञानिक व्यवस्थाओं तथा प्रविधियों का प्रयोगात्मक रूप ही तकनीकी या तकनीकी विज्ञान है। आज विज्ञान के युग में वैज्ञानिक तथा प्रौद्योगिकी अविष्कारों ने मानव जीवन के हर पक्ष को प्रभावित किया है जिनसे शिक्षा, शिक्षण तथा अधिगम भी बहुत प्रभावित हुए हैं। शैक्षिक तकनीक में मुख्यतः दो बिंदु निहित है।

  • शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति करना
  • शिक्षण की क्रियाओं का यंत्रीकरण करना।

शैक्षिक तकनीकी की अवधारणा (Concept Of Educational Technology)

आज के युग में मानव जीवन का प्रत्येक पक्ष वैज्ञानिक खोज तथा अविष्कारों से प्रभावित है। शिक्षा का क्षेत्र भी इसके प्रभाव से मुक्त नहीं रह सका है। रेडियो, टेप रिकॉर्डर, टेलीविजन, प्रोजेक्टर, कंप्यूटर आदि का बढ़ता हुआ उपयोग शिक्षा को तकनीकी के निकट लाता जा रहा है। शिक्षा शास्त्र का कोई भी अंग चाहे वह विधियों-प्रविधियों का हो, चाहे उद्देश्यों का हो, चाहे शिक्षा प्रक्रिया का हो, चाहे शोध का हो बिना तकनीकी के अपंग सा महसूस होता है। तकनीकी विज्ञान इतना समृद्ध और शक्तिशाली होता जा रहा है कि बिना इसके अध्ययन किए छात्राध्यापकों का शिक्षण संबंधी ज्ञान या उनके परीक्षण तथा प्रशिक्षण में प्राप्त ज्ञान और कौशल अधूरे रह जाते हैं। शैक्षिक तकनीकी ने शिक्षा के क्षेत्र में पुरानी अवधारणाओं में आधुनिक संदर्भ के साथ अभूतपूर्व क्रांतिकारी परिवर्तन कर उन्हें एक नवीन स्वरूप प्रदान किया है।

शिक्षा में तकनीकी का इस्तमाल तो होना ही चाहिए इसमें कोई शंक़ा नहीं है लेकिन इसके साथ में आपको टाइम टेबल की भी काफ़ी ज़्यादा ज़रूरत पड़ सकती है। बहुत से छात्रों को ये ही नहीं पता की टाइम टेबल कैसे बनाएं ? टाइम टेबल के होने से आपका कार्य बहुत ही आसान हो जाता है और आपकी दक्षता भी बढ़ जाती है।

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Educational technology and ict, शैक्षिक तकनीकी की परिभाषाएँ (definition of educational technology).

1. डॉ. एस. एस. कुलकर्णी के अनुसार , “शैक्षिक तकनीकी उन सभी प्रणालियों, विधियों एवं माध्यमों का विज्ञान है जिसके द्वारा शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सकती है।”

2. जे. पी. डिसिको के अनुसार , “शैक्षिक तकनीकी व्यावहारिक शिक्षण की समस्याओं में अधिगम मनोविज्ञान के विस्तृत प्रयोग का एक रूप है।” 

3. बी. एफ. स्किनर के अनुसार , “शिक्षण तकनीकी वह शास्त्र है जो शिक्षा की प्रभावशीलता में वृद्धि करता है तथा संपूर्ण शिक्षण प्रक्रिया के अपेक्षाकृत अधिक समुन्नत करता है।” 

4. आई. के. डेविस के अनुसार , “शैक्षिक तकनीकी का संबंध शैक्षिक और प्रशिक्षण के संदर्भ में समस्याओं से होता है और उसमें अधिगम के स्रोतों के संगठन में अनुशासित और प्रणाली उपागम के प्रयोग की क्षमता विशेष होती है।”

शैक्षिक तकनीकी के उद्देश्य (Objectives of Educational Technology)

शैक्षिक तकनीकी के उद्देश्य शैक्षिक तकनीकी के उद्देश्य निम्न प्रकार हैं-

  • पाठ्यवस्तु का विश्लेषण करना जिससे उसके तत्वों अथवा घटकों को क्रमबद्ध रूप से व्यवस्थित किया जा सके.
  • विद्यार्थियों की उपलब्धियों को निर्धारित उद्देश्यों के संबंध में मूल्यांकन कर शिक्षण में सुधार लाना.
  • पुनर्बलन की प्रविधियों का चयन करना तथा उनका प्रयोग करना.
  • शिक्षण को सरल, स्पष्ट, रुचिकर, वैज्ञानिक, वस्तुनिष्ट, बोधगम्य एवं प्रभाव उत्पादक बनाना.
  • ज्ञान का संचय, विकास एवं प्रसार करना.
  • शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में अपेक्षित सुधार लाना.
  • शिक्षकों में शिक्षण कौशलों का विकास कर उनकी योग्यता एवं क्षमताओं में वृद्धि करना.
  • शिक्षण के उद्देश्यों का निर्धारण करना जिससे शिक्षण तथा जांच में सुगमता हो सके.
  • छात्रों के गुणों, क्षमताओं, उपलब्धियों एवं कौशलों का विश्लेषण करना.
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शैक्षिक तकनीकी की विशेषताएं (Characteristics of Educational Technology)

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर शैक्षिक तकनीकों की निम्न विशेषताएं हैं-

  • शैक्षिक तकनीकों का उद्देश्य शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का विकास करना है।
  • शैक्षिक तकनीकी शिक्षा से विज्ञान एवं तकनीकी का अनुप्रयोग है।
  • शैक्षिक तकनीकी समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, भाषा, भौतिक विज्ञान इत्यादि का उपयोग करती है।
  • शैक्षिक तकनीकी को शैक्षिक साधनों (रेडियो, टेपरिकार्डर, दूरदर्शन) के साथ मिलाया नहीं जा सकता। यह तो एक अभिगमन है।
  • शैक्षिक तकनीकी में विज्ञान के व्यावहारिक पक्ष पर बल दिया जाता है।
  • यह निरन्तर प्रयोगात्मक एवं विकासशील विषय है।
  • यह वातावरण संसाधनों, विधियों के नियन्त्रण द्वारा अधिगम प्रक्रिया को सरल बनाती है।
  • इसमे शिक्षा के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये अधिगम दशाओं का संगठन शामिल होता है।
  • शैक्षिक तकनीकी का सम्बन्ध शिक्षा की समस्याओं उनके विश्लेषण, निराकरण से होता है।
  • शैक्षिक तकनीकी शिक्षण को सरल, स्पष्ट, रुचिकर, बोधगम्य एवं प्रभावशाली बनाती हैं।
  • शैक्षिक तकनीकी शिक्षण की विभिन्न विधियों प्रविधियों युक्तियों का विकास पर शिक्षा को छात्र केन्द्रित बनाने में योगदान देती है।
  • शैक्षिक तकनीकी के द्वारा शिक्षा के तीनों प्रकार के उद्देश्यों की प्राप्ति सम्भव हो पाती है।

शैक्षिक तकनीकी की प्रकृति (Nature of Educational Technology)

  • शैक्षिक तकनीकी शिक्षा को दूर-दराज के इलाकों में फैलाने में सहायता देती है।
  • यह शैक्षिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु अधिगम की परिस्थितियों में आवश्यकता अनुसार परिवर्तन लाने में सहायक है।
  • शैक्षिक तकनीकी स्वयं से सीखने को बढ़ावा देती है।
  • शैक्षिक तकनीकी अधिगम की प्रक्रिया को अधिक सरल और सशक्त बनाती है।
  • शैक्षिक तकनीकी के विकास के फल स्वरुप शिक्षण में नवीन शिक्षण विधियों तथा नवीन शिक्षण तकनीकी का विकास हुआ है।
  • शैक्षिक तकनीकी शिक्षा पर विज्ञान तथा तकनीकी के प्रभाव को प्रदर्शित करती है।
  • शैक्षिक तकनीकी निरंतर विकसित होती रहती है इसमें शिक्षक छात्र तथा तकनीकी प्रक्रियाएँ है जो एक साथ मिलकर काम करते हैं।
  • शैक्षिक तकनीकी का उद्देश्य सीखने सिखाने की प्रक्रिया को विकसित करना है।
  • यह मनोविज्ञान, इंजीनियरिंग आदि विज्ञानों के नियम से सहायता लेती है।
  • इसमें क्रमबद्ध उपागम को प्रधानता दी जाती है।

शैक्षिक तकनीकी का क्षेत्र (Scope of Educational Technology)

शैक्षिक तकनीकी का क्षेत्र इसकी अवधारणा के अनुरूप है। यदि हम शैक्षिक तकनीकी को श्रव्य-दृश्य साधनों के रूप में लेते हैं तो इसका क्षेत्र, शिक्षा में केवल श्रव्य-दृश्य साधनों तक ही सीमित रहता है। यदि शैक्षिक तकनीकी का तात्पर्य हम अभिक्रमित अध्ययन लेते हैं तो इसके क्षेत्र में अभिक्रमित-अधिगम अध्ययन सामग्री ही आती है। यदि शैक्षिक तकनीकी का अर्थ हम व्यवस्था उपागम के रूप में लेते हैं तो इसका क्षेत्र काफी बढ़ जाता है। डैरक रौन्ट्रा ने इसके निम्नांकित क्षेत्र बताये हैं-

  • अधिगम के लक्ष्य तथा उद्देश्य चिन्हित करना।
  • अधिगम वातावरण का नियोजन करना।
  • विषय-वस्तु की खोज करना तथा उन्हें संरचित (Structuring) करना।
  • उपयुक्त शिक्षण व्यूह रचनाओं (Teaching Strategies) तथा अधिगम संचार (Learning Media) का चयन करना।
  • अधिगम व्यवस्था की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करना।
  • भविष्य में प्रभावशीलता बढ़ाने के लिये मूल्यांकन के आधार पर वांछित सूझ-बूझ प्राप्त करना।

शैक्षिक तकनीकी को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Influencing Educational Technology)

किसी भी राष्ट्र में शैक्षिक तकनीकी का विकास अनेक कारकों पर निर्भर रहता है। इन कारकों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है-

शैक्षिक तकनीकी का अर्थ

1. राजनैतिक कारक (Political Factors)— राजनैतिक कारकों से तात्पर्य है वे कारक जो राष्ट्र की राजनीतिक परिस्थितियों, राजनीतिक नीतियों तथा वैज्ञानिक अन्वेषणों एवं राजनीतिक उद्देश्यों की प्राप्ति से सम्बन्धित होते हैं। यदि शासन करने वाली पार्टी को लगता है कि किन्हीं तकनीकी विशेष के प्रयोग से उन्हें ज्यादा लाभ सम्भव है तो वह उनके विकास के लिये भरपूर प्रयास करेगी। टेलीविजन तथा दूरसंचार के क्षेत्र में छुपे अभिनव प्रयोगों में तथा उनके प्रचार-प्रसार में राजनीतिक कारकों का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हाथ रहा है।

2. मनोवैज्ञानिक कारक (Psychological Factors)— मनोवैज्ञानिक कारकों के अन्तर्गत शिक्षकों, छात्रों तथा शिक्षालयों की रुचि, स्तर, प्रवृत्तियों आदि का समावेशन होता है। शिक्षकों की अभिप्रेरणा, सीखने-सिखाने की इच्छा-शक्ति, ध्यान एवं रुचि आदि का प्रभाव मनोवैज्ञानिक कारकों के अन्तर्गत समावेशित होते हैं।

3. शैक्षिक कारक (Educational Factors)— शैक्षिक कारकों में शिक्षकों की शिक्षा एवं प्रशिक्षण मुख्य कारक हैं। यदि शिक्षकों को शैक्षिक तकनीकी के क्षेत्र में उचित स्तर का सुनियोजित प्रशिक्षण प्रदान किया जाये तो ये शिक्षक शैक्षिक तकनीकी के विकास में मील के पत्थर सिद्ध हो सकते हैं। ये शिक्षक शैक्षिक तकनीकी के विभिन्न उपागमों का प्रयोग करने के लिये प्रयोगशाला का कार्य करने में सक्षम हो सकते हैं।

4. आर्थिक कारक (Economic Factors)— शैक्षिक तकनीकी के विकास में आर्थिक कारक भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। किसी भी प्रयोग, अन्वेषण तथा खोज की रीढ़ ‘धन’ होता है। बिना समुचित धन के किसी भी तकनीकी का विकास, प्रसार तथा प्रशिक्षण सम्भव नहीं। शैक्षिक तकनीकी में श्रव्य-दृश्य साधनों तथा अन्य उपकरणों के लिये तथा शैक्षिक तकनीकी की प्रयोगशाला निर्माण करने के लिये भी आर्थिक अनुदान चाहिये। बिना अर्थ के न तो उपकरण खरीदे जा सकते हैं और न ही प्रयोग हो सकते हैं और न ही किसी प्रकार के परिष्करण व अन्वेषण का कार्य सम्भव है।

5. सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारक (Social and Cultural Factors)— समाज एवं संस्कृति शिक्षा का दर्पण है। जैसा समाज होगा, जैसी संस्कृति होगी वैसी ही वहाँ की शिक्षा होगी। यदि समाज में शैक्षिक तकनीकी के प्रति जागरूकता है, वांछित नेतृत्व का बोलबाला है तथा संस्कृति की नस-नस में तकनीकी का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है तो निःसंदेह शैक्षिक-तकनीकी के क्षेत्र में भी भविष्य उज्ज्वल रहेगा।

शैक्षिक तकनीकी की सीमाएँ (Limitation Of Educational Technology)

  • यह ज्ञानात्मक क्षेत्र के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान प्रदान कर रही है लेकिन भावात्मक एवं क्रियात्मक क्षेत्र में योगदान सीमित ही है।
  • इसके प्रारंभिक प्रयोग में अतिरिक्त धन की आवश्यकता होती है क्योंकि इसमें विभिन्न प्रकार के उपकरण एवं सामग्री खरीदनी पड़ती है।
  • इसके प्रयोग के लिए विशेष प्रकार के शिक्षण की आवश्यकता होती है।
  • इसके माध्यम से सभी प्रकार के समस्याओं का समाधान करना संभव नहीं होता है।
  • शैक्षिक तकनीकी कठोर शिल्प की मशीनों के निर्माण से संबंधित नहीं है।
  • शैक्षिक तकनीकी इंजीनियरिंग की तकनीकी शिक्षा नहीं है।

शैक्षिक तकनीकी की उपयोगिता (Utility of Educational Technology)

शैक्षिक तकनीकी की उपयोगिता आज दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। विश्व का प्रत्येक देश इसे अपना रहा है। कोठारी कमीशन (1966) ने अपनी एक टिप्पणी में कहा है, पिछले कुछ सालों में भारत के विद्यालयों में कक्षा-अध्ययन को फिर से जीवन-दान देने या उसे अनुप्रमाणित करने की प्रविधियों पर काफी ध्यान दिया गया है। बुनियादी शिक्षा का पहला उद्देश्य प्राइमरी स्कूलों के सारे जीवन और कार्य-कलापों में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाना एवं बच्चे के मन, शरीर तथा आत्मा का सर्वोत्तम तथा सर्वांगीण विकास करना था। इस दृष्टि से भी शैक्षिक तकनीकी का अपना महत्त्व स्वयंसिद्ध है।

1. शिक्षक के लिए उपयोगिता:- शैक्षिक तकनीको पर शिक्षक का पूर्ण अधिकार होता है। यदि शिक्षक, शैक्षिक तकनीकी का ज्ञान प्राप्त कर उसे व्यवहार में लाता है तो वह अपने छात्रों के व्यवहार का अध्ययन भली-भाँति कर सकता है। शैक्षिक तकनीकी शिक्षक को शिक्षण व्यूह रचनाओं के ज्ञान के साथ-साथ व्यवहार अध्ययन और व्यवहार सुधार की प्रणालियों से भी अवगत कराती है तथा वैज्ञानिकता का ज्ञान प्रदान करती हैं। शैक्षिक तकनीकी शिक्षक को यह बताने में सहायता प्रदान करती है कि किस समय किस प्रकरण को स्पष्ट करने के लिए कौन सी दृश्य-श्रव्य सामग्री का प्रयोग किया जाये, रेडियो, टेलीविजन का उपयोग कर किस प्रकार से रेडियोविजन तथा कैसेट विजन का प्रयोग किया जाये तथा छात्रो की अध्ययन गति से अनुसार, उनके लिए कैसे अभिक्रमित अध्ययन सामग्री तैयार की जाये। माइक्रो टीचिंग, मिनी टीचिंग, समिलेटेड टीचिंग आदि नवीन विधियों का प्रयोग करने के लिए शैक्षिक तकनीकी शिक्षक का उचित मार्ग प्रदर्शन करती है।

2. प्रणाली उपागम का उपयोग:- शैक्षिक प्रशासन तथा प्रबन्ध से सम्बन्धित अनेक समस्याये शिक्षक के सामने आती हैं जिनका अध्ययन करने के लिए शिक्षक प्रणाली उपागम का प्रयोग कर सकता है। शिक्षक का कार्य किसी भी प्रकार का हो जैसे पाठ योजना बनाने का शिक्षण बेन्दुओं के चयन का या अन्य कोई कार्य हो वह शैक्षिक तकनीकी के बिना एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा सकता है। उसे निरन्तर शैक्षिक तकनीकी की सहायता लेनी पड़ेगी। आधुनिक तकनीकी युग में शिक्षकों में शैक्षिक तकनीकी की इस कारण भी आवश्यकता पड़ती है ताकि वह छात्रों के जीवन में शिक्षा के उद्देश्य तथा मनोविज्ञान की खामियो का अध्ययन करा सकें। छात्रों के व्यक्तित्व की भिन्नताओं को ध्यान में रखकर शिक्षक अभिक्रमित अनुदेशन का उपयोग करता है। अतः आधुनिक तकनीकी युग में शिक्षकों को शैक्षिक तकनीकी की अत्यन्त आवश्यकता है।

3. अधिगम के क्षेत्र में उपयोगिता:- शैक्षिक तकनीकी शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को अधिक प्रभावशाली और सार्थक बनाने में योगदान देती है। जिससे शिक्षा को एक अर्थपूर्ण दिशा की ओर ले जाया जा सकता है। अधिगम के क्षेत्र में शैक्षिक तकनीकों की उपयोगिता विशेष रूप से सिद्ध हो रही है। शैक्षिक तकनीकी द्वारा शिक्षण तथा प्रशिक्षण की प्रभावपूर्ण विधियों तथा सिद्धान्तों की जानकारी प्राप्त होती है। इस क्षेत्र में शैक्षिक तकनीकी छात्रों को उनकी शिक्षण क्षमता के अनुसार ही ज्ञान कराती है। यह शिक्षण तथा प्रशिक्षण इन दोनों ही प्रक्रिया का वैज्ञानिक विवेचन करती है। सीखने के नये प्रतिमान, शैक्षिक तकनीकी की ही देन हैं। अत: हम कह सकते हैं कि शैक्षिक तकनीकी शिक्षण तथा प्रशिक्षण की प्रक्रिया को अधिक प्रभावशाली बनाने में सहायक है।

4. समाज के लिए उपयोगिता:- आधुनिक समय में जनसाधारण के पास रेडियो, ट्रांजिस्टर, टेप रिकॉर्डर, टेलीविजन आदि की सुविधायें है। शैक्षिक तकनीकी के द्वारा इनका प्रयोग शिक्षा के क्षेत्र में किया जा रहा है। अतः कहा जा सकता है कि शैक्षिक तकनीकी आज के तकनीकी युग में शिक्षक की उपादेयता बढ़ाती है तथा जनसाधारण के ज्ञानात्मक, प्रभावात्मक तथा मनोगत्यात्मक पक्षों का विकास करती है। शैक्षिक तकनीकी समाज के लिए ज्ञान के संचयन प्रचार प्रसार तथा विकास के लिए अत्यन्त उपयोगी है। शैक्षिक तकनीकी के द्वारा किसी शिक्षक नेता या समाज सुधारक को ज्ञान तथा कौशल को टेलीविजन, रेडियो तथा अभिभाषण आदि के द्वारा समाज के प्रत्येक भाग में सरलता से पहुंचाया जा सकता है। अत: इसको उपयोगिता समाज के लिए महत्त्वपूर्ण है।

शैक्षिक तकनीकी का प्रयोग शिक्षक को अनेक त्रुटियों से बचाता है। इस सन्दर्भ में गैरीसन का कथन निम्नलिखित है " यदि हम तकनीशियन हैं तो पहले से हो हमको जानकारी हो जाती है कि अमुक विधियाँ गलत होंगी। अतएव हमें त्रुटियों से बचाती हैं और मानवीय प्रेरकों का स्पष्टीकरण करती हैं। इस प्रकार व्यक्ति तथा समूह की समझ को प्राप्त करना सम्भव हो जाता है। "

शैक्षिक तकनीकी आज के तकनीकी युग में शिक्षक की उपादेयता बढ़ाती है, छात्रों व छात्राध्यापकों को प्रभावशाली विधि से सिखाती है और समाज के लिए ज्ञान के संचयन, प्रचार, प्रसार तथा विकास के लिए अत्यन्त उपयोगी है। शैक्षिक तकनीकी के माध्यम से एक प्रभावशाली शिक्षक, नेता या समाज-सुधारक के ज्ञान तथा कौशल का उपयोग, टेलीविजन, टेप तथा रेडियो, अभिभाषण आदि के द्वारा समाज के प्रत्येक वर्ग तथा प्रत्येक भाग तक सरलता से पहुँचाया जा सकता है।

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